Politics Against Shriram : प्रभु श्रीराम के संदर्भ में राजनीति करना अपेक्षित नहीं ! – प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज
सोलापुर, ४ जनवरी (संवाददाता) – प्रभु श्रीराम सभी राजनीतिज्ञों से बढकर हैं । प्रभु श्रीराम पूरे देश के हैं । इसीलिए श्रीराम का मंदिर बन रहा है । यह कार्य सभी को एकत्रित होकर करना अपेक्षित है । ‘हमास’ ने इजरायल को युद्ध करने के लिए बाध्य किया, तब वहां का मंत्रीमंडल विसर्जित होकर ‘युद्ध मंत्रीमंडल’ अस्तित्व में आया । इसी प्रकार प्रभु श्रीराम के मंदिर के लिए हम सभी को एकत्रित होना आवश्यक है । उसपर राजनीति करना अपेक्षित नहीं है, ऐसा प्रतिपादन प.पू. स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने किया । वे सोलापुर में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे । श्रीराम मंदिर के विषय में वार्तालाप करने के लिए इस पत्रकार वार्ता का आयोजन किया था ।
प.पू. स्वीमीजी ने आगे कहा,
१. श्रीराम मंदिर की निर्मिति के लिए लाखो लोगों ने अपना रक्त बहाया है । अनेक पीढ़ियां श्रीराम मंदिर के स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रही हैं । पूरा देश बडी आतुरता से श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा कब होगी ? इसकी प्रतीक्षा कर रहा है । अतः श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा को अधिक विलंब न कर उनकी स्थापना शीघ्रता से कैसी हो ? यह हम देख रहे हैं । इसीलिए हमने २२ जनवरी का दिन चुना है ।
२. यद्यपि प्रभु श्रीराम की स्थापना अब हो रही है, तथापि इसके लिए कई दिनों से अनुष्ठान हो रहा है । महाराष्ट्र के पुणे में वहां के ११ लोगों का एक गुट पीछले सवा वर्ष से अनुष्ठान कर रहा है । यह सब वे अपने पैसों से कर रहे हैं, उन्हें कोई दक्षिणा नहीं दी जा रही है । १७ जनवरी को प्रभु श्रीराम का आगमन होगा तथा १८ जनवरी से पूजाविधि आरंभ करेंगे । २२ जनवरी तक विधि होंगी ।
३. ऐसा आरोप लग रहा है कि कुछ लोगों को निमंत्रित नहीं किया गया; परंतु जो लोग आमंत्रण अस्वीकार नहीं करेंगे, ऐसे लोगों को ही वह दिया जा रहा है । जिस प्रकार ‘पद्म’ पुरस्कार देने से पहले ‘मैं यह पुरस्कार अस्वीकार नहीं करूंगा’ ऐसा प्रतिज्ञापत्र लिखकर लिया जाता है; क्योंकि इस पुरस्कार को अस्वीकार करना देश की अवमानना करने समान है । श्रीराममंदिर न्यास की ओर से सभी को आमंत्रण दिया जा सकता है; परंतु किसी के द्वारा उसका अस्वीकार किया जाना उचित नहीं होगा ।
‘हमें कुछ निःशुल्क नहीं चाहिए’, ऐसा स्वाभिमानी समाज निर्माण करना, शासनकर्ताओं का कर्तव्य !आज देश में लोगों को निःशुल्क देने की होड लगी हुई है । बिजली का देयक निःशुल्क, ‘वाई-फाई’ निःशुल्क, इसी के साथ अनेक सुविधाएं निःशुल्क दी जा रही हैं । वास्तव में जो शारीरिक दृष्टि से सक्षम नहीं हैं अथवा जो किसी का मूल्य नहीं दे पाते हैं, ऐसे लोगों को ही निःशुल्क देना अपेक्षित है । ‘मुझे प्राप्त प्रत्येक सुविधा का मूल्य देना मेरा कर्तव्य है’, ऐसी स्वाभिमानी वृत्ति का समाज निर्माण करना, शासनकर्ताओं का कर्तव्य है । |
प्रभु श्रीराम के संदर्भ में जानबूझकर वक्तव्य देकर उनके जीवनमूल्यों को गौण करने का प्रयास !कुछ लोग वक्तव्य दे रहे हैं कि श्रीराम मांसाहारी थे ।’ इसपर ‘आपकी क्या राय है ?’, ऐसा पूछने पर प.पू. स्वामीजी ने कहा, ‘‘जो राजनीतिक लोकप्रतिनिधी मांसाहार के विषय में बोल रहे हैं, उन नेताओं में से कितने नेता मांसाहार करते हैं ? यह जांचने की आवश्यकता है । उनकी सूचि बनाई जाए, तो वे सभी घर जाएंगे । प्रभु श्रीराम क्षत्रिय थे । जानबूझकर ऐसे वक्तव्य देकर उनके जीवनमूल्यों को गौण दिखाया जाने का प्रयत्न हो रहा है । प्रभु श्रीराम का जीवन जिन जीवनमूल्यों के लिए था, उन मूल्यों को हमें देखना चाहिए ।’’ |