७९ दिनों के पश्चात पंढरपुर में वारकरियों को श्री विठुराया के पदस्पर्श दर्शन का आरंभ
वारकरियों में अत्यंत उत्साह का वातावरण !
पंढरपुर (महाराष्ट्र) – पिछले ७९ दिन पांडुरंग के श्रीचरणों के दर्शन लेने हेतु वारकरी तरस रहे थे, अंत में वह दिन २ जून, अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का दिन निकल आया है । प्रातः ४ बजे ‘श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति’ के सहअध्यक्ष ह.भ.प. गहिनीनाथ महाराज औसेकर की प्रमुख उपस्थिति में श्री विठ्ठल की पूजा की गई । इस अवसर पर सोलापुर जिले के पालकमंत्री चंद्रकांत पाटील उपस्थित थे । सवेरे ७ बजे से सभी वारकरियों के लिए पदस्पर्श दर्शन खुला किया गया है । यह दिन अर्थात ‘‘आज सोने का दिन । बरस रही हैं अमृत धाराएं ।। हमने हरि को देखा । बाहर-अंदर केवल व्यापक मुरारी ।’’ ऐसी वारकरियों की स्थिति हो गई थी । राज्य के प्रत्येक कोने से पधारे हुए वारकरियों ने भावविभोर अश्रुपूर्ण नेत्रों से श्री विठ्ठल का जयघोष करते हुए दर्शन कर आनंद से अविभूत हुए।
सरकार ने दिए हुए ७५ करोड रुपए में मंदिर का सुंदर निर्माण ! – पालकमंत्री चंद्रकांत पाटील
इस अवसर पर पत्रकारों से बातचित करते हुए पालकमंत्री चंद्रकांत पाटील ने कहा, ‘पंढरपुर के श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के संवर्धन हेतु महाराष्ट्र सरकार ने ७५ करोड रुपए दिए है । उसमें से पिछले २ माह निर्माण कार्य आरंभ किया गया है । सरकार द्वारा दिए गए रुपए में से अत्यंत सुंदर निर्माणकार्य हुआ है । पहले केवल सवेरे ११ बजे तक मुखदर्शन होता था; परंतु अब सभी के लिए दर्शन खुला किया गया है तथा महाराष्ट्र में अच्छी वर्षा होने हेतु विठुराया के श्रीचरणों में प्रार्थना की गई है ।’
Pandharpur (Maharashtra) is the epitome of Sri Vishnu Bhakti.
Padsparsh Darshan i.e. touching the feet of Shri Vitthal commenced from today after renovating the temple by reinventing to it’s original form 700 years ago.
Many Vitthal Bhakts are not happy with the facilities… pic.twitter.com/2iWM7upXoq
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) June 2, 2024
क्षणिकाएं….
१. श्री. विद्याधर ताटे, ज्येष्ठ वारकरी अध्ययनकर्ता, – वारकरियों को आज अपूर्व आनंद प्राप्त हुआ है । मंदिर को प्राचीन स्वरूप दिया गया है तथा उससे हिन्दुओं के मंदिर कैसे थे ?, यह देख सकेंगे। ऐसी ही पवित्रता, स्वच्छता, खुलापन बना रहे । वर्ष १८८७ से पूर्व श्री विठ्ठल को आलिंगन देकर पश्चात पदस्पर्श दर्शन लेने की परंपरा थी । परंतु तदनंतर आज केवल पददर्शन जारी है ।