सनातन संस्था के विषय में मान्यवरों के अभिमत
‘हिन्दू राष्ट्र’ की स्थापना हेतु ईश्वर ने सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को ‘अवतार’ के रूप में भेजा है !
सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी तथा मेरा परिचय बहुत पुराना है । बहुत पहले वे एक बार मेरे साथ बद्री-केदारनाथ यात्रा में भी आए थे । उस समय मेरा यात्रा करानेवाला प्रतिष्ठान था तथा इस माध्यम से हमारा एक सुंदर संयोग घटित हुआ था । उनके द्वारा सनातन संस्था का इतना बडा धर्मकार्य स्थापित हुआ, यह मेरे लिए बडे गर्व का विषय है । आज केवल ‘हिन्दुत्व, हिन्दुत्व’, ऐसा बोलना तथा घंटा बजानेवाला हिन्दू हमारा नहीं है अथवा ऐसे अनेक प्रकार के वक्तव्य देनेवाले लोग स्वयं को तथाकथित रूप से हिन्दुत्वनिष्ठ मानते हैं । हिन्दुत्वनिष्ठ क्या होता है ?’, यह भी उनकी समझ में नहीं आता । वास्तव में देखा जाए, तो धर्मनिष्ठता ही हिन्दुत्वनिष्ठता है । विश्व में हिन्दू धर्म एकमात्र धर्म है तथा अन्य केवल पंथ हैं । वर्ष १९८० में अमेरिका में आयोजित ‘वैश्विक हिन्दू परिषद’ में मेरा जो व्याख्यान हुआ, उसमें जब मैंने उक्त वाक्य का उच्चारण किया, उसे सुनकर वहां के लोग बहुत प्रसन्न हुए । अंग्रेजी शब्दकोष में ‘धर्म’ शब्द के लिए वैकल्पिक शब्द नहीं है; क्योंकि वहां के लोगों को धर्म की मूल परिभाषा ही ज्ञात नहीं है ।
ऐसी स्थिति में अपनी संस्था को हमारे इस सनातन धर्म का नाम देकर यह संस्था धर्म के मार्ग में ही अग्रसर है, इसे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने प्रकट किया । कठिन स्थिति में विभिन्न स्थानों पर शाखाएं स्थापित कर तथा कार्यकर्ताओं को एकत्रित कर विभिन्न स्थानों पर व्याख्यान, प्रवचन, धर्म से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजनकर तथा ‘सनातन प्रभात’ जैसा समाचारपत्र चलाकर उन्होंने जो धर्मकार्य किया है, उस कार्य के लिए मेरे आशीर्वाद हैं । मेरा संपूर्ण समर्थन है । उन्होंने बहुत अल्पावधि में बहुत अच्छे ढंग से अपनी संस्था के कार्य का विस्तार किया तथा यह विस्तार होना हम सभी के लिए बहुत अच्छा है ।
‘हिन्दू धर्म के ‘हिन्दू राष्ट्र’की स्थापना हो’, यह भगवान की इच्छा है तथा आज के समय में उस दृष्टि से कुछ लोग कार्य कर रहे हैं । उसमें ईश्वर ने ‘अवतार’ के रूप में जिन्हें भेजा, उसमें परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का समावेश है’, ऐसा मैं मानता हूं । ‘अगले वर्ष हमारा यह हिन्दुस्थान ‘हिन्दू राष्ट्र’ के रूप में घोषित होगा’, ऐसा मुझे लग रहा है तथा इस धर्मकार्य में सनातन संस्था का भी सुंदर योगदान है, यह देखकर मैं आनंदित हूं । अतः सनातन संस्था के कार्य को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं ।
– भारताचार्य प्रा. सु.ग. शेवडे, चेंबुर, मुंबई.
सनातन संस्था भारतीयों को शिक्षित करने का काम करती है !
