‘पतंजलि आयुर्वेद’ के कथित विज्ञापनों के प्रकरण में दिखाई दिया सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का हिन्दूद्वेष !
१. ‘पतंजलि आयुर्वेद’ के विज्ञापनों के विरुद्ध न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट !
‘सामान्यतः गंभीर बीमारी ‘कोविड’ के सामने एलोपैथी औषधियों ने घुटने टेक दिए थे । उस समय लोगों ने आयुर्वेद के अनुसार काढे लेना, वनस्पतियों का सेवन करना, होम्योपैथी के अनुसार औषधियां लेना इत्यादि पारंपरिक पद्धति से उपचार आरंभ किए थे । भारतीयों को उससे बडा लाभ तो मिला ही; परंतु साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे स्वीकृति भी मिली । उस काल में एलोपैथी के कारण कुछ लोगों का कोविड स्वस्थ हुआ, तो कुछ लोगों की मृत्यु हुई । इस पृष्ठभूमि पर ‘पतंजलि उद्योग’ के योगऋषि बाबा रामदेव ने कोविड को समूल नष्ट करने हेतु कुछ विज्ञापन प्रसारित किए, इसके साथ ही उन्होंने मधुमेह, रक्तचाप आदि असाध्य बीमारियां दूर होना, साथ ही ‘कोलेस्ट्रॉल’ न्यून करने के विषय में भी कुछ विज्ञापन प्रसारित किए । यह विज्ञापनों का युग है । दूरदर्शन पर प्रतिदिन अश्लील तथा मनुष्य का जीवन संकट में आएगा, ऐसे विज्ञापन दिखाए जाते हैं । जब अश्लील विज्ञापनों के विरुद्ध सर्वाेच्च न्यायालय में अभियोग प्रविष्ट किया जाता है, तो उन पर अंकुश रखनेयोग्य सक्षम कानून नहीं हैं, ऐसा कहकर सर्वोच्च न्यायालय असमर्थता दर्शाता है । इस पृष्ठभूमि पर बाबा रामदेव के विज्ञापनों पर आपत्ति दर्शाई जाती है ।
डॉ. बाबू के. ने उत्तराखंड सरकार को ‘पतंजलि आयुर्वेद’ के विरुद्ध अनेक ज्ञापन प्रस्तुत किए । उसके उपरांत इन विज्ञापनों पर विचार नहीं किया गया; इसलिए रिट याचिका प्रविष्ट की गई । उसमें प्रमुखता से डॉ. बाबू का यह कहना था कि ये विज्ञापन झूठे हैं । उनसे बीमारी ठीक होना तो दूर रहा; परंतु समाज का दिशाभ्रम किया जाता है । उसका किसी प्रकार का वैज्ञानिक आधार नहीं है । अतः ऐसे विज्ञापनों को तुरंत बंद किया जाना चाहिए, साथ ही न्यायालय उत्तराखंड सरकार को इस प्रकार से आदेश दें । अगस्त २०२२ में यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा तथा उस पर कुछ आदेश दिए गए । उत्तराखंड सरकार ने उसका पालन नहीं किया, यह सूत्र इसमें लिया गया था ।
कुछ ही दिन पूर्व यह बात सामने आई है कि सर्वाेच्च न्यायालय ने योगऋषि बाबा रामदेव तथा ‘पतंजलि आयुर्वेद’ के प्रबंध निदेशक आचार्य बाळकृष्ण को अगले सप्ताह में सार्वजनिक रूप से जनता से क्षमायाचना करने के निर्देश दिए हैं ।
२. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एहसाउद्दीन अमानुल्ला के द्वारा योगऋषि बाबा रामदेव का द्वेष
२१.१.२०२३ को यह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एहसाउद्दीन अमानुल्ला की पीठ में था । उन्होंने पहले दिन से ही योगऋषि बाबा रामदेव को अपमानित करने का बीडा उठाया था । उसके उपरांत कभी-कभी यह प्रकरण सर्वाेच्च न्यायालय में आया, उस समय अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों की अपेक्षा अमानुल्ला ने इस पर बोलने का अधिक अवसर लिया । उन्होंने प्रत्येक बार ‘हम तुम्हें १ करोड रुपए का आर्थिक दंड लगाएंगे’, ‘आपको पाठ पढाएंगे’, इस प्रकार के वक्तव्य दिए । प्रसारमाध्यमों में इस विषय में समाचार प्रकाशित हुए । इसमें ‘१ करोड रुपए का आर्थिक दंड लगाएंगे’, इस धमकी के समान आदेश का समाचार बडे स्तर पर प्रसारित किया गया ।
बीच के काल में योगऋषि बाबा रामदेव ने उनके सहयोगी बालकृष्ण के साथ क्षमायाचना की (माफीनामा दिया) इसमें आश्चर्य की बात यह है कि ‘यह क्षमायाचना पर्याप्त नहीं है; क्योंकि उसमें प्रामाणिकता नहीं है’, इस कारण से सुनवाई पुनः लंबी खींची गई । ८.४.२०२४ को योगऋषि बाबा रामदेव एवं बालकृष्ण ने इस दिन न्यायालय की अवमानना करने के प्रकरण में पुनः एक बार खेद व्यक्त किया, जिसे माध्यमों ने ‘माफीनामा’ कहकर अवहेलना की । उन्होंने उत्तराखंड के अधिकारियों के प्रति भी रोष व्यक्त किया । न्यायालय में घिनौने वक्तव्य दिए गए । इससे ध्यान में आता है कि पतंजलि एवं योगऋषि बाबा रामदेव को लक्ष्य किया जा रहा है ।
३. चिकित्सकीय क्षेत्र के माफियाओं के द्वारा आयुर्वेद एवं योगऋषि बाबा रामदेव को जानबूझकर लक्ष्य बनाया जाना !
