ईश्वर से सनातन को मिला एक अनमोल वरदान श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी !

१. सभी सेवाएं आदर्श पद्धति से करनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी !

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी

‘ईश्वर से सनातन को मिला एक अनमोल वरदान हैं, श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ! श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की विशेषता यह है कि उन्होंने अभी तक जिस-जिस माध्यम से सेवा की, उन सेवाओं में उन्होंने आदर्श स्थापित किया ।

अ. आरंभ में उन्होंने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के मार्गदर्शन में संगीत साधना की । उस समय उन्हें संगीत के राग से, उससे संबंधित तत्त्व की अनुभूति होती थी ।

आ. उन्होंने अनेक वर्ष तक ईश्वर से दिव्य ज्ञान ग्रहण करने की सेवा भी की । उन्होंने बडी सुंदरता से ज्ञानयोग को भक्तियोग से जोडा ।

इ. महान हिन्दू संस्कृति की अनमोल धरोहर को जतन करने की सेवा करते समय श्रीचित्शक्ति गाडगीळजी में विद्यमान चैतन्यशक्ति की प्रतीति होने लगी । मंदिरों, धार्मिक स्थलों के पुजारी एवं पदाधिकारी सहजता से उनकी सहायता करने लगे । उनकी वाणी में विद्यमान चैतन्य के कारण वे जिन-जिनसे मिलती हैं, उन्हें वे स्थायीरूप से अपना बना लेती हैं ।

श्रीसत्‌शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी

२. सप्तर्षि जिन्हें ‘यह मेरी कार्तिकपुत्री’ कहते हैं, ऐसी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में उत्पन्न बाधाएं दूर हों तथा साधकों की रक्षा हो’, इसके लिए सप्तर्षियों की आज्ञा से वे विगत कुछ वर्षाें से संपूर्ण भारत के तीर्थस्थलों का भ्रमण कर रही हैं । वहां देवताओं के दर्शन करना, पूजा-अर्चना एवं अनुष्ठान करना आदि सेवाएं वे कर रही हैं । साधकों को देवदर्शन का आध्यात्मिक स्तर पर अधिकाधिक लाभ हो, इसके लिए वे प्रयासरत रहती हैं । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी में सप्तर्षियों एवं देवताओं की कृपा प्राप्त करने की उत्कंठा है । उसके कारण ही सप्तर्षियों द्वारा दी जानेवाली आज्ञा का वे इतनी सुंदरता से एवं परिपूर्ण पद्धति से पालन करती हैं कि महर्षि बडे प्रेम से उन्हें ‘यह मेरी कार्तिकपुत्री’ कहते हैं । (अर्थ : श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का जन्म कृतिका नक्षत्र में तथा तमिल पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन होने के कारण सप्तर्षि उन्हें ‘कार्तिकपुत्री’ कहते हैं ।) अनेक नाडीपट्टिका वाचनों में सप्तर्षियों ने उनके प्रति गौरवोद्गार व्यक्त किए हैं ।

३. संतवचन को सार्थक करनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी !

संत तुकाराम महाराजजी का वचन है, ‘देवा पहाया गेलो । तेथे देवची होऊनी गेलो ।।’ (भगवान को देखने के लिए गया । मैं स्वयं ही भगवान बन गया ।।), यह वचन श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के संदर्भ में अचूकता से लागू होता है । देवताओं के दर्शन करते-करते सप्तर्षियों एवं सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी की कृपा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान देवीतत्त्व प्रकट होने लगा है । समाज के अनेक लोग उनकी ओर आकृष्ट होते हैं । उनका ‘तेजस्वी मुखमंडल’ ही अब उनकी पहचान बन चुका है ।

दैवीय भ्रमण कर यज्ञ अथवा आध्यात्मिक समारोहों के लिए जब वे रामनाथी आश्रम आती हैं, उस समय आश्रम के वातावरण में ही परिवर्तन हो जाता है । सभी साधक उनसे मिलने तथा उनके प्रेम को अनुभव करने के लिए उत्सुक रहते हैं । निरंतर दैवीय भ्रमण पर होने के कारण साधकों से उनका प्रत्यक्ष संपर्क अल्प होते हुए भी सभी साधक उन्हें अपने लगते हैं तथा सर्वत्र के साधकों को वे अपनी लगती हैं, यही उनके समष्टि के प्रति अपार प्रेमभाव का दर्शक है !

४. देवताओं की सनातन पर कृपा हो, इसके लिए चंदन की भांति अपनी देह समर्पित करनेवालीं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी !

सप्तर्षियों एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से अध्यात्मप्रसार के कार्य को समाज से स्फूर्तिदायी प्रतिसाद मिल रहा है । आज सनातन के सहस्रों साधक व्यक्तिगत जीवन में, साथ ही व्यष्टि एवं समष्टि साधना में भगवान की सहायता मिलने की अनुभूति ले रहे हैं । देवताओं एवं सप्तर्षियों की सनातन परिवार पर कृपा बनी रहे, इसके लिए गुरुदेवजी की कृपा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी चंदन की भांति अपनी देह समर्पित कर रही हैं । सभी साधकों की साधनायात्रा में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के कार्य का बडा योगदान है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी द्वारा अखिल मानवजाति को प्रदान किया गया अनमोल वरदान हैं ।

‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी, आपके कठोर परिश्रमों के कारण ही आज साधकों के प्रयासों को आध्यात्मिक बल मिल रहा है । आपके ५३ वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में सभी साधकों की ओर से आपके सुकोमल चरणों में कृतज्ञतापूर्वक नमस्कार ! ‘आपकी भक्ति, लगन तथा प्रीति का अंश सर्वत्र के साधकों में आए’, यह सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थना है !’

– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (६.१२.२०२२)