‘सनातन संस्था को २५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । उसके उपलक्ष्य में संस्था के आगे के कार्य के लिए शुभकामनाएं ! सनातन संस्था अनेक उपक्रम चलाती है । उसमें ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों का प्रकाशन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । संस्था के सभी नियतकालिक ‘हार्डकॉपी’ एवं ‘ई-कॉपी’ में उपलब्ध हैं । उसमें राष्ट्र-धर्म से संबंधित स्तंभ में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न लेख प्रकाशित होते हैं, साथ ही संपादकीय भी होता है । उसमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण लेखन होता है । इसका अर्थ यह कि भारत की सुरक्षा देश के नागरिकों की सतर्कता पर निर्भर है । आज देश की सुरक्षा केवल पुलिस या सेना का दायित्व नहीं रहा है, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में सुरक्षा की चुनौतियां हैं । हमारे शत्रु राष्ट्र चीन एवं पाकिस्तान हमारे विरुद्ध आर्थिक युद्ध, साइबर युद्ध, दुष्प्रचार युद्ध जैसे विभिन्न युद्ध करते रहते हैं । उनका यदि सामना करना हो, तो केवल सुरक्षा बलों के बल पर यह काम नहीं होगा, अपितु उसमें प्रत्येक भारतीय का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । उस परिप्रेक्ष्य में सनातन संस्था एवं पत्रिका ‘सनातन प्रभात’ समाज को शिक्षित करने का काम करते हैं । इसके लिए उनका अभिनंदन तथा सनातन संस्था के विभिन्न उपक्रमों के लिए उन्हें पुनः मन से शुभकामनाएं !’
– ब्रिगेडियर हेमंत महाजन (सेवानिवृत्त), पुणे, महाराष्ट्र.
ईश्वरीय अधिष्ठान के बिना इतना बडा कार्य होना संभव ही नहीं है !
सामान्यतः सभी पंथों में धर्मशिक्षा की व्यवस्था होती है; परंतु आज हमारे (हिन्दू) धर्म में इसका सबसे बडा अभाव है । हिन्दू धर्म में धर्मशिक्षा की कोई भी व्यवस्था नहीं है । निश्चित ही इसी विषय में सनातन संस्था ने बहुत बडा कार्य किया है । सनातन संस्था का रजत महोत्सवीय वर्ष तथा कुल मिलाकर इस कार्य में संस्था का योगदान इसकी प्रत्यक्ष साक्ष्य है । केवल बोलना अथवा लिखना ही नहीं, अपितुसमाज में जाकर प्रत्यक्ष रूप से कार्य कर, भिन्न-भिन्न चुनौतियों एवं संकटों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए इतने वर्ष कार्य करना ईश्वरीय संकेत है । ईश्वरीय अधिष्ठान के बिना इतना बडा कार्य होना संभव ही नहीं है ।
आयुर्वेद के विषय में सनातन संस्था का जो समर्थन होता हैै अथवा उसे प्रोत्साहन देना होता है तथा यह विषय अपने साधकों तक निरंतर पहुंचता रहे; इसके लिए जो प्रयास होते हैं, चाहे वे ग्रंथ हों अथवा अन्य माध्यम से हों; बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । किसी कार्यक्रम में मुझे वक्ता के रूप में बुलाया जाता है, उस समय उस कार्यक्रम का नियोजन बहुत ही अनुशासित होता है । अत्यंत सात्त्विक वातावरण में संपन्न होनेवाले कार्यक्रम तथा अत्यंत अनुशासित नियोजन सनातन संस्था की विशेषता है । जब किसी संस्था का विकास होता है, तब उसमें समर्पित भावना से कार्य करनेवाले साधक होना; इस विषय में मैंने पहले भी समाजमाध्यमों पर लिखा है ।
‘सामर्थ्य आहे चळवळेचें । जो जो करील तयाचें । परंतु येथें भगवंताचें । अधिष्ठान पाहिजे ।।’ (दासबोध, दशक २०, समास ४, ओवी २६) अर्थात प्रत्येक व्यक्ति में (देश धर्म अथवा स्वयं की उन्नति हेतु) प्रयास करने का सामर्थ्य है; परंतु उसमें ईश्वर का अधिष्ठान होने पर ही सफलता निश्चित है । समर्थ रामदासस्वामी के इस वचन के अनुसार सनातन संस्था को भगवान का अधिष्ठान होने के कारण ही यह सब कार्य हो रहा है’, यह मेरा विश्वास है ।
– वैद्य परीक्षित शेवडे, आयुर्वेद वाचस्पति, डोंबिवली