संपूर्ण आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति सहस्रों वर्षाें से कार्यरत है तथा मनुष्यजाति उसके बहुत सुंदर परिणाम अनुभव कर रही है; परंतु उसे भी लक्ष्य बनाया जा रहा है । एलोपैथी कुछ शताब्दी पुरानी चिकित्सा-पद्धति है । ये उपचार अत्यंत खर्चीले एवं रोगी का उत्पीडन करनेवाले होते हैं । एलोपैथी से बीमारियां तो दूर होती हैं; परंतु उसमें भी अनेक दोष दिखाई देते हैं, यह सर्वविदित है । इसलिए विगत कुछ वर्षाें से लोग एलाेपैथी से आयुर्वेद की ओर मुड गए हैं । इस विवाद का यही मुख्य कारण है ।
देश में हिन्दुत्वनिष्ठ सरकार आने के उपरांत वह भारत की संस्कृति एवं भारत की पौराणिक उच्च परंपराओं से संवर्धन हेतु प्रयासरत है । उसके लिए स्वतंत्र रूप से आयुष मंत्रालय स्थापित किया गया तथा यही एलोपैथीवालों की पीडा है । उसके कारण उन्होंने किसी भी प्रकार से आयुर्वेद का विरोध करना तथा पतंजलि के योगऋषि बाबा रामदेव पर कीचड उछालना आरंभ किया । एलोपैथी भारत का बाजार गंवाना नहीं चाहता; उसके कारण उनकी औषधिनिर्माता प्रतिष्ठान यहां के डॉक्टरों को विभिन्न प्रकार के लालच देते हैं, जिससे निष्पाप भारतीय रोगियों के साथ धोखाधडी की जाती है । इसी के एक अंश के रूप में योगऋषि बाबा रामदेव को लक्ष्य बनाना आरंभ किया गया । बाबा रामदेव ने कहा, ‘‘चिकित्सकीय क्षेत्र के माफिया मेरे पीछे पडे हैं । पैसा सत्य एवं असत्य का निर्णय नहीं कर सकता ।’’
४. हिन्दू धर्म एवं हिन्दुत्वनिष्ठों की अवमानना करने की सर्वोच्च न्यायालय की बडी परंपरा !
