Archbishop Charles Scicluna Demands : पादरी को विवाह करने की अनुमति दी जानी चाहिए !

  • पोप फ्रांसिस के वरिष्ठ सलाहकार, आर्कबिशप चार्ल्स साईक्लूना का वक्तव्य

  • साईक्लूना  ने पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के प्रकरणों की जांच की थी !

आर्कबिशप चार्ल्स साईक्लूना

वेटिकन सिटी – पादरियों को विवाह करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस पर रोमन कैथोलिक चर्च को गंभीरता से विचार करना चाहिए। पोप फ्रांसिस के वरिष्ठ सलाहकार, माल्टा के आर्कबिशप चार्ल्स साईक्लूना ने कहा, कदाचित प्रथम ही मैं सार्वजनिक रूप से ऐसा वक्तव्य दे रहा हूं। चार्ल्ससाईक्लूना ने पादरियों द्वारा अल्पवयीन बच्चों के यौन शोषण के प्रकरणों की जांच की। इसलिए उनके द्वारा दिया गया उपरोक्त वक्तव्य अधिक महत्व रखता है।

पादरियों को भी हो सकता है किसी से प्रेम !

चार्ल्स साइक्लुना ने कहा कि ईसाई धर्म के पहले १,००० वर्षों में पादरी को विवाह करने की अनुमति थी। इसका इतिहास में उल्लेख है। यदि यह मेरे वश में होता तो मैं इस नियम पर शोध करता कि ‘पादरियों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए’। इसके कारण चर्च ने कई उत्तम पादरियों को खो दिया है; क्योंकि ऐसे लोगों ने पादरी बनने की जगह विवाह करने का निर्णय किया। मेरे अनुभव से, पादरी विवाहों को वैध बनाने पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। चर्च में ब्रह्मचर्य का निश्चित रूप से एक स्थान है; किन्तु इस संबंध में भी विचार करना चाहिए कि कभी-कभी पादरी भी किसी के प्रेम में पड सकते हैं। ऐसे समय में पादरियों को अपनी प्रेयसी या ‘पादरीपद’ में से किसी एक को चुनना होता है। कुछ पादरी तो ऐसे संबंधों को छिपाकर भी रखते हैं।

संपादकीय भूमिका 

  • वे देश जो स्वयं को विकसित और आधुनिक मानते हैं, वहां के इसाई यों को ब्रह्मचर्य का पालन करने जैसा कठिन संस्कार पूर्णरूपेण असंभव हैं; चाहे वे पादरी हों या सामान्य नागरिक! यही कारण है कि पादरियों द्वारा यौन शोषण के सहस्त्रों प्रकरण उजागर हुए हैं। इस स्थिति के कारण, अब पादरियों को विवाह अनुमति की मांग करने का समय आ गया है !
  • हिन्दू धर्म में साधु, सन्यासी और संत ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं; क्योंकि वे जानते हैं कि ‘साधना मार्ग का अनुसरण कर इंद्रियों को कैसे नियंत्रित किया जाता है ‘; परन्तु अन्य धर्मों को इसका ज्ञान नहीं है और उनके पंथ को साधना मार्ग विदित नहीं है, ऐसी वस्तुस्थिति है !
  • षड्रिपु  में ‘काम’ का प्रथम स्थान है। जब कोई अद्वैत का अनुभव करता है, तो काम नष्ट हो जाता है। जब तक मानव  उस अवस्था तक नहीं पहुँच जाता, तब तक वासना के विचार ही मन में अल्प प्रमाण में विद्यमान रहते हैं। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए साधना करना ही आवश्यक है !