संपादकीय : ‘ममता’ का द्वेष !

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री,  बंगाल

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हिन्दूद्वेष, देशद्रोह, जातिवाद, साथ ही अल्पसंख्यकों से प्रेम होने के कारण उनका समर्थन, घुसपैठियों को शरण देने जैसी सभी बातें भारतीय भली-भांति जानते हैं । अब उसमें पुनः एक बार जुड गए हैं, उनके उद्दंडतापूर्ण वक्तव्य ! ईद के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य तो केंद्र सरकार को एक प्रकार से दी गई चुनौती ही सिद्ध होगी, ऐसे हैं । उन्होंने कहा, ‘‘बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण कानून तथा समान नागरिकता कानून को हम लागू नहीं करने देंगे । चुनाव के समय कुछ लोग दंगे कराने का प्रयास करेंगे; परंतु आप उनके झांसे में न आएं ।’’ वास्तव में देखा जाए, तो भारत में हिंसा कौन करवाते हैं ? किन लोगों से दंगे करवाए जाते हैं ? वहां होनेवाले रक्तरंजित संघर्ष के उत्तरदायी कौन हैं ?, यह सभी भली-भांति जानते हैं; परंतु ममता दीदी उस विषय में एक शब्द नहीं बोलतीं । ‘अपने दही को खट्टा कौन कहेगा ?’, यही उनकी मानसिकता है । वास्तव में देखा जाए, तो जिस देश में रहना है, उस देश के विरुद्ध बोलना, बन रहे अच्छे कानूनों को सीधे अस्वीकार करने का तथा उन्हें न मानने का साहस कोई लोकतंत्र विरोधी व्यक्ति ही कर सकता है । ममता के आचरण से इसी की प्रतीति होती है । मनगढंत वक्तव्य देनेवालों को पहले लोकतंत्र की व्याख्या समझ लेनी चाहिए । भारत में रहकर सरकार की बात न सुनकर अपनी ही बात चलाने का कार्य ममता के द्वारा चलता ही रहता है । ‘जिन्हें भारत के नियम एवं कानून अच्छे नहीं लगते, वे खुशी से बांग्लादेश चले जाएं’, ऐसा भारतीयों को अर्थात हिन्दुओं को लगता है ।

बाहर की परिस्थिति का बंगाल के उनके संबंधियों पर (अल्पसंख्यकों पर) कोई भी परिणाम न हो तथा बंगाल में हिन्दुओं को छोडकर अन्य धर्मियों के प्रार्थनास्थल टिके रहे, यह ममता के उक्त वक्तव्यों का संकेत है, यह समझ न सकें, इतने हिन्दू नासमझ नहीं हैं ! उन प्रार्थनास्थलों परछत्रछाया बनी रहे, साथ ही अन्य धर्मियों के एकत्रित मत स्वयं को मिले, साथ ही मस्तक पर स्थित मुख्यमंत्री पद का मुकुट अबाधित रहे, इतनी ही ममता की छोटीसी (?) अपेक्षा होती है । ममता बानो अपने मतदाताओं के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने का पुरजोर प्रयास करती हैं । ममता बनर्जी के विषय में अब तक की गई चर्चा औचित्यहीन है, यह सत्य है; परंतु उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती; क्योंकि इस प्रकार से कट्टरपंथियों का तुष्टीकरण कर यह दीदी भारत को विनाश की खाई में ढकेलना चाह रही हैं । इसलिए ऐसे व्यक्तित्व का गंभीरता से अध्ययन करना तथा समय-समय पर उनके विरुद्ध आवाज उठाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य ही है ।

पाखंड की परिसीमा !

