जिनकी आध्यात्मिक सीख के कारण सहस्रों लोगों का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण परिवर्तित होता है, वे परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ! – पू. डॉ. राजकुमार केतकर, प्रसिद्ध कथक नृत्याचार्य, ठाणे, महाराष्ट्र.
‘निरंतर उद्योग करते रहें एवं उस पर विचार कर कुछ शोध प्रस्तुत करें’, यह मेरी माताजी का वाक्य था । उस वाक्य की प्रतीति फोंडा, गोवा स्थित महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में हुई । ठाणे के श्री. प्रदीप चिटणीस को मैं ‘संगीत उद्धारक गायक’ कहूंगा कि वे मुझे अपने साथ इस शोध केंद्र में ले गए । वहां मैंने नृत्य से प्रक्षेपित होनेवाली सकारात्मक ऊर्जा के संबंध में प्रयोग किया एवं वह अत्यंत सफल हुआ । उस निमित्त तेजस्वी स्वरूप परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के गुणदर्शन हुए । तब अत्यंत आनंद प्रतीत हुआ । इतने तेजस्वी व्यक्ति हमारे सामने आने पर हममें क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, इसका अनुभव हुआ ।
१. आध्यात्मिक सीख के कारण सहस्रों जिज्ञासुओं को जीवन की ओर देखने की दिशा देनेवाले परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !
मैं ‘नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट’ नामक संस्था का कलाकार हूं । मैं कथक नृत्य करता हूं एवं मेरे प्रथम गुरु नटराज गोपीकृष्ण, लछ्छू महाराज, मोहनराव कल्याणपुरकर आदि ने मुझपर आध्यात्मिक अथवा सात्त्विक नृत्य के संस्कार किए हैं । इसलिए महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में नृत्य करते समय मेरी अंतरात्मा निरंतर शोधक स्थिति में थी । मुझे इस शोध में ऐसा दिखाई दिया कि नृत्य करते समय मैं उस भजन का केवल आध्यात्मिक पक्ष प्रस्तुत नहीं कर रहा हूं, अपितु उस भजन की आध्यात्मिक सीख का प्रचार भी हो रहा है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में इस आध्यात्मिक सीख का प्रभाव मुझे दिखाई दिया । सहस्राें जिज्ञासु वहां आते हैं और वहां की सात्त्विकता के कारण उन सहस्रों लोगों का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण परिवर्तित होता है । परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी वहां की शक्ति हैं । ‘उनमें आध्यात्मिक सीख का सत्त्व है’, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।
२. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय शोध केंद्र में नृत्य करते समय उपास्यदेवता का स्मरण करने की प्रेरणा मिली !
महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में प्रत्यक्ष नृत्य करते समय मुझे लगा कि मैं निरंतर आधा-पौन घंटा नृत्य कर पाऊंगा अथवा नहीं; परंतु नृत्यप्रयोगांतर्गत मैं वहां २-३ घंटे खडा था । ‘इतना अधिक समय होकर भी मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ, यह एक अनुभूति ही हुई । मैं महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में ३-४ दिन रुका था । उस अवधि में मुझे प्रेरणा मिली कि नृत्य करते समय निरंतर अपने उपास्यदेवता का स्मरण करना चाहिए, जैसे हम कलाकार नटराज को भजते हैं, वैसे !
ताल के दस प्राण बताए हैं ।
कालो मार्गः क्रियाङ्गानि ग्रहोजातिः कला लयः ।
यतिः प्रस्तारकश्चेति तालप्राणाः दश स्मृताः ।।
अर्थ : काल, मार्ग, क्रिया, अंग, ग्रह, जाति, कला, लय, यति एवं प्रस्तार आदि ताल के दस प्राण हैं ।
इन प्राणों की जो सीख है, उसका अनुभव करने की दिशा महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय में अत्यंत सावधानीपूर्वक प्रस्तुत की गई है । प्रत्येक व्यक्ति समझ पाए, ऐसी भाषा में वे सिखाते हैं ।
३. नई पीढी को संस्कृति की सीख देने की व्यवस्था !
