बिहार के बेतिया में आज भी ब्रिटिश कानून के द्वारा हो रहा है मंदिरों का शोषण !

बिहार के बेतिया के महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह बहादुर की २६ मार्च १८९३ को अकाल मृत्यु हुई । उसके उपरांत २४ मार्च १८९६ को उनकी विधवा पत्नी का भी निधन हुआ । वर्ष १८९७ में ‘दूसरी महारानी जानकी कुंवर उनकी संपत्ति का व्यवस्थापन करने में सक्षम नहीं हैं’, ऐसा कहकर ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने उनकी संपत्ति की रक्षा हेतु ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड’ कानून लागू किया । वर्ष १५६० से १६६० तक इंग्लैंड में जिसका अस्तित्व था, उस ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स एंड लिवरीज’ के आधार पर ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने भारत में ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड’ बनाया था । कोई उत्तराधिकारी न हो अथवा वह अल्पायु हो, तो उस उत्तराधिकारी की संपत्ति की रक्षा करना, इस कानून का उद्देश्य था; परंतु इस कानून को आधार बनाकर ब्रिटिशों ने बेतिया के महाराजा की भूमि हडप ली ।

इसमें आश्चर्य की बात यह है कि स्वतंत्रता के उपरांत भी इस साम्राज्य में ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड’ कानून लागू है । इस कानून के अनुसार बेतिया साम्राज्य की भूमि के व्यवस्थापन की प्रतिवर्ष नीलामी की जाती है । इस कानून के द्वारा अंग्रेजों ने बेतिया साम्राज्य की भूमि हडपकर किसानों को खेती करने हेतु दी थी । उस समय चंपारण सत्याग्रह के समय गांधीजी ने किसानों को नील के रोपण से मुक्त किया; परंतु दुर्भाग्यवश आज भी बेतिया में यह कानून लागू है । यहां प्रतिवर्ष कृषि भूमि हेतु किसानों को बोली लगानी पडती है । अनेक बार उनकी तैयार कृषि भूमि पर अधिक बोली लगाकर अन्य लोग उसे हडप लेते हैं । इस कारण किसानों को हानि सहनी पड रही है ।

१. बेतिया साम्राज्य के मंदिरों की दयनीय स्थिति

बेतिया साम्राज्य में निर्मित अनेक मंदिर रखरखाव के अभाव में जर्जर स्थिति में हैं । उनमें से कुछ मंदिर गिरने की स्थिति में हैं । स्थानीय लोगों के अनुसार उनके पूर्वज कहते थे कि जब भी महाराज अथवा महारानी दक्षिण की ओर जाते थे, उस समय वे जगदीशपुर में निर्मित शिवमंदिर में रुकते थे तथा प्रार्थना करने के उपरांत ही आगे की यात्रा आरंभ करते थे । वापस लौटते समय भी वे मंदिर में पूजा करते थे; परंतु आज यह मंदिर भग्नावस्था में है । कुछ वर्ष पूर्व मंदिर के बरामदे के नवीनीकरण हेतु स्थानीय लोगों ने अगवानी की थी । उत्तर वाहिनी शिवमंदिर का ‘प्लास्टर’ अनेक स्थानों पर गिर गया है, जबकि अनेक स्थानों पर फर्श उखड गए हैं ।

विधानसभा चुनाव के समय बाजार समिति के परिसर का उपयोग चुनाव के कामों के लिए उपयोग किया जानेवाला था । उसके कारण सब्जी मंडी को ऐतिहासिक हरिवाटिका शिव मंदिर परिसर में स्थानांतरित किया गया था । उस समय मंदिर व्यवस्थापन की ओर से चुनाव की प्रक्रिया समाप्त होने के उपरांत इस मंडी को पुनः पुराने स्थान पर स्थानांतरित करने का आश्वासन दिया गया था; परंतु आज विधानसभा चुनाव समाप्त हुए अनेक महीने बीत गए हैं; परंतु सब्जी मंडी का अभी तक स्थानांतरण नहीं किया गया है ।

