(और इनकी सुनिए…) ‘मुसलमान केवल कुरान एवं शरिया का ही पालन करेंगे !’ – समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. एस.टी. हसन
असम सरकार ने मुसलमान विवाह कानून रद्द किया । इस पर मुसलमान नेता आगबबूला !
गुवाहाटी (असम) – असम सरकार द्वारा ‘मुसलमान विवाह एवं विवाह-विच्छेद कानून १९३५’ रद्द करने से मुसलमान नेता आगबबूला हो गए हैं । उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के सांसद एवं शल्यचिकित्सक डॉ. एस.टी. हसन ने इस पर विष उगला है । उन्होंने कहा, ‘सरकार चाहे कितने भी कानून बना ले; परंतु मुसलमान केवल शरीयत एवं कुरान का ही पालन करेंगे । (कोई मुसलमान चाहे कितना भी शिक्षित हो, तब भी उसकी धर्मांधता में जरा भी परिवर्तन नहीं होता । अब इस पर कोई डॉ. हसन को ओसामा बिन लादेन जैसा कहने का विचार करे, तो उसमें क्या चूक है ? – संपादक) असम राज्य सरकार ने यह कानून रद्द कर हिन्दू मतदारों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया है । सभी धर्मों की अपनी अपनी श्रद्धा होती है । सहस्रों वर्षों से लोग उसको स्वीकार करते आए हैं एवं भविष्य में करते रहेंगे ।’
असम सरकार ने यह कानून रद्द करते हुए कहा, ‘अब राज्य के सभी विवाह ‘विशेष विवाह कानून’ के अंतर्गत होंगे । यह निर्णय बालविवाह बंद करने की दिशा में बढाया हुआ महत्त्वपूर्ण कदम है ।’ कुछ दिन पूर्व मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा की अध्यक्षता में संपन्न मंत्रीमंडल की बैठक में कानून रद्द करने के प्रस्ताव को सहमति दी गई ।’
राज्य सरकार मुस्लिमों को भडका रही है ! – सांसद बद्रुद्दीन अजमल
हिन्दुद्वेष से पीडित असम के ‘ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट’ के प्रमुख एवं सांसद बद्रुद्दीन अजमल ने भी दिया निरर्थक बयान । उन्होंने कहा, ‘यह कानून रद्द कर राज्य सरकार मुस्लिमों को उकसा रही है । इस पर मुसलमान नहीं भडकेंगे । इसके द्वारा सरकार को राज्य में समान नागरी संहिता लागू करनी है । काजी (इस्लामी कानून विशेषज्ञ एवं न्यायमूर्ति) कोई भिखारी नहीं हैं । वे सरकार से एक पैसा भी नहीं लेते । (हिन्दुओं के राजस्व (कर) पर पलने वाले असम के लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों के विषय में अजमल अपना मुंह नहीं खोलते, यह ध्यान में रखें ! – संपादक)
सरकार का यह कदम भेदभावपूर्ण ! – कांग्रेस
कांग्रेस नेता अब्दुर रशीद मंडल ने कहा है, ‘सरकार का यह कदम भेदभावपूर्ण है ।’ उन्होंने आगे कहा, ‘असम सरकार समान नागरी संहिता लागू करने में तथा बहुपत्नीत्व रोकने में असफल प्रमाणित हुई है ।’
संपादकीय भूमिका
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