अयोध्या में प्रभु श्रीराम के दर्शन हेतु जाने से पूर्व इन बातों को समझ लें !
प्रभु श्रीराम के मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने के उपरांत देश-विदेश से बडी संख्या में श्रद्धालु श्रीराम के दर्शन करने हेतु अयोध्या आ रहे हैं । अनेक श्रद्धालुओं को श्रीराम के दर्शन की आस लगी है । प्रतिदिन सहस्रों श्रद्धालु दर्शन हेतु आ रहे हैं । यहां आने के लिए व्यवस्था, दर्शन, भोजन, निवास आदि की व्यवस्था तथा यहां मिलनेवाली सुविधाओं के विषय में श्रद्धालुओं को जानकारी मिले; इसलिए इस लेख के द्वारा जानकारी दे रहे हैं ।
१. प्रभु श्रीराम के दर्शन करने के विषय में
प्रभु श्रीराम के दर्शन हेतु प्रतिदिन भीड उमड रही है । प्रातःकाल से लेकर श्रद्धालु दर्शन करने आ रहे हैं; परंतु दर्शन की व्यवस्था अच्छी होने से भीड होते हुए भी न्यूनतम डेढ घंटे में श्रीराम के दर्शन व्यवस्थित रूप से होते हैं । दर्शन हेतु मंदिर प्रातः ४.३० बजे खोला जाता है । उससे पूर्व ही श्रद्धालु दर्शन हेतु पंक्ति में खडे रहते हैं; इसलिए प्रातः शीघ्र जाने से दर्शन भी शीघ्र होगा । उसके उपरांत श्रद्धालुओं की भीड बढती जाती है । रात १० बजे आरती होने के उपरांत मंदिर बंद किया जाता है ।
२. दर्शन हेतु जाते समय अर्पण अथवा फूलों के अतिरिक्त अन्य कुछ भी न ले जाना अच्छा !
दर्शन हेतु जाते समय श्रद्धालुओं की जेब में कंघी, पेन, औषधियों की गोलियां, पानी की बोतल आदि सामग्री मिलती है । सुरक्षा की दृष्टि से इस प्रकार की सामग्री अंदर ले जाने पर प्रतिबंध है । अतः श्रद्धालुओं के पास ऐसी कोई सामग्री मिलने पर उन्हें उसे देवस्थान के लॉकर में जमा करने के लिए कहा जाता है तथा ये सामग्री जमा करने में लगभग आधा घंटा लगता है । ऐसी किसी सामग्री को अपने आवास पर ही रखने से उसे लॉकर में जमा करने में लगनेवाला समय बचेगा । अतः दर्शन हेतु जाते समय अर्पण एवं फूलों के अतिरिक्त अन्य कुछ भी वस्तुएं न ले जाना ही अच्छा ! हम जब दर्शन हेतु गए थे, उस समय एक श्रद्धालु ने कान में श्रवणयंत्र लगाया था; परंतु सुरक्षा के कारणों से पुलिसकर्मियों ने उसे श्रवणयंत्र निकालने के लिए कहा । उस दृष्टि से श्रद्धालु सतर्क रह सकते हैं । चप्पल रखने हेतु अंदर व्यवस्था है; इसलिए जूते अथवा चप्पल पहनकर जाने में कोई समस्या नहीं है ।
३. जिन्हें ठंड से कष्ट होता है, वे पैरों में मोजे पहनें !
हम जब दर्शन हेतु गए थे, उस समय बीच में ही एक भाग में मैट नहीं था । उस स्थान पर श्रद्धालुओं को फर्श पर कदम रखना न पडे; इसके लिए मैट है । पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं से उस मैट पर खडे रहने का अनुरोध कर रहे थे । किसी स्थान पर मैट न हो, तो बिना मोजे पहने श्रद्धालुओं को फर्श पर खडे रहने से ठंड के कारण पैर ठंडे पड सकते हैं । मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार से लेकर मंदिर में जाने तक फर्श पर मैट बिछाया गया है; परंतु प्रातःकाल में बहुत ठंड होने के कारण मोजे न होने से पैर ठंडे पड जाते हैं; इसलिए मोजे पहनना अच्छा रहेगा ।
४. दर्शन के लिए कितना समय मिलता है ?
