प्रार्थना से दौड पडे, अंतर के श्रीराम।
मार्ग अनेकों हैं गुरुवर।
वो मार्ग समझ नहीं आए।
जिस मार्ग पर ले चले गुरुवर।
सन्मार्ग वही कहलाए।। १।।
दुख के विचार में हम पडे।
दुख भार कम नहीं होए।
एक विचार बस प्रभु स्मरण का।
दुख का दुख भी न होए।। २।।
मायापति की का कहिए।
कहिए माया बलवान।
माया में ही छुपे बैठे हैं।
प्रभु हमरे सर्वशक्तीमान।। ३।।
तीर्थ-मंदिर सब गए।
गए सब पावन धाम।
एक प्रार्थना से दौड पडे।
अंतर के प्रभु श्रीराम।। ४।।
।। श्री गुरुचरणार्पणमस्तु।।
– श्री. प्रसन्न वेंकटापुर, भाग्यनगर, तेलंगाणा. (१.४.२०२२)
• येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |