Arun Yogiraj : प्राणप्रतिष्ठा के उपरांत श्री रामलला की मूर्ति के भाव पूर्णतः परिवर्तित हुए !
शिल्पकार अरुण योगीराज ने बताई अपनी अनुभूति !
नई देहली – श्रीराममंदिर में श्री रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा के उपरांत श्री रामलला (श्रीरामजी का बालक रूप) पूर्णतः अलग लग रहे थे । मुझे लगा कि यह मेरा काम नहीं है । ‘अलंकरण’ (अलंकार धारण) विधि के उपरांत श्री रामलला का रूप पूर्णतः परिवर्तित हो गया । जिस समय मूर्ति का निर्माण हुआ, उस समय रूप भिन्न था एवं अब मंदिर के गर्भगृह में प्राणप्रतिष्ठा के उपरांत श्री रामलला का रूप अलग दिखाई दे रहा था । दोनों रूपों में (प्रतिष्ठा के पूर्व एवं तदनंतर) बहुत भिन्नता है । भगवान ने भिन्न भिन्न रूप धारण किए हैं, यह अनुभूति श्री रामलला की मूर्ति साकार करनेवाले शिल्पकार श्री. अरुण योगीराज ने प्रसारमाध्यमों से साक्षात्कार के समय बताई ।
श्री. अरुण योगीराज ने श्री रामलला की मूर्ति के संदर्भ में बताए सूत्र !
मैं अपनी भावनाएं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता !
यह मेरे पूर्वजों के ३०० वर्षों की तपस्या का फल है । कदाचित् भगवान ने मुझे इसी हेतु पृथ्वी पर भेजा होगा । इस जन्म में प्रभु श्री रामलला की मूर्ति बनाना, यह मेरा सौभाग्य था । वर्तमान में मैं कौनसी भावनाओं से जा रहा हूं, वह मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता ।
हमारा घराना ३०० वर्षों से मूर्तियां बना रहा है !
हमारा घराना शिल्पकारों का ही है । मेरे घर में ३०० वर्षों से पत्थरों में मूर्तियां उकेरी जाती हैं । मूर्तिकार के रूप में यह मेरी ५ वीं पीढी है । मेरे पिताजी ही मेरे गुरु हैं । श्रीरामजी की कृपा से ही मुझे श्री रामलला की मूर्ति निर्माण करने की सेवा मिली । अब भगवान ने ही कहा, ‘आओ, मेरी मूर्ति घडो ।’ यह अनुभव बहुत ही सुंदर एवं मन प्रसन्न करनेवाला था ।
श्री रामलला बालक रूप में दिखें, इसलिए बालकों के साथ बहुत देर तक उनका निरीक्षण किया !
श्री रामलला की मूर्ति बनाते समय प्रतिदिन मैंने लोगों की भावनाओं का विचार किया । ‘प्रभु रामलला मुझे बालक रूप में आशीर्वाद दे रहे हैं,’ मैंने ऐसा अनुभव करने का प्रयास किया । ५ वर्ष के रामलला की मूर्ति साकार करना, यह वास्तव में चुनौतिपूर्ण था । देखा जाए तो, यदि पत्थर में कोई चेहरा उकेरना हो, तो मैं वह २-३ घंटों में कर सकता हूं; परंतु रामलला की मूर्ति को घडना, अलग ही था । हमने सबसे पहले ५ वर्ष के आयु के बालकों की जानकारी एकत्रित की । मैंने छोटे बालकों के बहुत छायाचित्र देखे । मैंने १ सहस्र छायाचित्र संरक्षित किए थे । श्री रामलला की आंखों में श्रद्धा, भक्ति एवं भाव दिखाई दे, इसलिए मैंने बच्चों के साथ बहुत समय बिताया । छोटे बच्चों के हंसने पर उनकी आंखों की चमक कैसी होती है, यह समझने का प्रयास किया । उनके गालों पर आनेवाले उभार का निरीक्षण किया । उसके आधार पर मूर्ति को अंतिम स्वरूप दिया गया ।
५ वर्ष के बालकों के मुख, मनमें एवं मस्तिष्क में रखकर मूर्ति घडता गया !
जब मूर्ति के चेहरे पर काम करना होता है, मूर्ति के चेहरे पर भाव उकेरने होते हैं, तब सुधार करने का अवसर अल्प रहता है । इसलिए जिस शिला में मूर्ति घडी जाती है, उस शिला के साथ अधिक समय रहना आवश्यक ही होता है । मैंने अपने कार्य पर पूर्ण लक्ष केंद्रीत किया था । दूसरे दिन क्या करना है ? इसका अध्ययन पहले दिन ही करता था । ५ वर्ष के आयु के बच्चों के चेहरे मन एवं मस्तिष्क में रखकर मूर्ति घडता गया । उसीसे श्रीरामजी के चेहरे पर निरागस हास्य निर्माण हुआ ।
७ माह दिन-रात प्रभु श्रीरामजी के ही विचार थे !
पिछले ७ माह से मैं श्री रामलला की मूर्ति काली शिला में उकेर रहा था । दिन-रात मन में यही विचार आ रहा था, ‘संपूर्ण देश को प्रभु श्रीरामजी के दर्शन मेरे द्वारा घडी मूर्ति से कैसे प्राप्त हो ?’ भगवान के आशीर्वाद से ही मैं यह मूर्ति घड सका ।
लगता था, ‘मूर्ति लोगों को भाएगी अथवा नहीं ?’
मेरे एक बेटा और एक बेटी है । मेरी बेटी ७ वर्ष की है । उससे मैं पूछता, ‘बेटी यह मूर्ति कैसी दिखती है ?’, वह कहती ‘‘छोटे बालक की भांति दिखती है ।’’ मुझे मूर्ति घडते समय केवल इतना ही लगता कि क्या यह मूर्ति लोगों को पसंद आएगी ? परंतु लोगों को, सभी भारतीयों को यह मूर्ति अच्छी लगी । उन्होंने मनःपूर्वक इस मूर्ति को नमस्कार किया, यह मेरे लिए बहुत संतोषजनक बात है ।
मूर्ति बनाते समय प्रतिदिन आ रहा था एक वानर !जब मैं यह मूर्ति घड रहा था, तब प्रतिदिन दोपहर ५ बजे एक वानर वहां आकर बैठता था । कुछ दिन ठंड का मौसम था; इसलिए हम मूर्तिशाला का द्वार बंद कर लेते थे । तब बाहर आए वानर ने द्वार खटखटाया । जब मैंने यह बात ‘श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास’ के सचिव श्री. चंपत राय को बताई, तब उन्होंने कहा, ‘प्रत्यक्ष हनुमानजी को ही देखना था कि श्री रामलला की मूर्ति कैसी बन रही है ?’ मैं जब सोते समय आंखें बंद करता था, तब भी मुझे आंखों के सामने मूर्ति ही दिखाई देती थी । |