श्रद्धालुओं की भीड होने के कारण मंदिर में बैठने की अनुमति नहीं दी जाती । पंक्ति बनी रहे, इसके लिए मंदिर में भी पंक्ति की दोनों बाजुओं को लकडी से बंद किया गया है । इसलिए श्रद्धालु उसके बाहर नहीं जा सकते । लगभग आधे मिनट में दर्शन कर आगे बढना पडता है । श्रीराम की मूर्ति के सामने अधिक समय तक रुकने से पीछे से आ रहे श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए विलंब लगकर पंक्ति भी बढ सकती है; इसलिए मंदिर की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं को शीघ्र आगे बढने का आवाहन करते हैं ।
५. मंदिर के बाहर आकर कुछ समय रुकने का अवसर
श्रीराम का बालरूप इतना मनमोहक है कि उसे आंखों में जितना समा लिया जाए, अल्प ही है; परंतु श्रद्धालुओं की भीड के कारण मंदिर में रुकना संभव नहीं होता । पुलिसकर्मी भी श्रद्धालुओं को अधिक समय तक मंदिर में रुकने नहीं देते । भले ही ऐसा हो; परंतु मंदिर से बाहर आने के उपरांत श्रद्धालु कुछ समय रुककर रामरक्षा, नामजप आदि कर सकते हैं । पुलिसकर्मी श्रद्धालुओं को मंदिर के बाहर भी अधिक समय रुकने नहीं देते; परंतु श्रद्धालुओं की आस्था देखकर पुलिस उन्हें वहां से नहीं खदेडते । इसलिए मंदिर से बाहर आकर हम विवेकपूर्ण पद्धति से श्रीराम का रूप आंखों के सामने लेकर मनोभाव से मानस वंदन एवं मानसपूजा कर सकते हैं ।
६. रहने की व्यवस्था के विषय में
प्रभु श्रीराम मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा के कार्यक्रम से लेकर यहां के होटलों के मूल्य बढाए गए हैं; परंतु अयोध्या नगरी में विभिन्न स्थानों पर स्थित कुछ मठों में रहने की व्यवस्था की गई है । इसलिए पति-पत्नी एवं बच्चे आदि परिवार हो, तो लगभग २४ घंटे के लिए ३ सहस्र रुपए किराया है । इसमें भोजन की व्यवस्था अंतर्भूत नहीं है । इसके अतिरिक्त केवल रहने की व्यवस्था अर्थात केवल सोना एवं स्नान तक सीमित व्यवस्थावाले मठ भी हैं । इसमें सभागार में सोने दिया जाता है । इसमें २४ घंटे के लिए लगभग ३०० से ५०० रुपए लिए जाते हैं । इसमें स्नान की व्यवस्था भी होती है । मित्र परिवार हो, तो उनके लिए इस प्रकार सभागार में सोने की व्यवस्था सुविधाजनक होती है । इस स्थान पर ठंड से रक्षा होने हेतु मोटी ऊन की रजाई भी दी जाती है । कुछ स्थानों पर महिलाओं के लिए भी सभागार में सोने की व्यवस्था है; परंतु ऐसे स्थान पर अपनी सामग्री पर ध्यान देने की भी आवश्यकता है । आनेवाले सभी श्रद्धालु ही होने के कारण ऐसे स्थानों पर सुरक्षित वातावरण है, साथ ही मठ में सी.सी.टी.वी. कैमरे भी लगाए गए हैं ।
ठंड की दृष्टि से श्रद्धालु इनर, स्वेटर, जैकेट, कानटोपी, मफलर, हाथ-पैर के मोजे, गर्म शॉल आदि स्मरणपूर्वक ले आएं ।
७. अल्पाहार एवं भोजन के लिए खर्च करने की आवश्यकता नहीं !
