संपादकीय : कतर पर प्राप्त विजय !
कतर ने भारत के ८ पूर्व नौसेना अधिकारियों को छोड दिया है । यह भारत सरकार की कूटनीति की विजय है; इसलिए सरकार की अवश्य प्रशंसा करनी ही होगी । विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कतर से बातचीत करने का मोर्चा संभाला, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने इस संवेदनशील सूत्र के विषय में भारत का पक्ष दृढता से रखने हेतु पिछले ३ महिनों में अनेक बार दोहा की यात्रा की । इन गतिविधियों के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुशल नेतृत्व भी था । कोई ऐसा कहेगा कि कतर वैसे देखा जाए, तो छोटासा देश है; तो उसे झुकाने में क्या सफलता है ? यह प्रश्न पूछनेवालों को यह समझ लेना चाहिए कि वैश्विक राजनीति का विचार किया जाए, तो किसी देश का आकार महत्त्वपूर्ण नहीं, अपितु ‘उस देश का उपद्रव मूल्य कितना है ?’, यह महत्त्वपूर्ण होता है । आकार के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो इजरायल भी वैसे छोटासा देश है; परंतु उसमें संपूर्ण विश्व को झुकाने की क्षमता है । कतर भी मध्य-पूर्व का एक छोटासा देश; परंतु तेल के उत्पादन के कारण समृद्ध ! उसमें भी वैश्विक राजनीति में अपने पैंठ मजबूत करने की सुरसुरीवाला देश है । मध्य पूर्व में थोडासा भी कुछ हो जाने पर संबंधित देशों में मध्यस्थता की भूमिका निभाने में यह देश सदैव अग्रणी रहता है । उसके कारण वैश्विक राजनीति में कतर का उपद्रव मूल्य अधिक है । उसमें भी वह अमेरिका का निकटवर्ती है । उसके कारण इस देश को अल्प आंककर कैसे चलेगा ? इन सभी अंगों पर विचार किया जाए तो भारत की यह सफलता शुद्ध है । २३ अक्टूबर २०२३ को भारत के ८ पूर्व नौसेना अधिकारियों को जासूसी करने के प्रकरण में कतर के न्यायालय ने फांसी का दंड सुनाया था । उसके लगभग ३ महीने उपरांत भारत सरकार ने पर्दे के पीछे रहकर ऐसी क्या हलचल की, जिससे कतर को ३६० अंश के कोण में अपना निर्णय बदलना पडा ?
कतर को उलझाया !
कतर में कार्यरत पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों पर जासूसी के आरोप लगाए जाने पर भारतीय चौंक गए, साथ ही अनेक प्रश्न भी उठे । कतर एक छोटासा देश होने से कौन और किसलिए उसकी जासूसी करेगा ? इस विषय में कतर सरकार की ओर से आधिकारिक कोई भी जानकारी नहीं दी गई, इसलिए संदेह अधिक ही गहरा हुआ । कतर ने ‘इन ८ लोगों ने हमारे द्वारा बनाई जा रही परमाणु पनडुब्बी की जानकारी इजरायल को दी’, यह आरोप भी लगाया । वास्तव में देखा जाए, तो चीन, अमेरिका अथवा अन्य देश उनके हथियार-निर्मिति का कार्यक्रम खुलकर विश्व को बताते रहते हैं, साथ ही यदि उनके द्वारा परमाणु पनडुब्बी बनाई जा रही है, तो उस विषय में कुछ बातें सर्वविदित होती हैं । इसलिए कतर यदि परमाणु पनडुब्बी तैयार कर रहा है, तो किसी को उसकी जासूसी करने की क्या आवश्यकता थी ? क्या कतर इन ८ लोगों को हिरासत में लेकर कहीं भारत को झुकाने का प्रयास तो नहीं कर रहा था ?
पिछले कुछ महीनों से भारत एवं कतर के मध्य भारत को प्राकृतिक वायु की आपूर्ति के अनुबंध के नवीनीकरण की प्रक्रिया चल रही थी । यह ७८ बिलियन डॉलर्स का (६ लाख ४७ सहस्र ३६४ करोड रुपए का) महत्त्वपूर्ण अनुबंध है । प्राकृतिक वायु एवं कच्चा तेल भारत के मर्मस्थान हैं । इसलिए इस अनुबंध के माध्यम से भारत पर दादागिरी दिखाकर ‘अपनी झोली कैसे भरी जाए ?’, यह कतर का आंतरिक उद्देश्य था । ‘८ पूर्व अधिकारियों को गिरफ्तार किए जाने पर भारत सौम्य भूमिका लेगा’, ऐसा संभवतः कतर को लगा था; परंतु भारत सरकार ने उनकी इन सभी चालों पर पानी फेर दिया । इन ८ लोगों को दंड सुनाए जाने पर भारत ने इस अनुबंध पर चल रही बातचीत तत्काल रोकी तथा पहले इन ८ अधिकारियों के सूत्र पर ध्यान केंद्रित करने की बात कतर को दृृढतापूर्वक बताई । कतर भले ही धनवान देश हो; परंतु वहां किसी प्रकार की फसल नहीं होती । इसलिए जीवनोपयोगी वस्तुओं के लिए उसे भारत जैसे देशों पर निर्भर रहना पडता है । भारत ने इसी बात को ध्यान में लेकर पहले औषधियों की आपूर्ति करने में विलंब करना आरंभ किया । भारत की ‘गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल’ से अर्थात खाडी देशों के संगठन से अच्छे संबंध हैं । इस संगठन में समाहित सउदी अरब एवं संयुक्त अरब अमिरात कतर को पानी में देखते हैं; परंतु कतर इन दो देशों से शत्रुता नहीं कर सकता, यह भी उतना ही सत्य है ! इसलिए भारत ने इन संबंधों का उपयोग कतर पर दबाव बनाने के लिए किया । अंततः भारत नहीं झुकता, यह समझ में आने पर कतर नरम पड गया । इसका यह लाभ हुआ कि भारत एवं कतर के मध्य प्राकृतिक वायु की आपूर्ति के अनुबंध का नवीनीकरण हुआ । इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह कि पिछले अनुबंध की तुलना में इस अनुबंध के अनुसार कतर अल्प मूल्य में प्राकृतिक वायु बेचनेवाला है । इसका अर्थ यह अनुबंध भारत की इच्छा के अनुसार हुआ तथा वहां के कारागृह में बंद भारत के ८ अधिकारी भी छूट गए । सटीक विदेशनीति का उपयोग कर भारत कतर को उलझाकर उसे सही रास्ते पर ले आया ।
भारत की ओर से और विजय समाचारों की अपेक्षा !
कतर एवं अमेरिका भले ही एक-दूसरे के गले में पडते हों; परंतु कतर की अमेरिकाविरोधी गतिविधियों के कारण अमेरिका त्रस्त है । इसलिए उनकी मित्रता का गुब्बारा कभी भी फूट सकता है । कतर द्वारा हमास का समर्थन करने के कारण इजरायल उसकी ओर निरंतर आंख उठाकर देख रहा है । भविष्य में यदि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू क्रोधित हुए, तो कतर के भस्म होने में समय नहीं लगेगा । मेंढक फूलकर कितना फूलेगा ? आज के समय में कतर की यही स्थिति हो गई है । भारत के पूर्व नौसेना अधिकारियों को फांसी का दंड देने का निर्णय लेकर कतर ने दुःसाहस किया । इस पृष्ठभूमि पर भिन्न-भिन्न माध्यमों से कतर को उसका सही स्थान दिखाने की आवश्यकता थी । भारत ने उसे दर्पण दिखाने का अचूक काम किया ।
वैश्विक राजनीति अत्यंत क्लिष्ट है । स्वयं का राष्ट्रहित सामने रखकर प्रत्येक देश के साथ संबंध स्थापित करना बडी परीक्षा होती है । इसलिए ‘अमुक देश हमारा मित्रदेश है तथा अमुक देश हमारा शत्रुदेश’, इस प्रकार से आक्रामक भूमिका लेना संभव नहीं होता । ‘किसी देश के साथ के सकारात्मक संबंधों का उपयोग कब और कैसे होगा ?’, यह कहा नहीं जा सकता । भारत ने संतुलन बनाकर इस सीमा का पालन करने के कारण भारत को उससे लाभ हुआ । भारत यदि ऐसी ही भूमिका लेता रहे, तो भविष्य में भारतीयों को विजय के ऐसे अनेक शुभ समाचार मिलेंगे, यह निश्चित है !