संपादकीय : अमेरिका की दादागिरी को महत्त्व न दें !

अपने हित से कोई संबंध हो न हो; परंतु स्वयं को उचित न लगनेवाली बातों के आधार पर संबंधित देशों पर दादागिरी करते हुए सीधे उन्हें धमकी देना अमेरिका की पुरानी नीति रही है । भारत ने पुनः एक बार इरान के चाबहार बंदरगाह के संदर्भ में अमेरिका की इस दादागिरी को अनुभव किया । भारत को चाबहार बंदरगाह १० वर्षाें के लिए किराए पर मिलने से संबंधित समझौते पर भारत एवं ईरान ने कुछ दिन पूर्व ही हस्ताक्षर किए । इससे पेटदर्द से ग्रसित अमेरिका ने भारत को सीधे धमकी ही दी, ‘ईरान के साथ समझौता करनेवाले देशों को अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा ।’ अर्थात भारत पर इसका बिल्कुल भी कोई परिणाम नहीं होगा तथा भारत इस परियोजना को पूर्णता की ओर पहुंचाएगा ।

वास्तव में भारत की दृष्टि से चाबहार बंदरगाह का अनन्यसाधारण महत्त्व है । यह बंदरगाह भारत के लिए व्यापार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तो है ही; परंतु साथ ही रक्षा तथा कूटनीति की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है । चाबहार बंदरगाह ओमान की खाडी में स्थित है । यह बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशिया, यूरोप, रूस एवं अफगानिस्तान में प्रवेश के लिए प्रवेशद्वार है । इसके द्वारा भारतीय माल यूरोप एवं रूस तक बडी सहजता से पहुंचेगा । इसके अतिरिक्त चाबहार बंदरगाह के कारण अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के लिए नया वैकल्पिक मार्ग मिलने के कारण पाकिस्तान पर भारत की निर्भरता भी समाप्त हो जाएगी; क्योंकि भारत से अफगानिस्तान तक पहुंचने हेतु पाकिस्तान से जाना पडता है । पाकिस्तान का सनकीपन भारत की व्यापार वृद्धि में बडी बाधा सिद्ध हो रहा था । कश्मीर में अनुच्छेद ३७० रद्द करने से पाकिस्तान ने भारत के साथ सभी तरह के व्यापार बंद कर दिए हैं । उसके कारण भारत भी ऐसे किसी वैकल्पिक व्यापारीमार्ग की खोज में था, जो स्थायीरूप से पाकिस्तान पर भारत की निर्भरता समाप्त कर दे । उसके लिए भारत को चाबहार बंदरगाह का एक अच्छा विकल्प मिला । केवल इतना ही नहीं, अपितु भविष्य में इस बंदरगाह के माध्यम से मध्य एशिया, यूरोप, रूस एवं अफगानिस्तान, इन देशों के प्राकृतिक गैस तथा तेल का भी आयात किया जा सकता है । यह हुआ भारत की दृष्टि से चाबहार के व्यापार का महत्त्व ! अब यह बंदरगाह भारत के लिए रक्षा की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाला है । भू-राजनीतिक दृष्टि से भी इस बंदरगाह का विकास होने के कारण भारत अरब सागर में चीन की गतिविधियों पर ध्यान रख सकेगा । चीन पाकिस्तान में स्थित ग्वादर बंदरगाह विकसित कर रहा है । उसके द्वारा उसे भारत पर ध्यान रखना है । ऐसे में चीन एवं पाकिस्तान की गतिविधियां ज्ञात होने में चाबहार बंदरगाह पर भारत की उपस्थिति सहायक सिद्ध होनेवाली है । चाबहार एवं ग्वादर, इन दोनों बंदरगाहों के मध्य की दूरी केवल ७० किलोमीटर है । इस दृष्टि से भी भारत के लिए चाबहार बंदरगाह महत्त्वपूर्ण है । वास्तव में देखा जाए, तो भारत एवं ईरान के मध्य इस बंदरगाह को विकसित करने का समझौता वर्ष २०१८ में ही हो चुका था । उसमें अनेक बाधाएं आईं । इस समझौते से तिलमिलाए चीन ने येनकेन प्रकारेण यह समझौता न होने देने के लिए प्रयास किए । उसके लिए उसने भी ईरान के साथ अनेक परियोजनाओं में भागीदारी की; परंतु अंततः भारत ने इस बंदरगाह का संचालन अपने पास लेकर बाजी मारी ।

ईरान-अमेरिका का पुराना झगडा !