अयोध्यानगरी में विभिन्न स्थानों पर महाप्रसाद के भंडारे लगे हुए हैं । हमने अयोध्यानगरी के परिसर में विभिन्न १५-२० भंडारे देखे । अनेक भंडारे सवेरे ७-८ बजे से भी आरंभ हो जाते हैं । इन सभी भंडारों में भोजन की उत्तम व्यवस्था होती है तथा भोजन भी गर्म होता है । श्रीरामजन्मभूमि से कुछ दूरी पर स्थित जनकमहल में सवेरे ८ बजने से लेकर चेन्नई के एक संगठन की ओर से गर्म इडली सांबर एवं गर्म उपमा अल्पाहार के रूप में दिया जा रहा था । इस प्रकार से विभिन्न स्थानों पर भंडारे चलाए जा रहे हैं; इसलिए अल्पाहार एवं भोजन पर होटल में खर्च करने की अपेक्षा श्रद्धालु भंडारों का लाभ उठा सकते हैं । इसमें विशेष बात यह है कि इन सभी भंडारों में पेट भरनेतक भोजन परोसा जाता है; परंतु अन्न व्यर्थ न किया जाए, इतना ही उनका आग्रह होता है । संक्षेप में कहा जाए, तो भोजन एवं अल्पाहार हेतु बाहर खर्च करने की अपेक्षा श्रद्धालु इन भंडारों का लाभ उठाएं ।
८. सेवाभाव के कारण भंडारों में परोसे जानेवाले भोजन में मिठास !
अयोध्या में सभी भंडारों का आयोजन करनेवाले रामभक्त ही हैं, साथ ही वे यह सब सेवा के रूप में करते हैं । सोलापुर के समस्त हिन्दू समाज की ओर से २० पुरुष तथा २० महिलाएं एक महिने के लिए भंडारे में सेवा करने हेतु आए हैं तथा यह भंडारा फरवरी महिने के अंततक चलेगा । इस प्रकार सभी भंडारों में ही विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालु सेवारत हैं । उसके कारण भोजन परोसते समय उनमें सेवाभाव एवं विनम्रता होती है । भोजन परोसनेवाले तथा उसे ग्रहण करनेवाले दोनों भी श्रीराम का जयघोष करते हैं । कुल मिलाकर सभी लोग प्रभु श्रीराम के नाम से जुड जाते हैं । कभी भंडारा नहीं मिला अथवा भंडारे में महाप्रसाद समाप्त भी हुआ, तब भी यहां के अनेक उपाहारगृहों में ७० से ८० रुपए में पेटभर भोजन मिलता है ।
९. चोरों से सतर्क रहें !
अयोध्यानगरी के परिसर में चोर भी सक्रिय हैं । कनक महल (सीतामाता के विवाह के पश्चात राजा दशरथ द्वारा उन्हें दिया गया महल) यहां प्रवेशद्वार से लेकर विभिन्न स्थानों पर जेबकतरों से सतर्क रहने के निर्देश प्रकाशित किए गए हैं । अयोध्या नगर निगम की ओर से भी दिनभर ध्वनियंत्र से चोरों से सतर्क रहने की सूचना दी जाती है । (पुलिस प्रशासन के लिए यह लज्जाप्रद ! ऐसे ऊपरी उपाय करने की अपेक्षा पुलिस इस समस्या का जड से निर्मूलन क्यों नहीं कर सकती ? – संपादक) अतः अपना सामान आजू-बाजू में रखते समय श्रद्धालु सतर्क रहें ।
१०. पाखंडी साधुओं के झांसे में न आएं !
अयोध्यानगरी में जिस प्रकार श्रद्धालु आ रहे हैं, उस प्रकार साधु के वेश में घूमनेवाले पाखंडियों की संख्या भी बहुत है । साधु के वेश में घूमनेवाले ये पाखंडी चाय एवं खाने के लिए पैसे मांगते हैं । सरयू तट पर ऐसे अनेक पाखंडी हैं ।
११. वानरों से सतर्क रहें !
अयोध्या परिसर में असंख्य वानर हैं । ये वानर सडक से चलनेवालों के हाथ से समान छीनकर ले जाते हैं । इसलिए दुकान में खरीदारी करते समय भी अथवा अपना बैग अथवा थैली बाजू में रखते समय भी वानर उसे उठाकर न ले जाएं, इसकी ओर ध्यान देना पडता है । हम जब पैदल जा रहे थे, तब २ युवतियां प्रसाद लेकर जा रही थी, उस समय उनके पीछे से आए वानर से एक लडकी के हाथ से प्रसाद का बक्सा छीन लिया, जबकि हाथ में प्रसाद की डाली लेकर जा रही महिला पर वानर कूद पडा, उससे घबराकर वह महिला सडक पर गिर गई । इससे यहां वानर कितने उपद्रवी हैं, इसे ध्यान में लेकर श्रद्धालु सतर्क रहें ।
१२. सरयू नदी पर स्नान !
