‘पतंजलि योगपीठ’ एवं ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (आई.एम.ए.) के आपसी विवाद में आयुर्वेद की हानि न होने दें !
आयुष मंत्रालय को प्रातिनिधिक पत्र
वर्तमान समय में सर्वत्र ‘पतंजलि योगपीठ’ द्वारा बनाई गई औषधियों पर प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ अर्थात ‘आई.एम.ए.’ के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट याचिका तथा न्यायालय के द्वारा उस पर निर्णय देते समय दिए गए वक्तव्यों के विषय में प्रसारमाध्यमों में उल्टी-सीधी चर्चा चल रही है । इन चर्चाओं की जड में जाकर तथ्य खोजना, ‘सच्चा कौन ? एवं झूठा कौन ?’, यह सिद्ध करना, इस पत्र का उद्देश्य नहीं है; परंतु इन चर्चाओं में ‘स्वयं का मन भटककर मूल विचारों से दूर न जाए तथा इस विवादास्पद प्रकरण के विषय में उचित चिंतन-मनन होकर आपको स्वयं उस विषय में उचित निर्णय तक पहुंचना आवश्यक है’, इस उद्देश्य से आपको यह पत्र लिख रहे हैं ।
१. रोगियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सर्वसामान्य लोगों की स्थिति
आयुर्वेद एवं एलोपैथी के समर्थकों के मध्य का विवाद कोई नया नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति को अपना-अपना क्षेत्र अधिक उपयुक्त तथा वही सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होना स्वाभाविक है । इस विषय में हमारा अधिक अध्ययन न होने से उसपर भाष्य करना अधिक साहसपूर्ण होगा; परंतु ‘मेरा ही क्षेत्र सर्वश्रेष्ठ’, ऐसा मानते समय अन्यों को तुच्छ समझना अथवा ‘वह शास्त्र अर्थहीन है’, ऐसा मानना भी शास्त्रशुद्ध एवं समर्थनीय नहीं होगा । अतः रोगियों को जिस चिकित्सा पद्धति से स्वस्थ लगता है, उस चिकित्सा पद्धति से स्वयं का उपचार कराने की स्वतंत्रता है तथा वे अपनी श्रद्धा के अनुसार संबंधित चिकित्सा पद्धति से स्वयं का उपचार ले सकते हैं; परंतु जब इस विषय में विवाद के प्रसंग उत्पन्न होते हैं, उस समय उपचार करनेवालों के मन में भी आशंका उत्पन्न होती है । तो संबंधित क्षेत्र के विद्वानों को इस आशंका को दूर कर उनका उचित मार्गदर्शन कर इस आशंका को दूर करना आवश्यक है, अन्यथा सामान्य मनुष्य इसमें पिस जाता है ।
२. सरकार द्वारा नियमावली बनाई जाए !
यहां सबसे महत्त्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा ‘पतंजलि’ द्वारा किया गया विज्ञापन ! अब जब इसी प्रश्न के विषय में हम विचार करते हैं, तब ‘विज्ञापन करते समय उसमें अतिशयोक्ति की जाती है’, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए । ‘फेयर एंड लवली’, ‘लैक्मे’, ‘संतूर साबुन’, जब हम इनके विज्ञापन देखते हैं, उस समय ‘काला चेहरा गोरा हो जाना, ‘वयोवृद्ध व्यक्ति का युवा दिखाई देना’ जैसी अनेक बातें हम विज्ञापनों में देखते हैं; परंतु वास्तविकता वैसी नहीं होती । जब कोई खिलाडी ‘बूस्ट इज ए सिक्रेट ऑफ माई एनर्जी’ (बूस्ट ही मेरी ऊर्जा का रहस्य है’ (बूस्ट दूध में मिलाकर पिया जानेवाला एक पाउडर है ।), ऐसा कहकर मैदान में खेलता रहता है, उस समय क्या वह सचमुच ही उसका सेवन करता है ? अतः विज्ञापनों का विचार करते समय सरकार को उसकी कुछ न कुछ नियमावली बनानी ही चाहिए, जिससे उस विषय में ग्राहक को वस्तुनिष्ठ जानकारी प्राप्त हो ।
३. आई.एम.ए. का इतिहास तथा उसका षड्यंत्रकारी विचार (?)
