सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ब्रह्मोत्सव के लिए लकडी का रथ बनाने के संदर्भ में सप्तर्षि द्वारा समय-समय पर साधकों का किया गया मार्गदर्शन !
१.७.२०२२ – काष्ठरथ बनाने के विषय में बताना
अ. ‘वर्ष २०२३ के सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव हेतु संपूर्ण काष्टरथ बनाया जाए । यह रथ वर्ष २०२२ के रथ जैसा गाडी पर बंधा हुआ नहीं होना चाहिए । मंदिर के उत्सव के समय जिस प्रकार भक्त भगवान का रथ खींचते हैं, ठीक उसी प्रकार साधक श्रीविष्णुस्वरूप गुरुदेवजी का रथ खींचें ।
आ. ब्रह्मोत्सव के दिन श्रीविष्णुस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी सहित उनकी आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी भी इस दिव्य रथ में विराजमान हों ।
इ. इस रथ के लिए जिस लकडी का उपयोग किया जानेवाला है, उसका प्रातिनिधिक पूजन गुरुपूर्णिमा के दिन करें । रथ की निर्मिति में पूजन की गई लकडी का उपयोग किया जाए ।
(‘रथ के लिए लाए गए काष्ठ का पूजन १५.७.२०२२ को किया गया । पूजित काष्ठ का उपयोग रथ में सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का आसन बनाने में किया गया है । – संकलनकर्ता)
ई. सागवान की लकडी का रथ बना सकते हैं ।
५.७.२०२२ – रथ बनाने के संदर्भ में स्थित सूक्ष्मताओं के विषय में मार्गदर्शन करना
अ. रथ के पहिए लकडी के हों । पहियों में ‘बेयरिंग’ लगा सकते हैं ।
आ. रथ में कहीं ‘मोटर’ (यंत्र) का उपयोग न किया जाए ।
इ. रथ में सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के आसन (सीट) के ऊपर १ बडा तथा श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के आसनों (सीट) के ऊपर दो छोटे शिखर हों । ये शिखर पीतल के हों तथा उनके कलश तांबे से बनाए जाएं । रथ पर स्थित बडा शिखर श्रीविष्णुतत्त्व का, साथ ही २ छोटे शिखर श्री महालक्ष्मीदेवी तत्त्व के होने चाहिए ।
ई. रथ पर पंचधातु से बनी हनुमानजी की मूर्ति हो । हनुमानजी के हाथ में विजयध्वज हो । ध्वज के एक ओर ‘ॐ’ तथा दूसरी ओर ‘सूर्य’ का शुभचिन्ह हो ।
उ. इस दिव्य रथ का प्रयोजन श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी के लिए होने के कारण उस पर श्रीविष्णुवाहन गरुडदेवता को भी स्थान दिया जाए । देवता समान श्री गरुडदेवता के हाथ में सामान्यतः जैसे नाग होते हैं, वैसे नाग न हों ।
ऊ. रथ पर श्रीविष्णुतत्त्व की कलाकारी हो ।
ए. ‘रथ में श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) सिंगबाळजी के आसन के पास सूर्य तथा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के आसन के पास चंद्र का शुभचिह्न हो ।
ऐ. रथ के सामने वाहन के रूप में हाथी, घोडे; ऐसा कुछ न हो ।
ओ. रथ को रस्सियों की सहायता से ही खींचा जाए । (‘तिरुपति बालाजी तथा पुरी की श्री जगन्नाथ रथयात्रा में इन रस्सियों की सहायता से भक्त ही रथ खींचते हैं । ‘सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी का जन्मोत्सव श्री बालाजी के जन्मोत्सव के ब्रह्मोत्सव की भांति ही मनाया जाए’, सप्तर्षियों की ऐसी इच्छा होने के कारण उन्होंने रस्सियों की सहायता से ही रथ खींचने के लिए कहा ।’ – संकलनकर्ता)
अन्य सूत्र
अ. ३०.१०.२०२२ को साधकों द्वारा पू. काशीनाथ कवटेकरजी के मार्गदर्शन में अध्ययन कर बनाया गया रथ का प्राथमिक प्रारूप (डिजाइन) सप्तर्षियों को दिखाया; जिसे सप्तर्षियों ने उचित कहा ।
आ. १६.११.२०२२ को सप्तर्षियों ने सूचित किया, ‘‘पूर्णिमा अथवा श्रवण नक्षत्र के समय आश्रम में पूजन कर रथ का निर्माणकार्य आरंभ किया जाए ।’’ (‘२६.१२.२०२२ को श्रवण नक्षत्र के रहते रथ का निर्माणकार्य आरंभ किया गया ।’ – संकलनकर्ता)
इ. ६.१.२०२३ को रथ के एक्सल के संदर्भ में शंका पूछने पर सप्तर्षियों ने बताया, ‘‘पंचशिल्पकार पू. काशीनाथ कवटेकरजी के बताए अनुसार रथ का आस (जिसके चारों ओर पहिया घूमता है, वह धुरी (axle) एक्सल) लोहे की हो, तो चलेगा । ‘रथ साधक भी खींच पाएं तथा गाडी से भी रथ को खींचा जाए; इस प्रकार से हम दोनों ही सुविधाओं का प्रबंध करेंगे ।’’
ई. १९.१.२०२३ को साधकों द्वारा रथ पर उकेरी गई आवश्यक कलाकारी महर्षियों के अवलोकन हेतु भेजी गई । उस समय महर्षिजी ने, ‘कलाकारी अच्छी हुई है’, ऐसा कहकर साधकों की प्रशंसा की ।
उ. २४.४.२०२३ को सप्तर्षियों ने रथ की सजावट के विषय में मार्गदर्शन किया । ‘ब्रह्मोत्सव के दिन बेला (मोगरा) के फूलों से इस दिव्य रथ की सजावट की जाए । उस दिन गुरुदेवजी को बेला के फूलों का हार पहनाया जाए । सप्तर्षियों ने कहा, ‘श्रीसत्शक्ति एवं श्रीचित्शक्ति भी उस दिन बेला के फूलों की माला अपने केश में लगाएं ।’ (‘ब्रह्मोत्सव के दिन सप्तर्षियों के बताए अनुसार किया गया ।’ – संकलनकर्ता)
– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (मई २०२३)