रामभक्तो, स्वयं में शरणागत भाव एवं आर्त भाव बढाकर अपने हृदयमंदिर में भी श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा करें !
‘प्रभु श्रीराम का तत्त्व अब अधिकाधिक कार्यरत हुआ है । रामभक्तो, स्वयं द्वारा की जा रही प्रत्येक कृति को रामभक्ति से जोडकर अंतःकरण में भक्ति के दीप प्रज्वलित करेंगे । ‘शरणागत भक्त का हृदय’ ही प्रभु का सच्चा वास्तव्य स्थान है‘, इसे जानकर हम अपने हृदयमंदिर में श्रीरामभक्ति की सिंचाई कर श्रीराम के आगमन की भक्तिपूर्ण तैयारी करेंगे । ‘श्रीराम’स्मरण से अंतर्दीपों में समाहित भक्ति की ज्योति अखंड प्रज्वलित रखकर तथा अंजुली में भावपुष्प लेकर प्रभु श्रीराम का स्वागत करेंगे । हमारे अंतर्मन में विद्यमान लक्ष लक्ष भक्तिदीपों को निखारकर उन लक्ष ज्योतियों के दिव्य प्रकाश में अंतस्थ प्रभु श्रीराम का मनोहारी रूप निहारकर राममय बन जाएंगे !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की एक आध्यात्मिक उत्तराधिकारिणी) (२०.१.२०२४)