मांगते हैं शिष्यत्व का वरदान ।
आदिगुरु हैं शिव,
कहलाते कृष्ण जगद्गुरु ।
गुरु-शिष्य परंपरा से ही बना
भारत विश्वगुरु ।। १ ।।
शिष्यत्व का भाव है सबसे निराला ।
पाने जिसको करते
भगवान भी लीला ।। २ ।।
कभी राम बन बनाते
वसिष्ठ को गुरु ।
कभी गीताज्ञान दे कहलाते जगद्गुरु ।। ३ ।।
जगद्गुरु कृष्ण भी करते जिनकी सेवा ।
वे ‘सांदिपनी’ देती गुरु-शिष्य परंपरा ।। ४ ।।
वीर छत्रपति को मिले समर्थ रामदास स्वामी में गुरु ।
तभी तो बने वे हिन्दुत्व के महामेरु ।। ५ ।।
बनाने भारत को पुनः विश्वगुरु महान ।
मांगते हैं आज हम शिष्यत्व का वरदान ।। ६ ।।
– कु. निधी देशमुख, खडपाबांध, फोंडा,गोवा. (एप्रिल, २०१७)