धर्मप्रेम बढाएं और धर्माभिमानी बनें !

बच्चो, यदि कोई पथिक आपके द्वार पर आकर जल मांगे व आप उठकर उसे देनेमें टालमटोल करें, तो मां रसोईघर से आपको बताती है, ‘‘किसी को पानी देने में आनाकानी नहीं करते । यह हमारा कर्तव्य है  ।’’

रक्षाबंधन के दिन बहन द्वारा राखी बंधवाते समय पिताजी भाई को स्मरण कराते हैं, ‘‘बहन की रक्षा करना भाई का धर्म है ।’’

पाठशाला में अतिथि भाषण में बताते हैं, ‘‘पढना विद्यार्थी का धर्म है  ।’’

इस प्रकार, ‘धर्म’ शब्द कई बार आपके सुनने में आया होगा । इसलिए ‘धर्म क्या है’, ऐसा प्रश्न आपके मन में आया होगा न ? ‘धर्म’ अर्थात मनुष्य सहित सर्व प्राणिमात्रों के कल्याण हेतु ईश्वर द्वारा बनाए गए नियम !

१. धर्म का महत्त्व

१ अ. धर्म का अधिष्ठान होने पर राष्ट्र तथा वहां की प्रजा सर्व दृष्टि से सुखी होना

बच्चो, छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ के संदर्भ में समर्थ रामदासस्वामीजी के गौरवोद्गार इस प्रकार हैं – सभी पापियों का संहार हुआ । हिन्दुस्थान संपन्न हो गया । अधर्मियों का नाश हुआ और धरा पर आनंद छाया !

सभी को आनंद देनेवाला राज्य शिवाजी महाराज कैसे स्थापित कर पाए ? पहला कारण है बाहुबल और दूसरा धर्मबल । छत्रपति शिवाजी अपनी कुलदेवी श्री भवानीमाता के बडे भक्त थे । समर्थ रामदासस्वामीजी तथा संत तुकाराम महाराजजी जैसे संतों ने उन्हें आशीर्वाद दिए; क्योंकि शिवाजी धर्म का आचरण करते थे । शिवाजी धर्माचरण करते थे; इसलिए उनकी प्रजा भी धर्म का पालन करती थी । परिणामस्वरूप, ‘हिन्दवी स्वराज्य’ सर्व दृष्टि से आदर्श एवं सुखसंपन्न राज्य था ।

राजा चंद्रगुप्त को उनके आचार्य चाणक्य के आशीर्वाद थे; इसलिए वे विशाल मगध राज्य को सुखी कर पाए । राजा हरिहर तथा बुक्कराय को उनके गुरु विद्यारण्यस्वामी से आशीर्वाद प्राप्त थे; इसलिए वे विजयनगर को वैभवशाली साम्राज्य बना सके । ऐसे कई उदाहरण गिनाए जा सकते हैं ।

बच्चो, यह न भूलें कि ‘धर्म’ राष्ट्र का प्राण है । राष्ट्र को धर्म का अधिष्ठान हो, राजा तथा प्रजा दोनों धर्मपालक हों, तभी राष्ट्र सभी संकटों से मुक्त और सुखी बनता है !

२. धर्मशिक्षा की आवश्यकता

बच्चो, धर्म का महत्त्व समझने पर धर्म से प्रेम होता है और प्रत्यक्ष धर्माचरण करने पर वह प्रेम बढता है । धर्माचरण होने के लिए धर्मशिक्षा की आवश्यकता होती है ।

२ अ. आज की पीढी का धर्मशिक्षा से वंचित रहने का कारण : अंग्रेजों द्वारा थोपी गई मैकाले की शिक्षापद्धति के कारण हिन्दुओं की कई पीढियां धर्मशिक्षा से दूर हो गईं । स्वतंत्रताप्राप्ति के उपरांत भी उसी शिक्षापद्धति का अवलंबन होने से आज के बच्चे धर्मशिक्षा से वंचित हो गए हैं ।

२ आ. हिन्दू बच्चों को धर्मशिक्षा की आवश्यकता है, यह दर्शानेवाला प्रसंग तथा उदाहरण

१. देवताको नमस्कार कैसे करें, इससे भी अनभिज्ञ बच्चे !

अनुचित पद्धति : कुछ बच्चे देवता को नमस्कार करते समय एक हाथ से पहले माथे को स्पर्श कर वही हाथ नीचे लाकर छाती के बाएं तथा दाएं स्पर्श कर एक ही हाथ से नमस्कार करते हैं । इसलिए उन्हें उस नमस्कार करने पर कोई लाभ नहीं होता ।

उचित पद्धति : दोनों हाथ जोडकर देवता को नमस्कार करने से हाथों की उंगलियों द्वारा ईश्वरीय शक्ति तथा चैतन्य ग्रहण होता है और वह माथे से लगाए अंगूठों के माध्यम से आज्ञाचक्र और वहां से व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है ।

२ इ. देवताओं की अवमानना पर हंसनेवाले बच्चे ! : पाठशाला में प्रस्तुत नाटिका में देवताओं पर किए जानेवाले हास्यविनोद पर कुछ बच्चे तालियां बजाकर आनंद व्यक्त करते हैं अथवा देवता बने पात्र के मुख से अश्लील संवाद सुनकर हंसते हैं । देवताओं के संदर्भ में किए जानेवाले ऐसे कृत्य, देवताओं का अनादर है और इससे पाप लगता है । साथ ही ऐसे अनादर का समर्थन करने से हम भी उस पाप में सहभागी बनते हैं, यह भी बच्चों की समझ में नहीं आता ।

ऐसे अनुचित कृत्य धर्मशिक्षा के अभाव के कारण ही बच्चों से होते हैं । यदि उन्हें धर्मशिक्षा दी जाए, तो ये बच्चे धर्माचरण करेंगे और उन्हें आध्यात्मिक अनुभूतियां भी होंगी ।

३. धर्माचरण करें !

बच्चो, धर्माचरण करने से धर्म के प्रति प्रेम बढता है और अभिमान उत्पन्न होता है । धर्माचरण से ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वे संकट में हमारी रक्षा भी करते हैं । बच्चो, मुसलमान बच्चे नमाज का समय होते ही बिना संकोच किए मार्ग में, रेल में कहीं भी सब के सामने नमाज पढने लगते हैं । इससे उनकी धर्माचरण की लगन दिखाई देती है । आप भी घर पर तथा अन्यत्र धर्माचरण करने में संकोच न करें ।

३ अ १. धर्माचरण के कुछ दैनिक कृत्य

अ. प्रतिदिन स्नान के उपरांत देवपूजा करें !

आ. बच्चे माथे पर खडा तिलक लगाकर तथा लडकियां गोल कुमकुम लगाकर पाठशाला जाएं !