स्थूल से तथा आध्यात्मिक स्तर पर सहायता कर रथनिर्मिति की सेवा में बडा योगदान देनेवाले शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकरजी (आयु ८५ वर्ष) !
सप्तर्षि की आज्ञा से सनातन के साधकों ने शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी (आयु ८५ वर्ष) के मार्गदर्शन में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के लिए लकडी का रथ बनाया । साधकों को ‘रथ कैसे बनाया जाता है ?’, इसकी कोई भी जानकारी नहीं थी । पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा समय-समय पर किए गए मार्गदर्शन के कारण ही यह रथ साकार हो पाया । ‘पू. गुरुजी से साधकों का मिलना, रथनिर्मिति की सेवा में उनके द्वारा किया गया मार्गदर्शन तथा साधकों को प्रतीत हुई उनकी गुणविशेषताएं आगे दे रहे हैं ।
‘रथनिर्मिति के उपलक्ष्य में पू. कवटेकर गुरुजी से भेंट होना’ ईश्वर की इच्छा !
‘साधकों की पू. कवटेकर गुरुजी से भेंट होना तथा उनके द्वारा साधकों से सेवा करवा लेना’, यह सब ईश्वर की इच्छा थी’, यह मेरे ध्यान में आया । उन्होंने साधकों को कुछ भी ‘रेडिमेड’ (तैयार) नहीं दिया । गुरु जैसे होने चाहिए, वैसे ही वे हैं । साधक जब कागज पर रथ की प्रतिकृति बना रहे थे, तब उन्होंने साधकों से कहा, ‘‘आप ऐसे कैसे कर पाएंगे ? आप किसी बडे कक्ष की दीवार पर रथ के नापों के अनुसार चित्र बनाइए, उससे वह आपके लिए अधिक स्पष्ट होगा ।’’ ‘आगे जाकर भगवान इस प्रकार साधकों को एक-एक कला सिखाएंगे !’, यह बात इस उदाहरण से मेरे ध्यान में आई ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (२४.५.२०२३)
१. पंचशिल्पी पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी से हुई भेंट तथा रथ बनाने के विषय में उनके द्वारा साधकों का किया गया मार्गदर्शन !
१ अ. पू. कवटेकर गुरुजी से मिलने पर रथ बनाने के संदर्भ में उनके द्वारा साधकों का मार्गदर्शन किया जाना तथा उनके मार्गदर्शन में अध्ययन करते समय साधकों को रथ बनाने के विषय में आत्मविश्वास प्रतीत होना : ‘रथ के संदर्भ में कौन हमारी सहायता कर सकते हैं ? कौन रथ बनाकर दे सकते हैं अथवा उसके लिए कौन उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं ?’, यह हम ढूंढ रहे थे । इस अवधि में पू. रमानंद गौडाजी ने (सनातन के ७५ वें संत) इस संदर्भ में प्रयास किए । उस समय पू. रमानंद गौडाजी को ज्ञात हुआ कि ‘शिवमोग्गा (कर्नाटक) के पू. काशीनाथ कवटेकर गुरुजी पंचशिल्पी हैं, साथ ही वे रथ भी बनाते हैं ।’
हम पू. कवटेकर गुरुजी के पास गए तथा उनसे मिलकर हमने उन्हें हमारी संकल्पना तथा रथ का बनाया गया मानचित्र दिखाया । मानचित्र देखकर ‘रथ की मजबूती की दृष्टि से तथा रथ और अधिक अच्छा दिखाई दे; इसके लिए उसमें क्या परिवर्तन करने चाहिए ?’, यह उन्होंने हमें सुझाया । वहां २ दिन उन्होंने हमें उनके द्वारा बनाया हुआ रथ दिखाया तथा ‘रथ कैसे होना चाहिए ?’, इस विषय में हमसे अध्ययन करा लिया । पू. गुरुजी ने हमें रथ की ऊंचाई, चौडाई एवं नापों के विषय में सिखाया । ‘रथ के लकडी के जोड किस प्रकार एक-दूसरे में फंस सकेंगे ?’, वह भी उन्होंने हमें बताया । उन्होंने हमें रथ का प्रारूप बनाकर सिखाया ।
पू. कवटेकर गुरुजी के मार्गदर्शन में अध्ययन करते समय साधकों को यह आत्मविश्वास प्रतीत होने लगा कि ‘हम भी रथ बना सकते हैं ।’ तब तक हमारे मन में ‘हमारा अध्ययन पूर्ण होने पर हम किसी अच्छे रथशिल्पी से रथ बना लेंगे’, यह विचार अधिक था; परंतु पू. कवटेकर गुरुजी ने भी साधकों से कहा, ‘‘इस माध्यम से आप अपनी कला श्री गुरुदेवजी के चरणों में समर्पित करें !’’
