British Parliament Kashmiri Hindus Genocide : कश्मीरी हिन्दुओं के हत्याकांड के ३४ वें स्मृतिदिन के अवसर पर ब्रिटिश संसद में प्रस्ताव !
लंदन – जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के हत्याकांड के ३४ वें स्मृतिदिवस के अवसर पर ब्रिटिश संसद में प्रस्ताव रखा गया । ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमन, जिम शेनन तथा वीरेंद्र शर्मा इन ३ ब्रिटिश सांसदों ने ‘हाऊस ऑफ कॉमेंस’ में यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया । ब्रिटिश सांसदों का किसी एक घटना की ओर अथवा समस्या की ओर ध्यान खींचने का यह एक मार्ग है ।
(सौजन्य : Newsx Live)
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि यह संसद जनवरी १९९० में जम्मू तथा कश्मीर के निष्पाप हिन्दुओं पर इस्लामी आतंकवादी एवं उनके समर्थकों द्वारा किए आक्रमण के ३४ वें स्मृतिदिवस के अवसर पर अत्यधिक दु:ख व्यक्त करता है । साथ ही यह संसद पीडितों के परिवारवालों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है ।
British MPs table motion to mark 34th anniversary of 'genocide' of Kashmiri Hindus.
👉 While the British parliament has taken up the proposal, it is shameful to note the insignificant efforts taken up by the Indian counterpart to give justice to the Genocide victims.
WHAT IS… pic.twitter.com/nvEOX3Totd
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) January 19, 2024
हिंसा के कारण पलायन किए हिन्दुओं को अभी तक न्याय न मिलना ,यह चिंता का विषय है, ऐसा इस प्रस्ताव में कहा है । (जो ब्रिटिश संसद सदस्यों को ध्यान में आता है, यह अधिकांश भारतीय जनप्रतिनिधियों के ध्यान में नहीं आता, यह जानिए ! – संपादक)
१. कश्मीर में हिन्दुओं की नियमित होने वाली हत्याओं का भी इस प्रस्ताव में निषेध किया गया है । इस प्रस्ताव में आगे कहा है कि कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय की संपत्ति हडपना अभी भी चालू है ।
२. भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर के हिन्दुओं का नरसंहार होने की बात स्वीकार करने की वचनबद्धता पूर्ण करनी चाहिए, ऐसा आवाहन इस प्रस्ताव में किया गया है ।
३.भारतीय संसद को कश्मीर हत्याकांड के विरोध में कानून पारित कर कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलवाना चाहिए, ऐसा इस प्रस्ताव में कहा है । (ब्रिटिश संसद सदस्यों को ऐसा आवाहन करना पडता है यह भारत के राज्यकर्ताओं के लिए लज्जास्पद ! – संपादक)
संपादकीय भूमिकाब्रिटिश संसद में ऐसा प्रस्ताव पारित होता है; लेकिन अत्याचार पीडित हिन्दुओं को न्याय दिलाने के लिए भारतीय व्यवस्था को जैसा करना चाहिए था, वैसे प्रयास नहीं किए, यह लज्जास्पद ! |