वर्ष २०२३ के सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव हेतु रथ बनाने की पृष्ठभूमि !
वर्ष २०२२ के रथोत्सव हेतु किराए पर रथ लाने पर ‘उसे वापस नहीं करना चाहिए’, ऐसा लगना तथा महर्षियों के द्वारा वर्ष २०२३ के रथोत्सव हेतु रथ बनाने की आज्ञा दी जाना
१. वर्ष २०२२ के रथोत्सव हेतु बहुत प्रयास कर किराए पर रथ लाना
‘वर्ष २०२२ के रथोत्सव हेतु रथ बाहर से किराए पर लाया जाए’, ऐसा सुनिश्चित हुआ । रथ का शोध लेने हेतु श्रीमती जान्हवी रमेश शिंदे तथा सहसाधकों ने बहुत परिश्रम किए । हमारे लिए अपेक्षित रथ मिले; इसके लिए साधकों ने बेळगांव, सांगली, मिरज, इचलकरंजी, पुणे, मुंबई जैसे ५-६ स्थानों पर जाकर अनेक रथों का अवलोकन कर अंततः एक रथ अंतिम किया ।
२. रथ में आए देवत्व के कारण उसे वापस करने की मन की तैयारी न होना तथा वैसे प.पू. गुरुदेवजी को बताने पर उनके द्वारा ‘आगे जाकर हमारा रथ तैयार होगा’, ऐसा बताया जाना
रथोत्सव के समय उस रथ में बहुत सुंदर वातावरण बन गया था । उस रथ के साथ जो चालक आया था, उसकी भी आंखें भर आई थीं । उसके कारण उस रथ को वापस भेजने की हमारे मन की तैयारी नहीं हो रही थी । रथोत्सव संपन्न होने के उपरांत हमने (श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी ने) प.पू. गुरुदेवजी से पूछा, ‘‘इस रथ को वापस भेजने के लिए मन तैयार नहीं हो रहा है । क्या हम इस रथ को रख लें ?’’ उस समय प.पू. गुरुदेवजी ने कहा, ‘‘इस रथ को वापस भेजना है न, तो भेजेंगे । आगे जाकर भगवान की इच्छा हो, तो हमारा अपना रथ तैयार होगा ।’’
३. प.पू. गुरुदेवजी के द्वारा ‘रथ को वापस भेजिए, रथ रखने की इच्छा नहीं है; इसलिए रथ को रख लिया, तो वह स्वेच्छा हो जाएगी’, ऐसा बताया जाना
दूसरे दिन रथ वापस भेजते समय हमारी बहुत भावजागृति हुई । उस समय ‘रथ वापस नहीं भेजना चाहिए’, ऐसा हमें लग रहा था । मैंने गुरुदेवजी से पूछा, ‘‘रथ को वापस भेजने के लिए मन तैयार नहीं है ।’’ उस समय उन्होंने कहा, ‘‘अब भेजेंगे । हम उस रथ को रख नहीं सकते न ? तथा वह रथ यहां रहे, यह ईश्वर की इच्छा भी नहीं है । यदि ऐसा है, तो ‘रथ को रख लेना’, हमारी स्वेच्छा होगी । हमें स्वेच्छा से कुछ नहीं करना है ।’’ इस प्रसंग के माध्यम से ईश्वर को हमें कुछ सिखाना था ।’’, यह बात मेरे ध्यान में आई ।
४. उसके कुछ दिन उपरांत ही महर्षिजी ने नाडीवाचन में बताया, ‘अब हमें रथ बनाना है ।’ वर्ष २०२२ के जन्मोत्सव के २ माह उपरांत ही रथ बनाने की सेवा का आरंभ हुआ ।’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२४.५.२०२३)