१ आ. पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा साधकों को रथ का रेखाचित्र बनाने के लिए कहा जाना तथा साधकों द्वारा बनाया गया चित्र उन्हें अच्छा लगना : पू. कवटेकर गुरुजी भोजन के पश्चात कुछ समय विश्राम करते हैं । उन्होंने विश्राम हेतु जाते समय हमें कहा, ‘‘आप रथ का रेखाचित्र तैयार करें ।’’ हमने भोजन के तुरंत पश्चात रेखाचित्र बनाना आरंभ किया । ‘उनके जगने से पूर्व हमारा रेखाचित्र बनकर तैयार हो जाना चाहिए, जिससे उनका समय व्यर्थ न हो’, यह विचार कर हमने रेखाचित्र बनाने का प्रयास किया । पू. गुरुजी के जग जाने के तुरंत पश्चात हमने उन्हें रेखाचित्र दिखाया । उस समय वे कहने लगे, ‘‘अब सही है । ‘आप क्या करेंगे ?, यही मैं देख रहा था ।’’ उससे ‘संत कैसे परीक्षा लेते हैं ?’, यह हमारे ध्यान में आया । वह रेखाचित्र उन्हें अच्छा लगा ।
१ इ. पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा ‘सेवा करते समय भगवान से सहायता लेकर नामजप सहित सेवा करने पर भगवान सहायता करते हैं’, इस विषय में बताई अनुभूति ! : पू. कवटेकर गुरुजी ने इस रथ के संदर्भ में मार्गदर्शन करते समय हमें उनकी एक अनुभूति बताई । वे कहने लगे, ‘‘मैंने एक मंदिर की सेवा ली थी । उस समय उस सेवा के लिए मेरी सहायता के लिए केवल दो ही श्रमिक थे तथा उस सेवा को विशिष्ट समय में संपन्न कराना था । अकस्मात दोनों श्रमिक काम छोडकर चले गए । उस समय मैंने ‘अब क्या करें ?’, यह विचार करते हुए भगवान से प्रार्थना कर सेवा आरंभ की । सेवा करते समय प्रत्येक बार मैं ‘शिवाय शिवाय शिवाय ।’, ऐसा नामजप करता था । मेरी सेवा २० फुट ऊंचाई पर चल रही थी; परंतु तब भी मैं नहीं डरा । इस सेवा में भगवान ने मेरी सहायता की, उसके कारण १५ दिन की सेवा ८ दिन में ही पूर्ण हुई ।’’, यह सुनकर हमें यह सीखने के लिए मिला कि ‘प्रत्येक सेवा नामजप सहित की, तो भगवान सहायता करने ही वाले हैं ।’ इसलिए हमने उस दिशा में प्रयास करना आरंभ किया ।
१ ई. पू. गुरुजी के यहां किए गए अध्ययन के आधार पर श्रीमती जान्हवी शिंदे द्वारा प.पू. गुरुदेवजी के मार्गदर्शन में सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन कर श्रीविष्णुतत्त्व आकृष्ट करनेवाला रथ का प्राथमिक प्रारूप तैयार किया जाना : ‘क्या हम किसी से रथ बनाकर ले सकते हैं ?’, इसका अध्ययन करते समय अंततः सुनिश्चित हुआ कि ‘साधक ही रथ बनाएंगे ।’ हमने रामनाथी आश्रम वापस आने के उपरांत पू. कवटेकर गुरुजी के यहां किए गए अध्ययन के आधार पर श्रीमती जान्हवी शिंदे ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में सूक्ष्म स्पंदनों का अध्ययन कर श्रीविष्णुतत्त्व आकृष्ट करनेवाले रथ का प्राथमिक प्रारूप तैयार किया ।
१ उ. पू. गुरुजी द्वारा रामनाथी आश्रम आकर रथ के विषय में साधकों का मार्गदर्शन किया जाना : पू. कवटेकर गुरुजी की आयु ८५ वर्ष है; परंतु तब भी उन्होंने हमसे कहा, ‘‘आप रामनाथी आश्रम में ही रथ बनाएं । मैं बीच-बीच में आकर आपका मार्गदर्शन करूंगा ।’’ हमने जब-जब उन्हें बुलाया, प्रत्येक बार वे आश्रम आकर हमारा मार्गदर्शन करते थे ।
– श्री. प्रकाश सुतार, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
