प्रभावशाली देश में हिंसा !
पापुआ न्यू गिनी तो एक प्रकार से उपेक्षित अथवा अनेक लोगों को ज्ञात ही नहीं है, ऐसा उपमहाद्वीपीय देश है; परंतु उसे प्रशांत महासागर में ‘अत्यंत प्रभावशाली देश’ के रूप में भी गिना जाता है । यहां की जनसंख्या १ करोड से अधिक है । इस देश की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी में १० जनवरी को पुलिस ने हडताल की थी । उनकी वेतन में वृद्धि न कर, उल्टे ५० प्रतिशत की छंटनी करने से क्षुब्ध पुलिसकर्मियों ने संसद के बाहर हडताल कर विरोध प्रदर्शन किया । पुलिसकर्मियों, कारागृह कर्मचारियों, सैनिकों तथा नागरी सेवकों ने नौकरी छोडी । पुलिस की हडताल के कारण अनेक लोगों को खुला मैदान मिला । उसके कारण वहां के लोगों ने आक्रामक होकर दंगे किए । शहर की स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गई । लूटमार आरंभ हुई । बडी-बडी दुकानों में घुसकर तोडफोड कर वस्तुएं लूटी गईं । खाद्यपदार्थाें एवं फर्निचर की भी बडी मात्रा में चोरी की गई । कुछ दंगाईयों ने तो सडक पर खडे वाहन एवं छोटी दुकानें जला दीं । प्रधानमंत्री कार्यालय के परिसर में खडे वाहनों में भी आग लगा दी गई । कुछ लोगों ने संसद भवन में घुसने का प्रयास किया । यह संपूर्ण दृश्य भयावह एवं विदारक था । राजधानी जैसे अतिमहत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील स्थान पर इस प्रकार की अराजकता उत्पन्न होना चिंता का विषय है । इस हिंसा में कुल १५ लोगों की मृत्यु हुई । प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने इस घटना के लिए देशवासियों से क्षमा मांगी । उन्होंने कहा, ‘‘इससे पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ है । जनता ने पुलिसकर्मियों की हडताल का लाभ उठाकर हिंसा कराई । दोषियों पर कार्यवाही की जाएगी ।’’ पुलिसकर्मियों के वेतन में ५० प्रतिशत की कमी होने से उनके द्वारा की गई हडताल के विषय में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘संगणक में आई तकनीकी खराबी के कारण तथा प्रशासनिक त्रुटि के कारण इसमें गडबडी हुई । वास्तव में पुलिसकर्मियों का वेतन घटाया नहीं गया है । बहुत शीघ्र ही तकनीकी खराबी को दूर कर अगले माह का वेतन पिछली बाकी के साथ मिलेगा ।’’ वेतन के कारण भडके दंगे को नियंत्रण में लाने हेतु १४ दिन का राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सेना को तैनात किया गया है, जिससे वहां अभी भी तनाव का वातावरण है ।
देश का आंतरिक विनाश रोकें !
जनता द्वारा बडी मात्रा में कानून को हाथ में लिया जाना तथा विध्वंस कराना, किसी भी देश के लिए हानिकारक है । किसी भी देश में यदि इतने बडे स्तर पर अराजकता हो रही हो, जिससे राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने की स्थिति निर्माण हो रही हो, तो यह निश्चितरूप से सरकार की असफलता है । अतः सरकार को इस पर गंभीरता से विचार कर उचित कदम उठाने चाहिए । ऐसा पुनः न हो; इसके लिए उपाय करना अनिवार्य है । कुछ दिन पूर्व चीन ने पापुआ न्यू गिनी को वहां के टापुओं के विकास के नाम पर बडे स्तर पर निवेश का प्रस्ताव दिया था; परंतु समय रहते ही चीन का षड्यंत्र समझ में आने के कारण पापुआ न्यू गिनी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया । भले ही यह राष्ट्र एक छोटा टापू है, तब भी चीन के चंगुल में न फंसकर अपनी विदेशनीति चलानेवाले इस देश का यह स्वाभिमान निश्चित रूप से प्रशंसनीय है । शत्रु राष्ट के प्रति कैसे सतर्क रहना चाहिए ? तथा मित्र के रूप में किस के साथ निकटता बनानी चाहिए ?, इसकी समझ इस देश को है । इसी कारण यह देश भारत को नेता मानकर उससे मित्रता की अपेक्षा करता है । इस प्रकार सजग रहनेवाले पापुआ न्यू गिनी को देश का आंतरिक विनाश, आंतरिक कलह तथा अराजकता को रोकने हेतु स्वयं ही प्रयास करने चाहिए ।
कानून-व्यवस्था हुई खराब !
