सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन का महत्त्व !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

ईश्वर में स्वभावदोष एवं अहं नहीं होते । उनसे एकरूप होना है, तो हममें भी उनका अभाव होना आवश्यक है ।


अध्यात्म का परिचय कराने वाला ‘सनातन प्रभात’ !

‘सनातन प्रभात’ में दिया ३० प्रतिशत लेखन साधना संबंधी होता है । इससे पाठकों का अध्यात्म से परिचय होता है और कुछ लोग साधना आरंभ कर जीवन का कल्याण करते हैं ।
इसके विपरीत, अधिकांश नियतकालिकों में १ प्रतिशत लेखन भी साधना संबंधी नहीं होता । इस कारण पाठकों को वास्तविक अर्थों में उसका लाभ नहीं होता ।’


क्षात्रतेज की तुलना में साधना का ब्राह्मतेज महत्त्वपूर्ण !

‘किसी सात्त्विक राजा का चरित्र पढकर कुछ समय के लिए उत्साह प्रतीत होता है; परंतु ऋषि-मुनियों का चरित्र और उनकी सीख पढकर अधिक समय तक उत्साह प्रतीत होता है और साधना के लिए दिशा प्राप्त होती है ।’


अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य का महत्त्व !

‘विज्ञान को अधिकांशतः कुछ भी ज्ञात नहीं रहता, इसलिए किसी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए निरंतर शोध करना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब कुछ ज्ञात होने के कारण वैसा नहीं करना पडता । विज्ञानयुग की वर्तमान पीढी को अध्यात्म पर विश्‍वास हो तथा वह अध्यात्म की ओर प्रवृत्त हो, इस हेतु अध्यात्म संबंधी शोधकार्य करना पडता है ।’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले