साधको, दास्यभाव के प्रतीक रामभक्त हनुमानजी की भांति अंतर में सेवकभाव उत्पन्न कर स्वयं में विद्यमान अहं का निर्मूलन करने का प्रयास करें !
‘अध्यात्म में सेवकभाव का अनन्यसाधारण महत्त्व है । हनुमानजी ने युगों-युगों से दास्यभक्ति का आदर्श सभी के सामने रखा है । वे अपने प्रभु के लिए प्राणों का अर्पण करने के लिए सदैव तैयार रहते थे । श्रीराम की सेवा के सामने उन्हें सबकुछ कौडी समान लगता था ।
सभी साधक स्वयं में हनुमानजी की भांति सेवकभाव उत्पन्न होने हेतु प्रयास करें । उसके कारण उनमें विनम्रता, लीनता, गुरुनिष्ठा, गुरुदेवजी का मन जीतने की आंतरिक लालसा आदि गुण वृद्धिंगत होकर उनके अहं का निर्मूलन होने लगेगा तथा उससे साधकों के लिए ईश्वरप्राप्ति का मार्ग प्रशस्त बनेगा !
साधको, प्रभु श्रीरामचंद्रजी के रामराज्य के कार्य से संपूर्ण रूप से एकरूप हनुमानजी का आदर्श अपने सामने रखें तथा परात्पर गुरु डॉक्टरजी के हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में स्वयं को समर्पित करें !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२०.३.२०२४)