श्रद्धालु सरयू नदी पर स्नान का लाभ उठा सकते हैं । राम की पेढी (घाट) में श्रद्धालुओं के स्नान के लिए सरयू नदी से जल लेकर कुण्ड बनाय गया है । सवेरे ७.३० बजे सरयू नदी का जल उस कुण्ड में नियमितरूप से छोडा जाता है । अतः सवेरे ७.३० बजे के उपरांत श्रद्धालु सरयू नदी के स्नान का लाभ उठा सकते हैं । प्रातःकाल में ठंड अधिक होने से अनेक श्रद्धालु दोपहर में धूप निकलने के उपरांत स्नान हेतु आते हैं ।
१३. अयोध्या स्थित अन्य धार्मिक स्थल !
औरंगजेब ने जब अयोध्या के श्रीराममंदिर का विध्वंस किया, उस समय श्रीराम पंचायतन की मूर्ति सरयू नदी में छोडी गई थी । २२० वर्ष उपरांत यह मूर्ति मिली, जो अब श्री कालेराम मंदिर में है; ऐसा बताया जाता है । इसलिए इस मूर्ति को श्रीरामजन्मभूमि मंदिर की मूल मूर्ति माना जाता है । इसलिए अयोध्यानगरी में श्रीरामजन्मभूमि के दर्शन करनेवाले अधिकतर श्रद्धालु दर्शन के लिए श्री कालेराम मंदिर भी आते हैं । श्री कालेराम मंदिर के निकट ही श्री नागेश्वरनाथ मंदिर है । यहां शिवजी के स्वयं प्रकट होने की मान्यता है, साथ ही हनुमानजी का स्वयंभू स्थान हनुमानगढी भी जागृत देवस्थान है । इसके साथ ही दशरथ महल, कनक महल, सरयू नदी का घाट आदि अनेक स्थान श्रीराममंदिर के पास ही हैं । श्रद्धालु इन्हें देख सकते हैं । अयोध्या रेलस्थानक पर उतरने के उपरांत वहां से ऑटो लेकर मुख्य मंदिरतक पहुंचा जा सकता है । उक्त सभी जानकारी प्रभु श्रीराम के दर्शन करने आनेवाले श्रद्धालुओं के लिए उपयुक्त सिद्ध होगी ।
– श्री. प्रीतम नाचणकर, विशेष प्रतिनिधि, दैनिक ‘सनातन प्रभात’ (५.२.२०२४)
पवित्र क्षेत्र का आध्यात्मिक स्तर पर लाभ उठाएं !
पंक्ति में दर्शन हेतु खडे श्रद्धालुओं में से कुछ नामजप करते रहते हैं, बीच-बीच में ‘जय श्रीराम’ का जयघोष करते हैं, कोई श्रीराम का भजन गाते हैं, तो कोई श्रीराम के गीत गाते हुए देखने को मिलते हैं । कुल मिलाकर श्रद्धालुओं में बडा उत्साह होता है । सैकडों वर्षाें से तंबू में विराजमान रामलला (श्रीराम का बालकरूप) भव्य मंदिर में विराजमान होता देखकर श्रद्धालुओं का गला उमड आता है । अनेक श्रद्धालुओं के आंखों से भावाश्रु आते हैं, तो कुछ श्रद्धालुओं के अष्टसात्त्विक भाव जागृत होते हैं । ऐसी भावावस्था में उन्हें प्रभु श्रीराम के बिना अन्य कुछ दिखाई ही नहीं देता । अनेक लोग मंदिर के स्तंभों एवं मंदिरों की सीढियों पर माथा रखकर श्रीराम के अस्तित्व का अनुभव करते हैं । प्रभु श्रीराम के दर्शन का यह क्षण अविस्मरणीय होता है । श्रद्धालु इस प्रत्येक क्षण का आध्यात्मिक स्तर पर लाभ उठाएं ।
प्रभु श्रीराम के चरण जिस भूमि पर पडे, उस पवित्र भूमि के प्रति श्रद्धालुओं में अनन्य आस्था है । इसलिए अयोध्या की मिट्टी श्रद्धालुओं के लिए पवित्र है । किसी को अयोध्या की मिट्टी लेनी हो, तो वे मंदिर के बाहर आने पर ले सकते हैं । जिप लॉक वाली प्लास्टिक की थैली साथ में हो, तो उसमें मिट्टी रखी जा सकती है । मंदिर से बाहर निकलते समय श्रद्धालुओं को प्रसाद दिया जाता है ।
– श्री. प्रीतम नाचणकर