आगामी हिन्दू वर्ष में हिन्दुओं का राजनैतिक, कूटनीतिक तथा तकनीकी सशक्तिकरण होगा ! – आचार्य डॉ. अशोक कुमार मिश्र
वैसे तो परमार्थिक दृष्टि से ‘काल’ अनंत और अविभाज्य है, फिर भी हिन्दू-सनातनी ऋषियों ने लौकिक और व्यवहारिक दृष्टि से काल के समतुल्य ‘समय’ को विभिन्न इकाइयों यथा चतुर्युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग व कलयुग), सहस्त्राब्दी, शताब्दी, दशक, वर्ष, मास, दिन, घटी, पल और विपल आदि में विभाजित कर समय-गणना का सम्यक् विधान प्रतिपादित किया है । प्राच्य और ज्योतिषशास्त्रीय ग्रंथों में वर्णित है कि ब्रह्माजी के द्वारा सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारंभ किया गया और तभी से समय-गणना का विधान भी प्रारंभ हुआ । यही मुख्य कारण है कि चैत्र शुक्ल १ से नवरतों में आदिशक्ति भगवती की पूजा के साथ हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है । यह प्रारंभ अत्यंत ही शास्त्रीय, प्राकृतिक, वैज्ञानिक और सहज है जिसे देश के विभिन्न राज्यों और हिन्दू-समाजों में गुडी पडवा, चेतीचंड, युगादि, उगादि, संवत्सर पडवों, नवरेह, सजिबु नोंगमा, वैशाखी, नववर्ष, ज्योतिष-दिवस आदि के नाम से जाना और मनाया जाता है । इस समय समस्त प्रकृति में नई चेतना, नई ऊर्जा और नए उमंग का संचार हुआ रहता है।
आगामी हिन्दू नववर्ष
आगामी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (९ अप्रैल २०२४) से हिन्दू नववर्ष (संवत् २०८१) का प्रारंभ होगा ।
संख्याशास्त्र की दृष्टि से आगामी हिन्दू नववर्ष का फल-: आगामी हिन्दू नववर्ष का संख्याशास्त्र की दृष्टि से संख्या २ (२+०+८+१=११, १+१=२) प्राप्त होती है, जो ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से चन्द्रमा से संबंधित संख्या है । नवग्रहों में चन्द्रमा को ‘रानी’ कहकर इसे हमारे मन और भावनाओं से जोडा गया है – ‘चन्द्रमा मनसो जात: ।’
चंद्रमा जल, शांति, मातृभूमि, निरंतर परिवर्तन का कारक है । ऐसी स्थिति में अतिवृष्टि, जल-प्रलय की संभावना है । हिन्दू समाज में भावुकता की प्रधानता होगी । समाज और राष्ट्र में तेजी से बदलाव के संकेत हैं । भू-राजनैतिक स्थितियां परिवर्तनकारी और अस्थिर रहेंगी । सनातनी हिन्दू समाज मातृभूमि के प्रति और अधिक भाव से समर्पित होगा । राष्ट्रवादी शक्तियों, राष्ट्रप्रेमियों और धर्मप्रेमियों का भावबल और मनोबल उत्तरोतर बढेगा ।
हिन्दू नवसंवत्सरारंभ हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है । इस दिन पृथ्वीतल पर ब्रह्माजी एवं विष्णुजी का तत्त्व बडी मात्रा में कार्यरत होता है । इन तरंगों के माध्यम से प्रत्यक्ष ईश्वर का तत्त्व कार्यरत होता है । इस दिन रामतत्त्व १००० गुना कार्यरत रहता है । गुडी के माध्यम से कार्यरत ईश्वर की शक्ति जीव के लिए लाभदायक होती है । |
आगामी हिन्दू नववर्ष में ग्रहों की स्थिति
नए संवत् में अधिकांश समय ग्रहों के गुरु बृहस्पति कालपुरुष की कुंडली में द्वितीय भाव में शत्रुराशि वृषभ में रहेंगे । बृहस्पति की यह स्थिति लौकिक-पारलौकिक मिश्रित फल की ओर संकेत करती है । समाज में भौतिकता की वृद्धि भी परिलक्षित होगी । हिन्दू समाज आध्यात्मिकता के साथ-साथ भौतिक व आर्थिक संपन्नता और उपलब्धियों की ओर भी द्रुत गति से अग्रसर होगा । साथ ही पूरे वर्ष कर्माध्यक्ष शनि ग्रह कालपुरुष की कुंडली में एकादश भाव में स्वराशि कुंभ में रहेंगे । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि और राहु राजनीति, कूटनीति, तकनीकी और न्याय-व्यवस्था के कारक माने जाते हैं । आगामी हिन्दू नववर्ष में शनि ग्रह की स्थिति हिन्दू समाज के राजनैतिक, कूटनीतिक और तकनीकी सशक्तिकरण की ओर संकेत करती है । हिन्दू समाज को न्याय प्राप्त होगा और समाज मानसिक रूप से और सबल होगा और अपने श्रमशक्ति को जागृत रखेगा ।
नए संवत् में राहु भी पूरे वर्ष कालपुरुष की कुंडली में द्वादश भाव में मीन राशि में रहेंगे और केतु कालपुरुष की कुंडली में षष्ठ भाव में कन्या राशि में रहेंगे । मीन राशि धर्म के अधिष्ठाता ग्रह बृहस्पति की राशि है और ज्योतिषशास्त्र में सर्वश्रेष्ठ राशि मानी जाती है । राहु की यह स्थिति थोडे उतार-चढाव के साथ राजनीति और कूटनीति को हिन्दू धर्म के पक्ष और हित में रखेगी । नए और चिरकालिक न्यायलीय वाद उठ खडे होंगे और पुराने वादों का हिन्दुओं के पक्ष में समाधान होता हुआ दिखाई देगा । राहु तथाकथित धार्मिकों के पाखण्ड को भी उजागर करेंगे । धार्मिक क्षेत्र में अत्यधिक उतार-चढाव परिलक्षित होने की संभावना है । केतु रोग, ऋण और शत्रुता की वृद्धि भी कर सकते हैं ।
ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से अन्य ग्रहों की स्थिति भी अल्पकालिक रूप से हिन्दू समाज को सकारात्मक रूप से ही प्रभावित करेगी; क्योंकि बडे ग्रह बृहस्पति, शनि और राहु की स्थिति सकारात्मक है ।
आशा करता हूं कि हिन्दू नववर्ष समस्त सनातनी हिन्दुओं के जीवन में नई चेतना, नई ऊर्जा और नए उमंग का संचार करेगा और हिन्दू समाज परंपरानुसार मानवता को नई दिशा प्रदान करता रहेगा व और अधिक सक्षम होगा ।
जयतु ! मंगलम् भवतु ! शुभमस्तु !
– आचार्य डॉ. अशोक कुमार मिश्र