अ. अभी तक जिहादी आतंकियों ने देश के अनेक स्थानों पर बमविस्फोट किए, जिनमें सहस्रों निर्दाेष जीव मारे गए । भ्रष्ट राजनेताओं के प्रचंड आर्थिक भ्रष्टाचार के अनेक प्रकरण न्यायालयों में आए, साथ ही माओवादी अथवा नक्सलियों के अनेक आक्रमण हुए । ऐसे सभी प्रकरण जब सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंचे, तब सर्वाेच्च न्यायालय ने कभी भी उन आरोपियों के विरुद्ध कभी भी इतनी कठोर भूमिका नहीं ली । उनके अंतरराष्ट्रीय परिणामों को सामने रखकर भारत सरकार की ओर से उनके लिए भारत सरकार की ओर से मान्यवर अधिवक्ता उपलब्ध कराना, साथ ही उनके लिए रात में भी न्यायालय खुले रखने की भी घटनाएं हुईं । घातक दंगे, ‘लव जिहाद’ के अंतर्गत निर्दाेष युवतियों की हत्याओं के संदर्भ में भी सर्वाेच्च न्यायालय में अनेक प्रकरण आए; परंतु उस समय भी शांति से इन प्रकरणों पर काम चला ।
आ. भाजपा की प्रवक्ता नुपूर शर्मा द्वारा दिए गए कथित वक्तव्य के विरुद्ध केवल भारत से ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व से धर्मांधों ने धमकियां दीं; परंतु तब भी न्यायतंत्र शांत रहा । नुपूर शर्मा के विरुद्ध संपूर्ण देश में प्रविष्ट आपराधिक अभियोगों को एक ही राज्य में स्थानांतरित करने की जब मांग की गई, तब उस पर सर्वोच्च न्यायालय ने क्षोभ व्यक्त किया । उस समय न्यायालय ने नुपूर शर्मा से कहा, ‘‘आप देश से क्षमा मांगें । संपूर्ण देश में यह जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसके लिए आप अकेली उत्तरदायी हैं ।’’
इ. धर्मांध चित्रकार एम.एफ. हुसैन ने हिन्दू देवी-देवता तथा भारतमाता के नग्न चित्र बनाए । उस समय उनके विरुद्ध संपूर्ण देश में अनेक अभियोग प्रविष्ट हुए, उस समय संपूर्ण देश में उनके विरुद्ध प्रविष्ट १ सहस्र २०० से आधिक आपराधिक शिकायतें रद्द की गई ।
ई. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद चलानेवाले डॉ. जाकीर नाइक के विरुद्ध देश के विभिन्न राज्यों में प्रविष्ट सभी प्रकरणों को एकत्रित रूप से एक ही राज्य में सुनवाई के लिए लेने का आदेश दिया गया ।
उ. विगत १० वर्षाें से हिन्दुत्वनिष्ठों के द्वेषमूलक वक्तव्यों के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मांधों के लिए अनुकूल आदेश दिए । दक्षिण के शासनकर्ता एवं धर्मांधों ने जब-जब हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को नष्ट करने के संबंध में वक्तव्य दिए, तब भी सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें फटकार नहीं लगाई; परंतु उसके विपरीत ‘रामचरितमानस को जला दीजिए’, ऐसा बोलनेवाले बिहार के स्वामीप्रसाद मौर्य के विरुद्ध आपराधिक अभियोग पर रोक लगाने की मांग करनेवाला अभियोग जब सर्वोच्च न्यायालय में आया, उस समय उस आपराधिक प्रक्रिया पर रोक लगाई गई ।
ऊ. केजरीवाल एवं राहुल गांधी के द्वारा क्षमायाचना करने पर उनका ‘माफीनामा’ स्वीकार किया जाता है, उसी प्रकार प्रशांत भूषण द्वारा क्षमायाचना करने के प्रकरण में निर्णय न होने से सर्वोच्च न्यायालय ने उनपर केवल १ रुपए का आर्थिक दंड लगाकर इस प्रकरण का निपटारा किया । ऐसे अनेक प्रकरणों में कभी भी न्यायालय ने कभी कठोर कदम नहीं उठाए । उक्त उल्लेखित व्यक्तियों को अपमानित नहीं किया जाता तथा उनके साथ ध्यानपूर्वक व्यवहार किया जाता है ।
५. सर्वाेच्च न्यायालय की अवमाननापूर्व भाषा के संदर्भ में पूर्व न्यायाधीशों की तीव्र प्रतिक्रिया
योगऋषि बाबा रामदेव, नुपूर शर्मा, कथित द्वेषमूलक वक्तव्य देनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ नेताओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय उनके साथ अपमानजनक व्यवहार क्यों करता है ? न्यायाधीश हिमा कोहली एवं न्यायाधीश एहसानुद्दीन अमानुल्ला ने न्यायालय में जो वक्तव्य दिया तथा जिस भाषा का प्रयोग किया, उसपर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधिशों ने क्षोभ व्यक्त किया, साथ ही उन्होंने ‘न्यायदान करते समय न्यायाधीशों का आचरण कैसा हो ?, इस विषय में सर्वाेच्च न्यायालय में इससे पूर्व चले कुछ अभियोगों का अवलोकन करने का सुझाव भी दिया ।
सर्वाेच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने सर्वाेच्च न्यायालय के सामने यह प्रश्न उठाते हुए लिखा, ‘हम आपको मार डालेंगे’, ‘हम आप पर कुछ करोड रुपए का आर्थिक दंड लगाएंगे’, इस प्रकार की भाषा सडक पर चलनेवाले झगडों में सुनने को मिलती है; परंतु ऐसी भाषा का प्रयोग यदि न्यायालय में किया जाता है, तो क्या वह उचित है ?’ कुल मिलाकर भारत में जब ‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना होगी, उस समय न्यायाधीश रामशास्त्री प्रभुणे को अपेक्षित न्यायतंत्र बनाया जाएगा !’
(१४.४.२०२४)
श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।
– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, मुंबई उच्च न्यायालय