श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी

२. राजवंश के मंदिरों के लिए प्रतिदिन केवल १० रुपए की सहायता का प्रावधान

बेतिया साम्राज्य के महाराजा ने जिले में तथा जिले के बाहर विभिन्न देवी-देवताओं के ५६ भव्य मंदिरों का निर्माण किया था; परंतु आज स्थिति ऐसी है कि आर्थिक संकट से गुजर रहे इन मंदिरों के कामकाज पर किसी का नियंत्रण नहीं है तथा यहां के पुजारियों की उपेक्षा हो रही है । विभिन्न मंदिरों में स्थापित देवताओं को भोग लगाने हेतु प्रतिदिन केवल १० रुपए की सहायता राशि मिलती है । मंदिर के मुख्य पुजारियों को केवल ९०० रुपए तथा सहायक पुजारियों को ६०० रुपए मासिक वेतन मिलता है । स्थानीय पुजारियों का यह कहना है कि आज एक लड्डू का मूल्य न्यूनतम ५ रुपए है, जबकि भोग लगाने हेतु प्रतिदिन १० रुपए मिलते हैं, जिसमें विधिवत पूजा-अर्चना करना असंभव है । इसके कारण पूजा के समय मन व्यथित होता है । इससे पूर्व इससे भी अल्प धनराशि दी जाती थी । वर्ष २०१३ में उसे प्रतिमाह ३०० रुपए किया गया ।

३. बिहार में नमाज पढानेवालों को १५ सहस्र रुपए, जबकि हिन्दू पुरोहितों की उपेक्षा !

पुरोहितों ने प्रशासन से प्रसाद की धनराशि बढाने का अनेक बार अनुरोध किया; परंतु आज तक इस विषय में ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं । दूसरी ओर बिहार में नमाज पढानेवालों को १५ सहस्र रुपए तथा अजान (मुसलमानों को ऊंची आवाज में नमाज हेतु आमंत्रित करना) देनेवालों को १० सहस्र रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जाता है । स्थानीय सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ५६ मंदिरों से लगभग ३ करोड रुपए एकत्रित होते हैं; परंतु इससे मंदिरों का जीर्णाेद्धार नहीं किया जाता । स्थानीय लोग चंदा एकत्र कर मंदिरों का रखरखाव करते हैं । अनेक मंदिरों की भूमि हडपकर उन्हें बेचा गया है; परंतु सभी मंदिरों से प्रति माह कर वसूला जाता है ।

– श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी, उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्य समन्वयक, हिन्दू जनजागृति समिति (९.१.२०२४)


हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य के संदर्भ में उत्कट भाव रखनेवाले बेतिया (बिहार) के राजपुरोहित श्री. राकेश चंद्र झा !

श्री. राकेश चंद्र झा

बेतिया (बिहार) - यहां के ५६ मंदिरों के राजपुरोहित श्री. राकेश चंद्र झा पिछले तीन वर्षाें से हिन्दू जनजागृति समिति के कार्य में सहभागी हैं एवं समिति द्वारा आयोजित हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में नियमित रूप से सहभागी होते हैं । बेतिया क्षेत्र में मंदिर न्यासियों की बैठक आयोजित कर उन्होंने समिति के प्रतिनिधियों को बेतिया में आमंत्रित किया था ।

बेतिया में राज्यकर्ताओं के हिन्दू विरोधी नीति के कारण पुजारियों को मासिक वेतन के रूप में केवल ९०० रुपए मिलते हैं । इस कारण सभी पुजारियों की आर्थिक परिस्थिति बहुत ही विकट हो गई है । जब समिति के कार्यकर्ता बेतिया क्षेत्र में मंदिर बैठक के लिए गए थे, तब श्री. राकेशचंद्र झा एवं उनकी पत्नी ने समिति के उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य समन्वयक श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी एवं श्रीमती सीमा श्रीवास्तव का आदरपूर्वक स्वागत किया । समिति के कार्यकर्ता आए हैं, ऐसा देखकर वे गदगद हो गए । सभी के भोजन की व्यवस्था कर उन्हें भेंटस्वरूप शॉल, साडी एवं पैसे भी अर्पण किए । इसी के साथ बेतिया क्षेत्र के मंदिर न्यासी एवं पुजारियों की बैठक आयोजित कर मंदिर संगठन के लिए सभी को कृतिप्रवण करने का प्रयास किया ।

स्वयं ‘ऑटो रिक्शा’ कर समिति के कार्यकर्ताओं को सर्वत्र ले जाकर उन्हें बस स्थानक तक पहुंचाने गए । उनके व्यवहार से अत्यंत प्रेमभाव एवं कार्य के प्रति प्रचंड आदरणीय श्रद्धा होने का दिखाई देता था ।

– श्री. विश्वनाथ कुलकर्णी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश