येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या ‘भाव तेथे देव’ या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |
मन मेरा जाए जहां-जहां पर बस ‘गुरुदेव गुरुदेव है’ ।
सर्व साधकांचा आधार असलेले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले !
हे प.पू. गुरुदेव आपका जन्मदिन हेतु मैं आपके इन कोमल चरणों पर अनंत कोटि, अनंत कोटि कृतज्ञतापुष्प अर्पित करती हूं । हे परम कृपालू गुरुदेव, मेरी इतनी भी पात्रता नहीं कि मैं आपके बारे में कुछ सोचूं, तो फिर कुछ लिखूं; परंतु हे गुरुदेव, भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे आपके संदर्भ मे कुछ पंक्तियां सुझाई हैं । यह पंक्तियां गीत के रूप से आपके जन्मदिन के इस शुभ अवसर पर आपके कोमल चरणाें में अर्पित करती हूं ।
गुरुकृपा से आए हैं हम साधना के इस मार्ग में ।
तन-मन-धन से अर्पण होकर शरण में जाएं गुरुदेव के ।। धृ. ।।
गुरुदेव की शक्ति हैं बिंदा, अंजली भक्तिस्वरूप हैं ।
शक्ति-भक्ति का अनोखा संगम, ये दोनों माताएं हैं ।। १ ।।
सतशक्ति हो, चित्तशक्ति हो, हो चाहे गुरुदेवजी ।
रूप से हैं तीनों अलग-अलग, पर गुरुतत्त्व तो समान है ।। २ ।।
मन मेरा बने मंदिर और इस मंदिर में गुरुदेव रहें ।
भाव से इस मंदिर का, मेरे हर क्षण पूजन होता रहे ।। ३ ।।
लीनता हो या नम्रता हो, चाहे हो मन की केवल निर्मलता ।
भाव के बिना सब अधूरा, भक्ति जीवन की पूर्णता ।। ४ ।।
धरती पर जो आश्रम है, ये आश्रम नहीं वैकुंठ है ।
इस वैकुंठ के अधिपति तो साक्षात भगवान विष्णु हैं ।। ५ ।।
देवद हो या रामनाथी हो, या कोई और आश्रम ।
इन आश्रमों प्रति कदम-कदम पर कृतज्ञता का भाव रहे ।। ६ ।।
सनातन के सेवक हैं हम और सेवा हमारा धर्म है ।
चरणों में शरणागति है और हाथ में कर्म है ।। ७ ।।
ना इच्छा, ना कोई अपेक्षा, ना कोई आकांक्षा है ।
मन मेरा जाए जहां-जहां पर बस ‘गुरुदेव गुरुदेव है’ ।। ८ ।।
बस ‘गुरुदेव गुरुदेव है, बस ‘गुरुदेव गुरुदेव है’….
– कु. लीना कुलकर्णी, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल. (१.६.२०२१)