एक ही लक्ष्य अन् ध्येय, सनातन धर्मराज्य, सनातन धर्मराज्य ।
गुरुकार्य ही जीवन हैं ।
गुरुसेवा ही श्वास हैं ।
गुरुचरण ही अंतिम धाम हैं ।
रोम-रोम में
गुरुप्राप्ति की आस हैं ।। १ ।।
साधक ही वानर हैं ।
साधक ही पांडव हैं ।
संत-सद्गुरु ही सच्चे भक्त हैं ।
गुरुदेव ही साक्षात परमेश्वर हैं ।। २ ।।
श्वास-श्वास में राम मंत्र ।
दिन रात करें सद्गुरु-सेवा ।
धूप हो या बारिश, एक ही है घोषवाक्य ।
एक ही लक्ष्य अन् ध्येय,
सनातन धर्मराज्य, सनातन धर्मराज्य ।। ३ ।।
अमृतबिंदु चैतन्य स्रोत ।
रामनाथी आश्रम ही वैकुंठ है ।
साधक हैं गोप-गोपी ।
और संत, सद्गुरु देवी-देवता,
परात्पर गुरु हैं श्रीमन्नारायण ।। ४ ।।
साधक जन्म ही सर्वश्रेष्ठ है ।
जिनको इसका भान नहीं, वे तो कृतघ्न हैं ।
साधना ही आनंद का प्रवास है ।
आनंद ही साधना का प्रमाण है ।। ५ ।।
कालानुसार विहंगम गति से साधना अपेक्षित है ।
हिन्दू राष्ट्र सूर्य का उदय हो रहा है ।
रज-तम का अंधेरा दूर हो रहा है ।
आनंद और शांति ही हिन्दू राष्ट्र की विशेषता है ।। ६ ।।
आइए कदम रखेंगे साधना के पथ पर ।
समष्टि साधना कर बढाइए समष्टि को अपनी ओर ।
और ले चलिए सबको सनातन धर्म राज्य की ओर ।
सनातन धर्मराज्य की ओर ।। ७ ।।
– श्री. गुरुप्रसाद गौडा (आध्यात्मिक पातळी ६४ टक्के), मंगळुरू (३०.१०.२०१९)
या लेखात प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या अनुभूती या भाव तेथे देव या उक्तीनुसार साधकांच्या वैयक्तिक अनुभूती आहेत. त्या सरसकट सर्वांनाच येतील असे नाही. – संपादक |