‘मैं नाट्यशास्त्र का अभ्यासक हूं; परंतु वह सब संस्कृत में लिखा गया है । इसलिए वर्तमान पीढी तक नहीं पहुंचता’, यह मेरा दुःख है । मेरे पास नृत्य सीखने के लिए आनेवाले विद्यार्थियों के संबंध में अनेक बार ध्यान में आता है कि कथक के बोल बोलते समय पांचवी-छठी के बच्चों को भी संस्कृत के उच्चारण की पद्धति सिखानी पडती है । हमारी संस्कृति के संबंध में युवा पीढी को संदेश मिले, ऐसी मेरी जो इच्छा थी, वह मुझे महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में दिखाई दी ।
४. ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ द्वारा प्रभामंडल मापने की प्रभावी तकनीक !
नृत्य शोध के अंतर्गत मैंने महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र में तांडवनृत्य किया । उस दिन ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (UAS) नामक उपकरण से मेरा प्रभामंडल मापा गया । मुझे इस विषय में कुतुहल था एवं शोध केंद्र में मुझे उसका प्रत्यक्ष अनुभव मिला । उस उपकरण से स्वयं की आध्यात्मिक शक्ति का प्रभामंडल जाना जा सकता है अथवा नृत्य करने के उपरांत उस प्रभामंडल में होनेवाली वृद्धि-घट भी दिखाई देती है । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की संगीत समन्वयक सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (वर्ष २०२२ में आध्यात्मिक स्तर ६२ प्रतिशत) ने हमें प्रभामंडल में किस प्रकार परिवर्तन होता है, यह बताया । अच्छे से सेवा कर रहे थे ।
ठाणे स्थित घर में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का दर्शन होने की अनुभूति !
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय से हम अपने घर लौटे । तत्पश्चात ३-४ दिन उपरांत मैं प्रातः उठा, तब मुझे मेरे घर में अचानक गुरुदेवजी अर्थात परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का दर्शन हुआ । उस समय वे मुझे प्रत्यक्ष मेरे घर में दिखाई दिए । मेरे मन में विचार आया, ‘मैं मेरे घर में हूं । ये यहां कैसे आए ?’ मैंने कहा ‘‘गुरुजी आप यहां कैसे ?’’ मेरा ध्यान भंग हुआ । उनका दर्शन मुझे इस प्रकार प्रातःकाल हुआ । यह उत्तम अनुभूति हुई । यह अनुभूति बताने पर मेरी पत्नी को भी आश्चर्य हुआ । यह अनुभूति कुछ साक्षात्कार देकर गई ।
‘इस प्रकार डॉक्टरजी का मुझे जो दर्शन हुआ, वह इसी प्रकार सदैव टिका रहे’, यह उनके चरणों में विनती है ।’
मैं उनके सामने छोटा हूं; परंतु मुझे डॉ. आठवलेजी ने ‘संत’ घोषित किया । उन्होंने मुझे पहचाना कि हमारे गुरुदेवजी ने हमें जो नृत्य सिखाया था, वह अन्यों को सिखाते समय मैंने केवल धन के लोभ में नहीं सीखा है । इसलिए डॉ. आठवलेजी ने दी हुई ‘संत’ की पदवी मुझे अत्यंत सार्थक लगी । मैं परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का स्मरण करूंगा कि इसी प्रकार उनकी मुझ पर कृपा बनी रहे । प.पू. भक्तराज महाराजजी की कृपा बनी रहे !’
– पू. डॉ. राजकुमार केतकर, प्रसिद्ध कथक नृत्याचार्य, ठाणे. (२८.४.२०२३)
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा तैयार किए गए साधकों के संबंध में गौरवोद्गार !उत्तम आचरण से सबको अपना बनानेवाले श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई !‘श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई वहां महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के शोध केंद्र का एक उत्तम व्यक्तित्व ! सबको अपना बनानेवाले गिरिजय का आचरण मुझे बहुत भाया । उसने हम सबके साथ भाई के समान प्रेम से व्यवहार किया । उनका तबला वादन वीरश्रीयुक्त एवं उत्साहवर्धक था ।’ उसके साथ अन्य साधक भी आपस में एक-दूसरे को संभालकर अच्छे से सेवा कर रहे थे । – पू. डॉ. राजकुमार केतकर, प्रसिद्ध कथक नृत्याचार्य, ठाणे. |