ये भी तो मन की एक इच्छा है ।
नहीं हो सकता हमारा कुछ ।
ये भी तो मन की एक इच्छा है ॥ धृ.॥
कहीं के तो बने हम कुछ ।
यही तो रास्ते का एक पत्थर है ॥
दिल कभी न लगाया जो ।
साधना की इस धारा में ॥
छूट गए वो क्षण सारे ।
जिसमें तेरी शिक्षा है ॥
नहीं हो सकता हमारा कुछ ।
ये भी तो मन की एक इच्छा है ॥ १ ॥
देखकर सबको चलते तेरी राह पर ।
प्रयास ही है वो जो हम ना कर पाएं हैं ॥
इच्छा धरी है मन में किंतु ।
अभी पहुंच न पाएं हैं ॥
लगन की ही कमी है इस राह पर ।
न तन न मन कभी समर्पित हुआ तेरे चरणों पर ॥
नहीं हो सकता हमारा कुछ ।
ये भी तो मन की एक इच्छा है ॥ २ ॥
इंद्रियों का शासन न कभी छूटा मन से ।
भागते रहे अब तक छोड तेरी शिक्षा को ॥
धन संपत्ति पाने की तृष्णा को धरकर ।
साधना का गांडीव हमने तोडा है ॥
आशीष है सदैव हम पर ।
न हमने कभी पहचाना है ॥
नहीं हो सकता हमारा कुछ ।
ये भी तो मन की एक इच्छा है ॥ ३ ॥
सम्मान पाने की इच्छा से ।
छोड दिया अलौकिक संपत्ति को ॥
न पूछा कभी किसी को ।
क्या हम अग्रसर हैं राजमार्ग (टीप) पर ॥
कविता तो लिखते चले हम ।
किंतु प्रशंसा की लालसा न छोड पाए हैं ॥
नहीं हो सकता हमारा कुछ ।
ये भी तो मन की एक इच्छा है ॥ ४ ॥
टीप – गुरुकृपायोग
– श्री. धैवत विलास वाघमारे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२९.६.२०२३)