इससे पहले भी कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विषय में वक्तव्य देते हुए किसी भी प्रकार की लज्जा नहीं रखी थी । उन्होंने कहा था, ‘‘मैंने अभी तक मोदी जैसा झूठा प्रधानमंत्री नहीं देखा । उन्हें तमाचा मारने का मन करता है ।’’ उनके वक्तव्यों पर कोई बंधन नहीं रह गया है । केवल बोलते रहना ही वे जानती हैं । मोदी के विषय में उक्त वक्तव्य सुनकर तो बंगाल की जनता को उनका विरोध करना चाहिए था । खून खौल जाए, ऐसा ही यह वक्तव्य था; परंतु वहां वैसा कुछ भी नहीं हुआ तथा होता भी नहीं है । उसके कारण ही ममता को खुली छूट मिलती है । प्रतिदिन देशविरोधी भूमिका लेना तथा देश के विरुद्ध बोलना ही उनकी वृत्ति है । ईद के उपलक्ष्य में बोलते हुए उन्होंने कहा कि ‘सभी धर्मियों में सौहार्द बना रहे, ऐसा मुझे लगता है ।’ वास्तव में देखा जाए, तो उनका ऐसा कहना पाखंड है, यह ध्यान में आता है । ऐसी बातें तो केवल शाब्दिक बुलबुले हैं ! जिन्हें राष्ट्र के प्रति किसी प्रकार का लेना-देना नहीं है, उनमें हिन्दू धर्म के प्रति संवेदनशीलता कहां से आएगी ? ३ वर्ष पूर्व राष्ट्रगान का अनादर करनेवाली इसी बनर्जी के विरुद्ध शिकायत भी प्रविष्ट की गई थी । ऐसी मुख्यमंत्री मिलना बंगालवासियों का दुर्भाग्य ही कहना पडेगा !  ‘ममता ने आज तक बंगाल के हिन्दुओं के लिए क्या किया ?, इस प्रश्न के उत्तर के लिए केवल दो ही शब्द पर्याप्त हैं, ‘कुछ भी नहीं !’ इसके विपरीत किसी ने पूछा, ‘उन्होंने वहां के अल्पसंख्यकों के लिए क्या किया ?’, तो वह सूची समाप्त न होनेवाली सिद्ध होगी !

संदेशखाली के अत्याचारों को दबाने का प्रयास !

कोलकाता उच्च न्यायालय ने कुछ ही दिन पूर्व बंगाल में घटित संदेशखाली प्रकरण की सीबीआई जांच करने के आदेश दिए हैं । उसके कारण बहुत शीघ्र ही इस प्रकरण के वास्तविक सूत्रधार सामने आकर यह षड्यंत्र उजागर होगा । ममता बनर्जी की सरकार अभी तक इस जांच को दबाने का प्रयास कर रही थी । वास्तव में देखा जाए, तो महिलाओं पर इतने बडे स्तर पर अमानुषिक अत्याचार होते हुए वर्षाें से ममता दीदी मौन रहीं तथा उन्होंने इस प्रकार के गंभीर अपराधों पर राजनीति की, ऐसा करना मुख्यमंत्री पद पर विराजमान व्यक्ति के लिए लज्जाजनक है । अपराधियों को सुरक्षा देना एवं पीडितों को झुलसने देना, इसमें कौन सी ममता है ? एक महिला मुख्यमंत्री होते हुए भी वहां ऐसी स्थिति बनना क्षोभजनक है । संदेशखाली प्रकरण में अन्वेषण में आनेवाले अधिकारियों को जांच के लिए वहां जाना प्रतिबंधित किया जाता था । कुछ अधिकारियों के साथ मारपीट भी की गई । संपूर्ण देश ने यह देखा है । ‘मुर्गे को ढक देने से सूर्याेदय नहीं रुकता’, यह कहावत संभवतः ममता बानो को ज्ञात नहीं होगी !

‘संदेशखाली प्रकरण में यदि १ प्रतिशत भी सच्चाई हो, तब भी वह इस सरकार के लिए लज्जाजनक सिद्ध होगा’, ऐसी फटकार कोलकाता उच्च न्यायालय को लगानी पडी । ममता बनर्जी द्वारा केवल और केवल अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति ही की गई तथा की भी जा रही है । इस राजनीति पर कौन एवं कैसे अंकुश लगा पाएगा ?, यह भी एक प्रश्न ही है । वर्ष २०२१ में बंगाल में महिलाओं पर हुए अत्याचार के कारण गोवा राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने तृणमूल कांग्रेस की आलोचना की थी; परंतु ‘जो हुआ, वह पुनः न हो’, यह विचार करेगी तो वे ममता कैसी ? उसके कारण ही तो संदेशखाली की पुनरावृत्ति हुई । इस प्रकार ममता के माध्यम से बंगाल का बांग्लादेश की दिशा में मार्गक्रमण समय पर रोका जाना चाहिए । इसके लिए सभी भारतीय एकत्रित होकर झुलस रहे बंगाल को बचाएं ! केंद्र सरकार भी इसके लिए सक्रिय हो !

राष्ट्रद्वेषी ममता बनर्जी के कारण बंगाल का बांग्लादेश की दिशा में मार्गक्रमण रोकने हेतु केंद्र सरकार एवं भारतवासी सक्रिय हों !