पापुआ न्यू गिनी में बेरोजगारी एवं महंगाई बढने के कारण वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है । गरिबी के कारण शिक्षा के अभाववश बेरोजगारी का स्तर बढा है । इस देश में स्वास्थ्य सेवाएं भी अल्प मात्रा में उपलब्ध हैं । यहां बार-बार औषधियों का अभाव होता है । कुछ दशक पूर्व पापुआ न्यू गिनी में चीनी समुदायों की स्थापना की गई, जिससे वहां चीनी लोगों की संख्या बढ गई । मई २००९ में वहां चीनविरोधी दंगे भडकने लगे । यहां के व्यवसायों में चीनी लोगों के बढने से उनका एकाधिकार बढने लगा । उसके कारण स्वदेशी श्रमिक क्षुब्ध हुए, जिसके फलस्वरूप दंगे भडकने लगे । अब यहां कैथोलिक लोगों की संख्या अधिक है ।
पापुआ न्यू गिनी देश में अपराधों की संख्या भी अधिक है । अनेक क्षेत्रों में किए जानेवाले राजनीतिक हस्तक्षेप, साथ ही भ्रष्टाचार से भी यह देश ग्रसित है । देश की स्वतंत्रता से लेकर अभी तक केवल वहां राष्ट्रीय पुलिस बल ही कार्यरत है । अकेला पुलिस बल देश में कानून-व्यवस्था कैसे बनाए रख पाएगा ? उसकी अनेक सीमाएं हैं । उसके लिए स्थानीय स्तर की व्यवस्था कार्यरत रखना आवश्यक है; परंतु यहां ऐसा न होने के कारण वातावरण अस्थिर है । यहां का पुलिस प्रशासन भी दुर्बल है । उनके काम की गुणवत्ता घट गई है । कुछ दिन पूर्व पोर्ट मोरेस्बी के पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन्हीं के सेवानिवृत्त अधिकारियों के पेंशन-कोष से चोरी करने की बात सामने आई थी । आपराधिक घटनाओं में भी वे संलिप्त मिले । मादक पदार्थ एवं बंदूकों की तस्करी करना, ईंधन की चोरी करना, बीमा घोटाले करना तथा पुलिस को मिलनेवाले भत्तों का दुरुपयोग करने जैसे कृत्य भी वे कर रहे थे । संक्षेप में कहा जाए, तो ‘गणवेश पुलिस का; परंतु अंदर से लुटेरे’, यह स्थिति है । ऐसे पुलिसकर्मियों को उनके कर्तव्य का क्या भान होगा ? जिन्हें अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का भान होता है, उनके द्वारा हडताल अथवा सामूहिक छुट्टी जैसे समाजघाती कदम नहीं उठाए जाते अथवा उसके लिए संघर्ष भी नहीं किया जाता । वे अपना कर्तव्य समझकर कार्यरत रहते हैं । समस्याएं एवं अपनी मांगों से बाहर निकलने हेतु वे अपनी क्षमता का संपूर्ण उपयोग करते हैं । पापुआ न्यू गिनी की यह अपेक्षा है कि भारत को उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए । भारत उनकी सहायता तो करेगा ही; परंतु इन समस्याओं की पृष्ठभूमि को समझकर इस देश द्वारा पहले प्रयास करना, उनके लिए हितकारी सिद्ध होगा !
भारत की भूमिका !
पापुआ न्यू गिनी के साथ भारत का व्यापार बडी मात्रा में है । वहां की यात्रा करनेवाले नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं । यह पृष्ठभूमि तथा वहां की वर्तमान स्थिति को ध्यान में लेते हुए भारत को भी सतर्कता से कदम उठाने चाहिए । भारत अब भले ही विश्व के तीसरे क्रमांक की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है । इस मार्ग में अनेक बाधाएं तो आती ही रहेंगी; परंतु उनकी चिंता किए बिना भारत को इस स्थिति में भी आगे बढकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखना चाहिए । यह साध्य हो जाए, तो भारत बहुत शीघ्र ‘महासत्ता’ बनेगा, यह निश्चित है !