सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
हिन्दुओ, राष्ट्र एवं धर्म कार्य करते समय संतों से पूछकर ही कार्य करें !
‘हम व्यक्तिगत जीवन में विभिन्न प्रसंगों में उचित निर्णय परिजन, संबंधी, मित्र, वैद्य, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक आदि से पूछकर लेते हैं । उसी प्रकार राष्ट्र एवं धर्म संबंधीनिर्णय राष्ट्र एवं धर्म प्रेमी संतों से ही पूछकर लेने चाहिए !’
कुरुक्षेत्र में अर्जुन की अवस्था के समान स्थिति हुए बहुसंख्यक हिन्दू !
‘भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में (अध्याय २, श्लोक ११) अर्जुन से कहा, ‘अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।, अर्थात ‘हे अर्जुन, जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उन लोगों के लिए तुम शोक करते हो तथा विद्वानों के समान युक्तिवाद करते हो ।’ अर्जुन के समान आजकल अधिकांश हिन्दुओं की स्थिति हो गई है । कुछ करने के स्थान पर वे बडे-बडे युक्तिवाद करते हैं तथा उसी में अपना बडप्पन समझते हैं !’
हिन्दू राष्ट्र एवं अहंकार निर्मूलन !
‘हिन्दू राष्ट्र में अहंकार बढानेवाली व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बंधन होंगे तथा सामाजिक स्वास्थ्य एवं राष्ट्रीय सुरक्षा बढानेवाली तथा उसके माध्यम से अहं नष्ट कर ईश्वरप्राप्ति करानेवाली समष्टि साधना को प्राथमिकता दी जाएगी !’
‘घर की मुर्गी दाल बराबर’, कथन को सार्थक करनेवाले भारत के हिन्दू !
‘पूरे विश्व के जिज्ञासु चिरंतन आनंद की प्राप्ति हेतु अध्यात्म सीखने के लिए संसार के अन्य किसी भी देश में नहीं जाते, भारत आते हैं, जबकि भारतीय केवल सुखप्राप्ति के लिए अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों में जाते हैं !’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले