सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार
प्रेम से दीर्घकाल तक टीकनेवाला सुख मिलता है; जबकि शारीरिक संबंधों से तात्कालिक सुख मिलता है !
‘पूर्वकाल में पहले मानसिक स्तर पर प्रेम होता था, फिर शारीरिक संबंध बनते थे; परंतु आजकल अनेक पश्चिमी देशों में पहले शारीरिक संबंध बनते हैं और आगे दोनों की बने, तो फिर मानसिक प्रेम निर्माण होता है । इस कारण अभी की पीढी को तात्कालिक सुख तथा दीर्घकालिक दुख भोगना पड रहा है ।’
अंग्रेजी भाषा की सीमा जानें !
‘पूरे विश्व में आज कहीं भी जाएं, तो इस भूतल के विविध विषय अंग्रेजी भाषा में सीखे जाते हैं । इस कारण सर्वत्र अंग्रेजी भाषा महत्त्वपूर्ण हो गई है । सभी लोग यह भाषा सीखने का प्रयास करते हैं । ऐसा होने पर भी मानव जीवन का मुख्य ध्येय ‘ईश्वरप्राप्ति कैसे करनी है’, यह अंग्रेजी भाषा से नहीं सीखा जा सकता ।’
ऋषि-मुनियों पर ‘ईश्वरीय कृपा’ !
‘वेद-उपनिषद लिखनेवाले ऋषि-मुनि पूर्व के सात्त्विक काल में हुए, यह अच्छा हुआ; क्योंकि आज के तामसिक काल में (कलियुग) में उन्हें कोई महत्त्व नहीं मिलता ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले