रामजन्मभूमि आंदोलन में धर्मप्रेमी हिन्दुत्वनिष्ठों का अमूल्य योगदान !
वर्ष १९९० की कारसेवा के मेरे अविस्मरणीय अनुभव !
अनेक वर्ष उपरांत अवलोकन करने पर मुझे प्रतीत होता है कि कारसेवा के वो दिन मेरे जीवन के सबसे विलक्षण दिन थे । हम भगवान श्रीराम के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे थे तथा भगवान ने उसके बदले में हमें असीम आनंद दिया । भगवान मनुष्य को कभी भी खाली हाथ नहीं लौटाते, यही हमने अनुभव किया ! भले ही हम शारीरिक स्तर पर कष्ट अनुभव कर रहे थे; परंतु हमारे मन के स्तर पर शुद्ध आनंद की अनुभूति हो रही थी । परात्पर गुरुजी (सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी) जैसा कहते हैं न, ‘आनंदप्राप्ति हेतु साधना’, उसी प्रकार हमारे लिए यह सब ‘कारसेवा से मिला आनंद’ था ।
– अनिर्बान नियोगी, संस्थापक अध्यक्ष, भारतीय साधक समाज, बंगाल |
१. रा.स्व. संघ से परिचय
वर्ष १९८५ में देहली के एक महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहा था । वहां मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अर्थात अभाविप के संपर्क में आया । बहुत शीघ्र ही वहां के स्थानीय प्रचारक के रूप में कार्य देखनेवाले नेता को मेरे विषय में अन्य नेताओं से जानकारी मिली तथा उस संघ प्रचारक ने मुझे जितना संभव होगा, उतना शाखा में आने के लिए आमंत्रित किया ।
उसके उपरांत प्रत्येक शनिवार-रविवार सवेरे वे प्रचारक मुझे जगाते थे तथा वहां से निकट के एक मैदान पर १ घंटे के लिए ले जाते थे । उसके कुछ माह उपरांत उन्होंने मुझे विकासपुरी क्षेत्र में एक नई संपूर्ण शाखा आरंभ करने का अनुरोध किया, जिसे मैंने पूर्ण भी किया । विकासपुरी परिसर में वह पहली शाखा थी तथा विकासपुरी का क्षेत्रफल लगभग ९ चौरस किलोमीटर था ।
२. श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन में सहभाग तथा दिया गया दायित्व
वर्ष १९८७ में मेरी स्नातक की शिक्षा के उपरांत बंगाल के हावडा लौट गया । वहां चलनेवाली स्थानीय शाखा खोजने में मुझे एक महिना लगा । बहुत शीघ्र मैं उस शाखा में जाने लगा ।
उन दिनों में श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन प्रतिदिन तीव्र बनता जा रहा था तथा उसका नेतृत्व विश्व हिन्दू परिषद ने (विहिप ने) किया था । रा.स्व. संघ इस आंदोलन का समर्थन करे, यह विहिप की अपेक्षा थी तथा संघ ने वैसा किया भी । जिस परिसर में विहिप का कार्य अल्प था अथवा नहीं था, वहां संघ ने दायित्व लिया । हावडा क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र था, जहां विहिप का कार्य अल्प, जबकि संघ का अधिक थे ।
३. कारसेवा हेतु श्रीरामशिला पूजन तथा सेवकों के पंजीकरण का आरंभ
कारसेवा के लिए विहिप ने ३० अक्टूबर १९९० का दिन सुनिश्चित किया था, अर्थात ‘इसी दिन मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करने का विहिप का मनोदय था । कारसेवा से पूर्व संपूर्ण देश के सहस्रों स्थानों पर तथा विदेशों में भी श्रीरामशिला पूजन संपन्न हुआ । श्रीरामशिला के पूजन के उपरांत कारसेवकों का पंजीकरण आरंभ हुआ । ३० अक्टूबर अथवा उससे पूर्व अयोध्या पहुंचने का नियोजन था ।
४. काशी एवं अयोध्या पहुंचने का नियोजन, अयोध्या के लिए प्रस्थान तथा शरद कोठारी से भेंट
हमें भिन्न-भिन्न सभूह बनाकर काशीक्षेत्र पहुंचने हेतु कहा गया था तथा वहां से आगे अयोध्या पहुंचने का प्रयास करना था । स्थिति अत्यंत प्रतिकूल हो, तो हमें २५० किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुंचना अनिवार्य था । अनेक कार्यकर्ताओं की भाांति मुझ पर भी एक समूह को लेकर आने का दायित्व था । हमारे समूह ने २० अक्टूबर के १-२ दिन उपरांत ही काशी के लिए रेल से प्रस्थान किया । उसी दिन मैं शरद कोठारी को उनके कोलकाता संघ के साथ हमसे पूर्व रेलगाडी में चढते हुए देखा । हम दोनों भी वर्ष १९८८ में सिलिगुडी में संपन्न संघ के दूसरे ग्रीष्म शिविर में एकत्र सम्मिलित थे; इसलिए मेरा उनसे परिचय तो था ही । शिविर की अवधि में संयोगवश हम दोनों का व्यवस्था एक ही कक्ष में थी ।
५. कारसेवकों की गिरफ्तािरयां तथा फुलपुर के दिन
हमारे हावडा के कारसेवकों का एक समूह रात की गाडी से दूसरे दिन सवेरे काशी पहुंचा । १-२ दिन हमारे संपूर्ण समूह ने एक धर्मशाला में निवास किया । २४ अक्टूबार १९९० को हमारे समूह में अयोध्या की ओर प्रस्थान किया । वहां जमाबंदी जैसी स्थिति होने से हमने फुलपुर की ओर जानेवाली बस पकडना सुनिश्चित किया । फुलपुर पहुंचने से पूर्व ही हमें यह ज्ञात हुआ कि फुलपुर में कारसेवकों को गिरफ्तार किया जा रहा है । हम तुरंत ही बस से उतरकर खेत में भाग गए । खेतों से आगे बढते हुए मुख्य सडकों से न जाकर स्थानीय लोगों से मार्ग पूछते-पूछते हमारी ५ दिन की यात्रा आरंभ हुई । पहले दिन हम खेत में खुला ही सो गए, नदियों में स्नान किया तथा साथ में ले जाए हुए सूखे फल खाकर भूख शांत की । दूसरे दिन से ग्रामवासियों ने हमें दोनों बार का भोजन देना आरंभ किया, जिसमें मुख्यरूप से खिचडी होती थी ।
६. खेत में ही अन्वेषण विभागों ने कारसेवकों को घेर लिया
५ दिन पैदल चलते-चलते २९ अक्टूबर की सायंकाल को हम दर्शननगर नाम के एक स्थान पर पहुंच गए । दर्शननगर अयोध्या के बाहर शरयु नदी के तट की दूसरी बाजु पर स्थित गांव था । सूर्यास्त के उपरांत सहस्रों कारसेवकों ने खेत में खुले में ही विश्राम किया । थकान होने के कारण हम वही अंधेरे में सो गए । रात को अन्य कारसेवकों ने हमें यह सूचित किया कि केंद्रीय अन्वेषण विभागों ने हमें घेर लिया है । थकान के कारण हम वहां से भाग जाने में असमर्थ थे; परंतु कुछ कारसेवक भाग जाने में सफल रहे । सवेरे जागने पर हमने आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित केंद्रीय अन्वेषण विभागों को देखा ।
७. केंद्रीय विभागों की ओर से काशी को भेजा जाना, आगे अयोध्या पैदल जाना तथा हिन्दुओं का हत्याकांड एवं जागृति
सवरे के समय भी कुछ कारसेवक दलदल से भरे क्षेत्र में भाग गए । हमने शेष लोगों को बस में बिठाकर काशी भेजा । काशी में मैंने मेरे संपूर्ण समूह को रेल में बिठाया । बांग्लादेश से आए दिनेश बिस्वास तथा मैं पीछे रह गया । उसके पश्चात ५ दिनतक पैदल चलते हुए हम अयोध्या पहुंचे; परंतु तबतक ३० अक्टूबर एवं २ नवंबर को हत्याकांड हुआ था । हिन्दू जागृति का आरंभ हुआ था ।
८. कारसेवा की आधी सफलता तथा कारसेवकों की नृशंस हत्याओं के उपरांत भी अयोध्या के लिए पुर्नप्रस्थान
वर्ष १९९० में कारसेवा की आधी सफलता के उपरांत तथा मुख्यमंत्री मुलायमसिंह के आदेश पर कारसेवकों की हत्याएं होने की पृष्ठभूमि पर पुनः कारसेवा का निर्णय लिया गया । वर्ष १९९२ की दीपावली के उपरांत संपूर्ण देश में श्रीरामपादुका पूजन समारोह मनाए गए ।.
लेखक : श्री. अनिर्बान नियोगी, तरुण हिन्दू, कोलकाता
कारसेवा के ८ दिन पश्चात हुई कन्या का नाम ‘अयोध्या’ रखनेवाले राजस्थान के कारसेवक धर्मेंद्र कुमार सेन !
– श्री. धर्मेंद्र कुमार सेन, सामाजिक समरसता विभाग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सोजत जिला, राजस्थान. |