रामनाथी, गोवा येथील सनातनच्या आश्रमात येऊन गेल्यानंतर अधिवक्ता चारुदत्त जोशी यांना सुचलेली कविता
सर्व साधकांचा आधार असलेले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले !
मेरे गुरुदेव बसते हैं हृदय में, जो है मेरे प्रभु श्रीराम ।
गुरुदेवजी की महिमा है अपार, अनुभव (महसूस) करते साधक बारंबार ।
मेरे गुरुदेव बसते हैं हृदय में,
जो है मेरे प्रभु श्रीराम ।। १ ।।
घनघोर संकट की हो छाया,
या हो भीषण आपातकाल ।
ना है डर, ना ही कोई शंका,
क्योंकि गुरुदेवजी की दृष्टि है त्रिकाल ।। २ ।।
देकर हमें साधना का अमृत, करते हैं कृपादृष्टि अपार ।
वही तो हैं रक्षक, वही मार्गदर्शक,
छत्रछाया जिनकी है विशाल ।। ३ ।।
संकट है कठिन और अद्भुत है काल,
फिर भी गुरुदेवजी देते अनुभूति अपरंपार ।
प्रार्थना है आपसे, न टूटे कभी मेरा विश्वास
और रहे मुख में सदा आपका नाम ।। ४ ।।
कृतज्ञता चाहूं मैं अर्पण करना; परंतु (लेकिन),
ना ही मति है, ना ही ज्ञान ।
जानता हूं मैं बस इतना ही,
कि मेरे गुरुदेव बसते हैं हृदय में, जो हैं मेरे प्रभु श्रीराम ।। ५ ।।
– अधिवक्ता चारुदत्त जोशी, संभाजीनगर, महाराष्ट्र. (२८.३.२०२०) (मृत्यूपूर्वी केलेली कविता, मृत्यूदिनांक २८.४.२०२१)
या लेखात प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |