बच्चे असंस्कारी होने का परिणाम !
सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव ।’ (तैत्तिरीयोपनिषद्, शीक्षा, अनुवाक ११, वाक्य २ ) अर्थात ‘माता और पिता को ईश्वर मानें’, माता पिता द्वारा बालकों पर बाल्यावस्था से ही ऐसा संस्कार न करने के कारण बडे होने पर माता-पिता के संदर्भ में मतलब निकल गया, तो पहचानते नहीं ’, ऐसी उनकी वृत्ति हो जाती है तथा वे माता पिता को वृद्धाश्रम में रखते हैं, इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?’
✍️ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक संपादक, ‘सनातन प्रभातʼ नियतकालिक