अब हम आई.एम.ए. के इतिहास के विषय में देखेंगे । इस संगठन का इतिहास सदैव विवादास्पद रहा है । जब यह संगठन एलोपैथी का समर्थन करता है, तब वह आयुर्वेद को नीचा दिखाता रहता है, यह सर्वविदित है; परंतु जैसे ‘आयुर्वेद की आलोचना करते समय अन्यों की ओर एक उंगली दिखाते समय शेष ४ उंगलियां अपनी ओर होती हैं’, ऐसा न्यायालय कहता है, तब इस संगठन को अंतर्मुख होकर विचार करना आवश्यक है; क्योंकि ‘जॉन्सन एंड जॉन्सन’ प्रतिष्ठान द्वारा निर्मित छोटे बच्चों के ‘टैल्कम पाउडर’ का उपयोग करने से त्वचा का कैंसर होता है, विदेश में हुई न जाने कितनी घटनाओं से यह सिद्ध हो चुका है । वहां के न्यायालयों ने इस प्रतिष्ठान को उसके लिए करोडों रुपए की हानिभरपाई करने के आदेश दिए हैं । ऐसा होते हुए भी आज अनेक औषधालयों में (दवा की दुकानों में) ‘जॉन्सन एंड जॉन्सन कंपनी’ का पाउडर बिकता हुआ दिखाई देता है । इस विषय में आई.एम.ए. कभी भी आवाज उठाते हुए दिखाई नहीं दिया अथवा इस संगठन को ‘बाजार में बिक्री के लिए यह पाउडर नहीं रखना चाहिए’, इस विषय में कभी भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया गया है । जब ‘फेयर एंड लवली’ की क्रीम लगाने से काला व्यक्ति गोरा बन जाता है’, ऐसा विज्ञापन किया जाता है, तब भी इसमें ‘काले व्यक्ति को नीचा दिखाया जाता है तथा वास्तव में यह क्रीम लगाने से क्या काला व्यक्ति गोरा बन जाता है ?’, इस संगठन ने इसका सत्यापन किया हो, ऐसा कहीं दिखाई नहीं देता ।
इसी संगठन के एक विख्यात डॉक्टर ने ‘कोरोना महामारी के काल में यीशु की कृपा से रोगी स्वस्थ हो रहे हैं’, ऐसा वक्तव्य देकर अपना वास्तविक चेहरा दिखा दिया था । उसी समय आई.एम.ए. की आड में यह व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से धर्मांतरण का काम कर रहा है, यह बात भी अनेक लोगों के ध्यान में आई थी । इसलिए पतंजलि को सामने रखकर आयुर्वेद का दमन करना तथा पश्चिमी औषधियों का महिमा मंडन कर भारतीय औषधियों को नीचा दिखाकर यहां की अर्थव्यवस्था को बिगाडने का यह विचार क्या आई.एम.ए. का है ?’, इस विषय में जांच होनी चाहिए ।
४. क्या आई.एम.ए. इस पर भी विचार करेगा ?