वास्तव में देखा जाए, तो भारत एवं ईरान के मध्य इस समझौते के कारण अमेरिका को पेटदर्द होने का ऐसा कोई ठोस कारण नहीं है । हमारा ‘मित्र’ यदि हमारे ही शत्रु के निकट जा रहा हो, तो ऐसे में किसी की जो स्थिति होती है, वही स्थिति अमेरिका की हुई है । ईरान एवं अमेरिका के मध्य शत्रुता सर्वविदित है । तेल के विषय पर छिडे विवाद में इन दोनों देशों के संबंध जलकर भस्म हो चुके हैं । समय-समय पर दोनों देशों में जोरदार खटपट होती रहती है । वर्ष २०११ में भी अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के कारण उसपर अनेक आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे । उसके उपरांत वर्ष २०१२ में अमेरिका ने विश्व के सभी देशों की बैंकों को ईरान के तेल के बदले में दिए हुए पैसों का लेनदेन (पेमेंट) रोकने का आदेश दिया था । इसमें ७ देशों को छूट दी गई थी, जिसमें भारत का भी समावेश था । मध्यावधि में वर्ष २०२० में अमेरिका की सेना ने ईरान के ‘रिवॉल्युशनरी गार्डस्’ के सर्वाेच्च नेता कासिम सुलेमानी की हत्या कर खलबली मचा दी थी । इस विषय पर दोनों देशों में प्रतिशोध की अग्नि दहक रही है । कुछ दिन पूर्व ही ईरान द्वारा अमेरिका के निकट के मित्र इजरायल पर आक्रमण करने से अमेरिका ने ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध और कठोर कर दिए हैं । इस माध्यम से अमेरिका यह धमकी दे रहा है कि जो भी देश ईरान के साथ व्यापार करेंगे, उन सभी को अमेरिका के कठोर आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पडेगा । रूस-यूक्रेन युद्ध में भी अमेरिका ने यही नीति अपनाई थी । रूस के द्वारा यूक्रेन पर किए गए आक्रमण के विरोध में अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए । अमेरिका की इस धमकी के कारण एक ओर सभी देशों ने रूस के साथ के व्यापारिक संबंध तोड दिए; परंतु दूसरी ओर यही अमेरिका रूस से यूरेनियम खरीद रहा था ! इससे अमेरिका की दोहरी नीति समझ में आती है । अमेरिका ने कुछ ही दिन पूर्व एक कानून बनाकर रूस से यूरेनियम न खरीदकर उसे अमेरिका में ही तैयार करने की नीति अपनाई । इन सभी बातों से समझ में आता है की  ‘जिन देशों से अमेरिका के ‘महाशक्तिपद’ को संकट उत्पन्न होता है, उन पर अमेरिका प्रतिबंध लगाता है ।’ चीन, रूस अथवा ईरान इसके कुछ उदाहरण हैं ।

भारत भी उत्तर दे !

नरेंद्र मोदी, जो बाईडेन और शहाबाज शरीफ

चाबहार बंदरगाह के सूत्र पर अमेरिका के द्वारा भारत को दी गई धमकी को भारत बिल्कुल भी सहन न करे, साथ ही भारत को उसकी अनदेखी भी नहीं करनी चाहिए । इस पर भारत को अमेरिका को समझ में आनेवाली भाषा में उत्तर देना चाहिए । जो देश अमेरिका का शत्रु है, उसके साथ भारत को (यदि वह भारत का मित्र भी हो, तब भी) लेन-देन करने में अमेरिका का विरोध हो, तो भारत को इस बात पर भी बल देना चाहिए कि अमेरिका भारत के शत्रु देश पाकिस्तान से सभी संबंधों को तोड दे । रूस एवं ईरान भारत को केवल तेल बेचते हैं; परंतु धूर्त अमेरिका पिछले अनेक दशकों से पाकिस्तान को घातक हथियार बेच रहा है, जिनका उपयोग भारत के विरुद्ध किया जाता है । एक ओर अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही करता है । वह पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मारता है; परंतु दूसरी ओर पाकिस्तान को हथियार एवं लडाकू विमान देने के साथ आर्थिक सहायता भी देता रहता है । भले ही ऐसा हो, तब भी अमेरिका पाकिस्तान के साथ व्यापार रोकने के लिए तैयार नहीं है । इससे उसकी दोहरी नीति उजागर होती है । प्रत्येक देश को स्वयं का हित साधने का संपूर्ण अधिकार है । अमेरिका इसे दादागिरी दिखाकर साध्य करता है; इसलिए अब भारत को भी अमेरिका की दादागिरी को न मानकर स्वहित साधना चाहिए । इसका आरंभ, ‘अमेरिका हमारा मित्र नहीं है’, स्वहित के इस विचार से करना पडेगा !

भारत को अमेरिका पर पाकिस्तान के साथ हथियारों का व्यापार न करने के लिए दबाव डालना आवश्यक !