वास्तुदोष निवारण हेतु संपन्न किए गए रत्नसंस्कार अनुष्ठान से संबंधित शोधकार्य !
‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण की सहायता से किया गया वैज्ञानिक परीक्षण
‘एक साधक के यहां १९.८.२०२३ को वास्तुदोष निवारण हेतु रत्नसंस्कार अनुष्ठान किया गया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से इस अनुष्ठान का ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ उपकरण की सहायता से वैज्ञानिक परीक्षण किया गया । इस उपकरण से वस्तु, वास्तु एवं व्यक्ति में विद्यमान नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा की मीटर में गणना की जा सकती है । रत्नसंस्कार अनुष्ठान करने से वास्तु पर सकारात्मक परिणाम होते हैं, यह इस शोध से प्रमाणित हुआ । इस शोध के अंतर्गत किए गए परीक्षणों में प्राप्त निरीक्षणों का विवेचन आगे दिया गया है –
१. आध्यात्मिक स्तर के उपाय (टिप्पणी) करने से रत्नों पर स्थित कष्टदायक स्पंदनों का आवरण नष्ट होकर रत्नों में स्थित सकारात्मक स्पंदनों में बहुत वृद्धि होना
कलियुग का वातावरण रज-तमप्रधान होने से रत्नों पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण होता है । उसके कारण रत्नों पर आध्यात्मिक उपचार कर उनकी शुद्धि करने के उपरांत ही अनुष्ठान में उनका उपयोग करें ।
टिप्पणी : परीक्षण के लिए गए रत्नों को सात्त्विक उदबत्ती (अगरबत्ती) का धुआं देना, उनपर विभूति फूंकना, संतों के भजन चलाना (रत्नों के पास संतों के स्वरों में रचित भजन चलाने से रत्न संतों के चैतन्य से संचारित होते हैं) इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के उपचार किए ।
२. रत्नसंस्कार अनुष्ठान करने पर भूमि में विद्यमान नकारात्मक स्पंदन नष्ट होकर भूमि में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होना
रत्नसंस्कार अनुष्ठान से पूर्व घर की प्रत्येक दिशा में स्थित भूमि के निरीक्षण किए गए, उस समय भूमि में किसी प्रकार के सकारात्मक स्पंदन नहीं थे, अपितु बहुत नकारात्मक स्पंदन दिखाई दिए; परंतु रत्न संस्कार अनुष्ठान के उपरांत भूमि में विद्यमान नकारात्मक स्पंदन नष्ट होकर भूमि में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न हुई । रत्नसंस्कार किए गए प्रत्येक दिशा के निरीक्षण निम्न सारणी में दिए गए हैं –
३. रत्नसंस्कार अनुष्ठान के कारण घर में स्थित नकारात्मक स्पंदन नष्ट होकर घर में बहुत सात्त्विकता उत्पन्न होना
‘रत्नसंस्कार अनुष्ठान का घर पर क्या परिणाम होता है ?’, इसके अध्ययन हेतु अनुष्ठान के पूर्व तथा अनुष्ठान के उपरांत घर के छायाचित्र खींचकर उनके निरीक्षण किए गए । इन निरीक्षणों से यह ध्यान में आया कि अनुष्ठान के पूर्व घर में बिल्कुल भी सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी, अपितु ७४१.५० मीटर नकारात्मक ऊर्जा थी; परंतु अनुष्ठान के उपरांत घर में स्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर घर में ३६१.५० मीटर तक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई । संक्षेप में कहा जाए, तो जिस उद्देश्य से घर में रत्नसंस्कार अनुष्ठान किया गया, वह सफल हुआ । यह शोधकार्य सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से संपन्न हुआ, इसके लिए उनके चरणों में कृतज्ञता !’
– श्री. धनंजय कर्वे, वास्तु अध्येता, फोंडा, गोवा एवं श्रीमती मधुरा कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (२०.८.२०२३)
ई-मेल : mav.research2014@gmail.com
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