‘ब्रह्मोत्सव’ के अवसर पर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी जिस रथ में विराजमान थे, उस रथ को खींचने की सेवा करनेवाले साधकों द्वारा उनके चरणों में समर्पित अनुभूतिरूपी कृतज्ञतापुष्प !
११.५.२०२३ को फर्मागुडी (गोवा) में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ८१ वां जन्मोत्सव मनाया गया । इस अवसर पर सप्तर्षि की आज्ञा से ‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का ब्रह्मोत्सव’ संपन्न हुआ । सागौन की लकडी से बनाए गए इस स्वर्णिम रंग के रथ में बैठकर सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने साधकों को दर्शन दिए । इस अवसर पर सप्तर्षि की आज्ञा से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणियां श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी भी रथ में विराजमान थीं । ‘जिस प्रकार किसी मंदिर के रथ को वहां के सेवक खींचते हैं, उसी प्रकार साधकों ने श्रीमन्नारायण का रथ खींचे’, सप्तर्षि की इस आज्ञा के अनुसार साधकों ने साक्षात भगवान का यह रथ खींचा । यह संपूर्ण रथ लकडी से बनाए जाने के कारण उसका वजन ४.५ टन था; परंतु ऐसा होते हुए भी साधकों को इस रथ को खींचते समय किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ । इसके विपरीत, उन्हें विभिन्न अनुभूतियां हुईं ।
श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा साधकों के साथ रख खींचने पर रथ पहले की अपेक्षा हल्का प्रतीत होना
ब्रह्मोत्सव से एक दिन पहले रथ खींचने का अभ्यास करते समय रथ बहुत भारी लग रहा था । उस दिन श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकल गाडगीळजी ने हमारे साथ रथ खींचा । उसके उपरांत ‘यह रथ पहले की अपेक्षा हल्का हो गया है’, ऐसा हम सभी को प्रतीत हुआ ।’
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के रथ में बैठने पर रथ और हल्का हो जाना
कुछ साधकों ने उक्त अनुभूति श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को बताई । उस समय श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने कहा, ‘‘कल जब भगवान (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी) रथ में बैठेंगे, उस समय रथ और हल्का हो जाएगा ।’’ (‘वास्तव में साधकों को भी ऐसी ही अनुभूति हुई ।’ – संकलनकर्ता)
१. ‘रथ का वजन ४.५ टन था । प्रत्यक्ष रूप से रथ खींचते समय हम सभी को रथ हल्का होने की अनुभूति हुई । ‘हम निमित्तमात्र हैं । श्रीमन्नारायण हमसे रथ खिंचवा रहे हैं’, इसे अनुभव करना संभव हुआ । – श्री. दीप पाटणे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
२. ‘हम सभी केवल पैदल चल रहे हैं तथा परात्पर गुरुदेवजी ही हम सब को ले जा रहे हैं’, ऐसा मुझे भीतर से प्रतीत हो रहा था । उसके कारण मेरी बहुत भावजागृति हो रही थी । अभी तक ऐसी भावस्थिति का मुझे कभी भी अनुभव नहीं हुआ था ।’ – श्री. सागर गरुड, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
३. ‘मुझे भगवान के आशीर्वाद मिल रहे हैं । इस जीव की योग्यता न होते हुए भी भगवान ने मुझे इस सेवा का अवसर दिया’, ऐसा लगकर मेरे मन में कृतज्ञभाव उमड आया । रथयात्रा के समय मैं निर्विचार स्थिति का अनुभव कर रहा था ।’ – श्री. परशुराम पाटील, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.