न्यायालय के कार्यक्रमों में पूजा करने की अपेक्षा संविधान के सामने नतमस्तक हों !
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नई देहली – भारत द्वारा संविधान को अपनाए जाने के ७५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस उपलक्ष्य में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अभय एस. ओक ने न्यायालय में होनेवाले कार्यक्रमों के समय पूजा करने जैसी धार्मिक विधियों को प्रतिबंधित करने का आवाहन किया है । उन्होंने कहा है, ‘इसकी अपेक्षा भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहन देने के लिए संविधान की प्रस्तावना की प्रत (नकल) के सामने नतमस्तक होना चाहिए ।’ उन्होंने आगे कहा, ‘संविधान को ७५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं एवं धर्मनिरपेक्षता को बढावा देने के लिए हमें यह सर्वोत्तम अवसर मिला है । मेरे लिए संविधान की प्रस्तावना के ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘लोकतंत्र’ ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं ।’ कुछ दिन पूर्व महाराष्ट्र के पुणे के पिंपरी-चिंचवड में निर्माण किए जानेवाले नए न्यायालय के भवन की नींव रखते हुए न्यायमूर्ति ओक ऐसा बोल रहे थे ।
सौजन्य लाईव लॉं
संपादकीय भूमिकाभारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, तथापि संविधान के प्रथम पन्ने पर प्रभु श्रीरामजी का चित्र है । उनका भी आदर बनाए रखें, ऐसा ही बहुसंख्यक भारतीयों को लगता है ! |