आदर्श युवा पीढी के अपेक्षित कर्तव्य !
संस्कृति एवं राष्ट्र के माध्यम से तैयार होनेवाला युवा !
१. युवाओ, सनातन हिन्दू संस्कृति का महत्त्व समझकर उसे स्वीकार करें !
आज संपूर्ण संसार में भारतीय वेद, परंपरा आदि का आकर्षण बढ रहा है तथा उस पर पश्चिमी बडी मात्रा में शोध कर रहे हैं । अनेक वैज्ञानिक शोधों की जडें वेदों में मिलती हैं । अनेक पश्चिमी यहां की संस्कृति का महत्त्व समझकर मनःशांति के लिए सनातन हिन्दू संस्कृति के समान आचरण एवं साधना करने लगे हैं । यह ध्यान में रखकर युवाओं को महान भारतीय ऋषि-मुनियों की संस्कृति का अध्ययन कर उसका सार्थ अभिमान रखने के साथ ही उस संस्कृति को स्वीकार करना प्रारंभ करना चाहिए, अर्थात धर्म का महत्त्व समझकर धर्माभिमान रखकर धर्माचरण करना चाहिए । इससे ही युवाओं को हिन्दू राष्ट्र एवं संस्कृति का महत्त्व ज्ञात होगा । उससे ही धर्म समझ में आएगा एवं युवाओं का आत्मसम्मान जागृत होगा ।
२. युवाओ, वैचारिक परिवर्तन करने के लिए सक्रिय बनो !
स्व. राजीव दीक्षित ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठानों के अर्थकारण का षड्यंत्र उजागर किया तथा भारतीय आहार-विहार का महत्त्व ध्यान में लाकर दिया । सनातन संस्था, हिन्दू जनजागृति समिति, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के माध्यम से हिन्दू संस्कृति के आहार, विहार, पोषाक, केशभूषा, अलंकार आदि सभी का तथा उस अनुषंग से सत्त्वप्रधान हिन्दू संस्कृति से संबंधित वैज्ञानिक शोध एवं उसका शास्त्रीय महत्त्व विविध माध्यमों से समाज तक पहुंचा रही है । स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद घोष आदि संतों ने भी विदेश में जाकर भारतीय संस्कृति एवं धर्म का महत्त्व बताया । आज भोगवाद के दुष्परिणामों से त्रस्त होने के कारण विदेशी लोग भारतीय संस्कृति के समान धर्माचरण कर रहे हैं; परंतु भारत में तथाकथित आधुनिकतावादी एवं बुद्धिवादी साम्यवाद को पकडकर हिन्दुओं का धर्मशास्त्र, प्रथा परंपरा आदि का विरोध कर रहे हैं एवं समाज का बुद्धिभेद कर रहे हैं । इसलिए सुखी एवं समृद्ध जीवन देनेवाला हिन्दू धर्म एवं धर्माचरण का महत्त्व युवाओं में विविध माध्यमों से कैसे पहुंचेगा ? उनमें वैचारिक चर्चा कैसे होगी ? यह देखना आज के युवाओं का प्रथम राष्ट्र एवं धर्म कर्तव्य सिद्ध होगा !
– श्री. आनंद जाखोटिया, राजस्थान समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति
बालको, आदर्श बनने के लिए ये कृति भी करें !
♦ दिए हुए वचन एवं समय का सदैव पालन करें ।
♦ घर से बाहर निकलते समय प्रत्येक बार देवताओं को नमस्कार करें एवं घर के बडे व्यक्तियों को अपने जाने का स्थान बताएं ।
♦ कोई परिचित मिलने पर स्मित हास्य कर नमस्कार करें । सबके साथ नम्र व्यवहार करें । आयु से बडे व्यक्ति, विद्वान तथा संतों का आदर करें ।
♦ सबके साथ प्रेम से व्यवहार करें तथा आवश्यकता अनुसार उनकी सहायता करें ।
♦ किसी का बुरा न सोचें अथवा किसी को दुःखी न करें ।
♦ किसी से मजाक अथवा किसी की निंदा न करें ।
♦ स्वयं को मिला हुआ ज्ञान अन्यों को भी दें; क्योंकि ज्ञान देने से वह बढता है ।