सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
कहां विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और कहां संत !
‘डॉक्टर, अधिवक्ता, लेखापाल (एकाउंटेंट) आदि सभी अपने क्षेत्र के प्रश्नों के उत्तर तत्काल नहीं बता सकते । ‘प्रश्न का अध्ययन कर, जांच कर, आगे उत्तर बताता हूं’, ऐसा वे कहते हैं । इसके विपरीत संत एक ही क्षण में किसी भी प्रश्न का कार्यकारण भाव तथा उपाय बताते हैं, जो आधुनिक विशेषज्ञ कभी भी नहीं बता सकते !’
आधुनिकतावादियों का आदिमानव की ओर मार्गक्रमण !
‘जैसे-जैसे मानव की प्रगति होती है, वैसे-वैसे उसमें नम्रता, सब कुछ पूछकर करने की वृत्ति इत्यादि गुण निर्माण होते हैं । आधुनिकतावादियों में पूछने की और सीखने की वृत्ति नहीं होती । इसके विपरीत ‘मुझे सब पता है । जो मुझे पता है, वही उचित है’, ऐसा अहंकार होता है । इसलिए उनका मार्गक्रमण आदिमानव की ओर हो रहा है !’
मानव की प्रगति किसे कहते हैं यह भी ज्ञात न रहनेवाला विज्ञान
‘पश्चिमी विज्ञान कहता है, ‘आदिमानव से अभी तक मानव ने प्रगति की है ।’ वास्तव में मानव ने प्रगति नहीं की, अपितु वह उच्चतम अधोगति की ओर जा रहा है । सत्ययुग का मानव ईश्वर से एकरूप था । त्रेता और द्वापर युग में उसकी थोडी अधोगति होती गई । अब कलियुग के आरंभ में ही उसकी उच्चतम अधोगति हो गई है । कलियुग के शेष लगभग ४ लाख २६ सहस्र वर्षों में उसकी कितनी अधोगति होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती !’
हास्यास्पद बुद्धिजीवी !
‘अशिक्षित का यह कहना कि ‘सूक्ष्म जंतु नहीं हैं’; जितना हास्यास्पद है, उतना ही बुद्धिजीवियों का यह कहना ‘ईश्वर नहीं है हास्यास्पद है !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बाळाजी आठवले