यहां हमें पतंजलि का समर्थन नहीं करना है; क्योंकि ‘अन्न सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन’ की पडताल के उपरांत ही पतंजलि की औषधियों को मान्यता मिली होगी; इसलिए इस विषय में पतंजलि का विज्ञापन तथा वास्तव में उनके उपचार पर शोध होगा; परंतु उसी समय अन्य एलोपैथी औषधियों के दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं, उदाहरणार्थ कुछ ही दिन पूर्व ‘कोविशील्ड’ का टीका लगाने से हृदयरोग अथवा मस्तिष्क का कार्य रुकने की बीमारी हो सकती है’, यह शोध भी सामने आया तथा संबंधित टीका बनानेवाले प्रतिष्ठान ने न्यायालय में उसे स्वीकार भी किया है ।
५. भारत में पहले से आयुर्वेद ही था न ? तो…
आयुर्वेद भारत के द्वारा विश्व को दी हुई एक ‘अति उत्तम देन’ है । आयुर्वेद को ‘पांचवां वेद’ कहा गया है । भारत में एलोपैथी आने से पूर्व यहां के सभी लोग आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति का ही उपयोग करते थे । उस समय कुछ लोग आयुर्वेदीय चिकित्सा लेकर मर रहे थे, ऐसा नहीं है; परंतु एलोपैथी को भारतीय बाजार पर थोपने हेतु आयुर्वेद को सदैव निशाना बनाया गया तथा ‘इन्स्टेंट’ उपचार (तत्काल उपचार) के काल के रूप में एलोपैथी की महिमा गाई गई । स्वाभाविक ही ‘इससे तुरंत स्वस्थ लगता है’, यह विचार कर आज सर्वसामान्य लोग एलोपैथी की औषधियां लेते हैं; परंतु इन औषधियों के दुष्परिणाम ज्ञात न होने से वे इन औषधियों के झांसे में आ जाते हैं । किसी रोगी का स्वस्थ होना न होना; इसके पीछे शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कारण होते हैं तथा इन तीनों कारणों का अध्ययन केवल आयुर्वेद में ही अधिक प्रभावकारी पद्धति से किया गया दिखाई देता है । अतः ‘किसी औषधि से कोई व्यक्ति स्वस्थ नहीं होता है, उसका कारण औषधि ही है’, ऐसा कहना उचित नहीं होगा । उसके लिए अन्य कारणों का भी अध्ययन होना चाहिए, इसकी ओर हम पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहेंगे ।
६. क्या संबंधित मंत्रालय निम्न प्रश्नों के उत्तर देगा ?
इस पत्र का उद्देश्य पतंजलि सही है या आई.एम.ए. सही नहीं है, यह बताने का नहीं है, अपितु इस घटना का मूल समाज के सामने आए, ऐसा हमें लगता है; क्योंकि संबंधित मंत्रालयों को ही सामान्य लोगों के मन में उठनेवाले निम्न प्रश्नों के उत्तर मिलना अपेक्षित है ।
अ. अब न्यायालय के आदेश से पतंजलि के कुछ उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया गया है । जब इन उत्पादों को बाजार में लाने की अनुमति मिली, तो क्या तब सरकारी विभागों ने इस उत्पादों की गुणवत्ता की पडताल नहीं की थी ?
आ. यदि इन औषधियों को सरकार की मान्यता मिली थी, तो उस संबंध में पतंजलि की ओर से यदि अतिशयोक्तिपूर्ण विज्ञापन किए गए तो सरकार ने स्वयं उनका संज्ञान क्यों नहीं लिया ?
इ. आई.एम.ए. जब पतंजलि के विरुद्ध न्यायालय गया, उससे पूर्व क्या सरकारी विभाग से पतंजलि के विरुद्ध शिकायत की गई थी ? तथा नहीं की गई, तो वह क्यों नहीं की गई ?
ई. आई.एम.ए. का उद्देश्य समाजहित का है, तो वह अन्य विज्ञापनों के विषय में क्यों नहीं दिखाई देता ?
उ. ‘एलोपैथी औषधियों का बाजार पतंजलि के आयुर्वेदीय उत्पादों के कारण गिर रहा है’, इस भय से तो पतंजलि पर कार्यवाही नहीं की गई ?
ऊ. क्या इसके पीछे एलोपैथी के विदेशी प्रतिष्ठानों का षड्यंत्र कार्यरत है ?
७. … इस विवाद के पीछे षड्यंत्र अथवा अर्थनीति नहीं है ?, ‘आयुष मंत्रालय’ को इसकी जांच करना आवश्यक !
संक्षेप में कहा जाए, तो आयुष मंत्रालय को गंभीरता से इस प्रकरण का संज्ञान लेकर इसके पीछे कार्यरत षड्यंत्र समाज के सामने लाना चाहिए, अन्यथा लोगों के मन में आयुर्वेदीय औषधियों के विषय में शंका उत्पन्न होने से उनका स्वास्थ्य संकट में पड सकता है, इस दृष्टि से इस विवाद की ओर केवल पतंजलि एवं आई.एम.ए. के मध्य के विवाद के रूप में न देखकर ‘यह एक प्रकार से देश पर किया गया आक्रमण है’, इस दृष्टि से इसकी जांच होनी चाहिए, ऐसा हमें लगता है तथा यही इस पत्र का प्रयोजन है !
– श्री. योगेश जलतारे, समूह संपादक, ‘सनातन प्रभात’ समूह
(४.५.२०२४)