विधायक टी. राजा सिंह तथा हिन्दू जनजागृति समिति की सभाओं में कोई द्वेषपूर्ण वक्तव्य नहीं दिए जाएंगे !
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नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू जनजागृति समिति को महाराष्ट्र के यवतमाल के साथ-साथ छत्तीसगढ के रायपुर तथा तेलंगाना के जिलाधीश को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि भाजपा विधायक टी.राजासिंह की सभाओं में संभावित रूप से कोई घृणास्पद वक्तव्य न हो इस का ध्यान रखें । शाहीन अब्दुल्ला ने न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर समिति तथा विधायक सिंह की बैठकों पर रोक लगाने की मांग की थी । कांग्रेस नेता तथा अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस संबंध में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया ।
१. इस समय न्यायालयने स्पष्ट किया कि सभाओं पर रोक नहीं लगाई जा सकती ।
२. इसके साथ ही जिलाधीश को यह भी निर्देश दिया गया कि सभाओं के कारण किसी भी तरह से हिंसा न भडके। साथ ही आवश्यकता पडने पर पुलिस को आयोजन स्थल पर सीसीटीवी लगाने के भी निर्देश दिए जाएं ।
३. याचिका पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने बताया था कि हिन्दू जनजागृति समिति तथा बीजेपी ने १८ जनवरी को यवतमाल तथा १९ से २५ जनवरी तक रायपुर में बैठक आयोजित की है ।
न्यायालयने अधिवक्ता कपिल सिब्बल की खिंचाई की !
अधिवक्ता सिब्बल: जब कुछ होता है तो हम न्यायालय आते हैं तथा तब आरोप प्रविष्ट होता है; किन्तु आगे कुछ नहीं होता तथा ऐसे भाषण जारी रहते हैं । इसका अर्थ क्या है? देखिये, इससे कैसी घृणा उत्पन्न होती है!
जज: हमने भाषणों के पहले के चलचित्र देखे हैं । हमने सीसीटीवी कैमरे लगाने समेत अन्य निर्देश दिये हैं । यदि भडकाऊ वक्तव्य दिए जाएंगे तो हम उनके विरुद्ध कार्रवाई करेंगे; किन्तु हम पहले से यह नहीं मान सकते कि ऐसा होगा । आपकी याचिका में हिन्दू जनजागृति समिति या टी. राजा सिंह को प्रतिवादी नहीं बनाया गया है । ऐसी स्थिति में स्वाभाविक न्याय की दृष्टि से उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगाना अनुचित होगा ।
अधिवक्ता सिब्बल: ये (द्वेष प्रसारित करने वाले भाषण) सदैव होता रहता है।
न्यायमूर्ति: एक बार जब हमने निर्देश दे दिए, तो ऐसे कोई वक्तव्य नहीं दिए जाएंगे, तो हमें सकारात्मक रहना चाहिए । नकारात्मक दृष्टिकोण से क्यों सोचें ?
संपादकीय भूमिकागत १६ वर्षों में, हिन्दू जनजागृति समिति ने पूरे भारत में २ सहस्त्र से अधिक धर्म तथा राष्ट्रीय जागरूकता सभाओं का आयोजन किया है । इनमें से किसी भी बैठक के उपरांत कोई हिंसा नहीं हुई है। ऐसे में याचिकाकर्ता ने इस तरह से याचिका प्रविष्ट कर सर्वोच्च न्यायालय का समय व्यर्थ किया है। इसलिए न्यायालय को याचिकाकर्ता के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए ! |