१ ऊ. पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा बताए सभी प्रायोगिक सूत्रों को ध्यान में लेकर श्रीविष्णुतत्त्व के आकारवाले रथ में आवश्यक परिवर्तन करना : ‘हमने रथ का यह चित्र पू. कवटेकर गुरुजी को दिखाया । पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा उसमें बताए गए सुधार बहुत ही प्रायोगिक स्तर के थे । रथशास्त्र का उनका गहरा अध्ययन था । ‘मात्र चित्र की ओर देखकर ही वे प्रत्यक्ष रथनिर्मिति होने पर कौनसी समस्याएं आ सकती हैं ?, यह बताते थे ।
पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा बताए सूत्रों को ध्यान में लेकर हमने श्रीविष्णुतत्त्व के आकारवाले रथ में परिवर्तन किए । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने हमें इन दोनों चित्रों को पू. गुरुजी के अवलोकन हेतु रखने के लिए कहा । पू. गुरुजी ने ‘वह रथ शहर के संकरे सडक से जानेवाला था; इस परिप्रेक्ष्य में उसकी चौडाई कितनी होनी चाहिए ? उस चौडाई को ध्यान में रखकर उसकी लंबाई कितनी होनी चाहिए, जिससे रथ अच्छा दिखेगा ? रथ मोड पर सहजता से तथा सुरक्षित रूप से मुड सकेगा तथा साधक उसे सहजता से खींच पाएंगे’, ऐसा आकार बताया । उनके अनुभव के आधार पर तैयार रथ की अनेक सूक्ष्मताएं उन्होंने हमें सिखाईं ।’
– श्रीमती जान्हवी रमेश शिंदे, फोंडा, गोवा
(सभी सूत्रों का दिनांक : २४.५.२०२३)
‘साधक साधना में कहां कम पडते हैं ?’, यह बताकर साधना में सहायता करना
हम ५ साधक उनके पास गए थे । पहली भेंट में ही उन्होंने ‘हम साधना में कहां अल्प पडते हैं ? तथा साधना के रूप में हमें क्या करना चाहिए’, यह बताया । उन्होंने जान्हवीदीदी को में उतावलापन तथा उनके मन में धांधली होने का भान करा दिया । ‘मैं (श्री. प्रकाश सुतार) नहीं बोलता’, इसका उन्होंने मुझे भान कराया । कोई सूत्र समझाकर बताने पर वे मुझे बोलने के लिए प्रेरित करने हेतु पुनः मुझसे ही प्रश्न पूछते थे । अन्य कोई उस प्रश्न का उत्तर देने लगते, तो वे उन्हें रोकते । इससे ‘साधकों की साधना हो’, यह उनकी लगन हमारे ध्यान में आई । जैसे प.पू. गुरुदेवजी एवं श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी ‘हमारी साधना हो’, इसके लिए प्रयासरत रहते हैं, वैसे वे हमारी साधना हो; इसके लिए प्रयास कर रहे थे ।’
– श्री. प्रकाश सुतार, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
पू. गुरुजी का परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति भाव !‘पू. कवटेकरगुरुजी संत होने के कारण उनके बताए आकार में सात्त्विकता तो थी ही; परंतु उसके साथ ‘उसमें श्रीविष्णुतत्त्व कैसे लाया जा सकेगा ?’, इस पर प्रयोग कर चित्र पूर्ण किया गया । गुरुजी से प्रायोगिक भाग सीखते समय मुझे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति उनका भाव भी सीखने के लिए मिला । पू. गुरुजी ने कहा, ‘‘गुरु (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) जब रथ में बैठे होंगे, उस समय उनके चरण हमारी आंखों के सामने (स्तर पर) आने चाहिए । प्रत्येक भक्त को गुरुदेवजी के चरण दिखाई देने चाहिए ।’’ ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथ में चढना तथा बैठना’, इस विषय में पू. कवटेकर गुरुजी द्वारा बताए सूत्र सुनकर उससे गुरुदेवजी के प्रति उनका भाव स्पष्ट होता । रथ का शास्त्र सिखाते समय अनेक बार वे हमें बताते, ‘‘आप इसे प.पू. गुरुदेवजी से पूछ लीजिए । वे जैसा कहेंगे, वैसा ही हम करेंगे ।’’ उन्हें इतना ज्ञान होते हुए भी रथ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को अपेक्षित तत्त्व अंतर्भूत होने हेतु रथ के चित्र में परिवर्तन करने पर वे उसका स्वीकार करते थे ।’ – श्रीमती जान्हवी रमेश शिंदे, फोंडा, गोवा. |