व्यवसाय करते हुए साधना में संतपद प्राप्त करनेवाले कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी (आयु ६४ वर्ष) !

कतरास, झारखंड के सफल उद्योगपति एवं सनातन संस्था के ७३ वें (समष्टि) संत पू. प्रदीप खेमकाजी से सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) द्वारा उनकी साधना से संबंधित सुसंवाद एवं उनकी साधना यात्रा आगे दी है । १ से १५ नवंबर के पाक्षिक सनातन प्रभात में हमने इस विषय में कुछ सूत्र देखें । आज आगे के सूत्र देखेंगे ।

पू. प्रदीप खेमकाजी

३. साधना करने से प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को हुए लाभ !

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर : आपकी साधना का आपके कर्मचारियों को कैसे लाभ हुआ, इस संबंध में कुछ बताइए ।

पू. खेमकाजी : हमारे प्रतिष्ठान के सदस्य साधक ही हैं । जब से मैंने साधना प्रारंभ की है, तब से ही उन्होंने भी साधना प्रारंभ की ।

३ अ. गुरुदेवजी के मुख से निकला हुआ मंत्र, एक शक्ति ही है, इसकी एक कर्मचारी को हुई अनुभूति !

पू. खेमकाजी : मैंने वर्ष २००० में साधना प्रारंभ की एवं प्रतिष्ठान के सदस्यों को भी नामजप करने हेतु कहा । तब उनके जीवन में भी परिवर्तन हुआ । हमारे प्रतिष्ठान के एक कर्मचारी ने मुझसे कहा, ‘‘मेरे रक्त में शक्कर ५५०-६०० mg/dL (डेसीलिटर) रहती है (स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में शक्कर का स्तर साधारणतः ९० से १०० मिलीग्राम प्रति डेसीलिटर, रहता है ।) एवं इतना वेतन मेरे लिए पर्याप्त नहीं है । पूरा वेतन मेरी औषधियों में ही खर्च हो जाता है ।’’ मैंने उससे कहा, ‘‘आप ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ एवं ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’ जप करिए । उसने वे दोनों नामजप किए एवं उसके रक्त में शक्कर की मात्रा एक महीने में ही १५० mg/dL पर आ गई । रक्त में शक्कर घटने से उसका औषधियों पर होनेवाला खर्च बचा एवं उसका व्यवहारिक जीवन अच्छे से व्यतीत होने लगा । उसने कहा, ‘‘भैया, इस नामजप में शक्ति है । मेरा बहुत अच्छा हुआ ।’’

३ आ. प्रतिष्ठान में सबकी साधना प्रारंभ होने पर संपूर्ण प्रतिष्ठान एक परिवार बनना, सभी संतुष्ट होना एवं उसके कारण मेरी साधना के लिए बहुत समय मिलना

पू. खेमकाजी : मेरे प्रतिष्ठान के कर्मचारियों ने एक साथ साधना प्रारंभ की । साधना प्रारंभ करने के पूर्व कर्मचारी उनका संगठन (यूनियन) बनाने का विचार कर रहे थे । इसलिए उनके मन में संघर्ष था । तब उन्हें बहुत समझाना पडता था । साधना से जुडने के उपरांत कभी संघर्ष की परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई; क्योंकि सभी साधक बन गए थे । सबको प.पू. गुरुदेवजी ने संभाल लिया था । उनका सर्व पालन-पोषण गुरुदेवजी ने स्वयं पर लिया था । उन्हें जितना काम मिलता था, उसमें उनका पालन-पोषण हो जाता था । इसलिए वे संतुष्ट थे । उनके लिए धन महत्त्वपूर्ण नहीं था । उनका जीवन उनकी संतुष्टि एवं आनंद था तथा वह उनकी साधना थी ।

सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर

कु. तेजल : अब तो उन्हें एक संत ही मार्गदर्शन करने मिल गए हैं, तो वे आनंद का अनुभव ही कर रहे होंगे ना पू. भैया !

पू. खेमकाजी : मुझे पता नहीं; परंतु उन सबकी गुरुदेवजी पर अटूट श्रद्धा है ।

कु. तेजल : आप ही उसका कारण हैं । हम जिस प्रकार एक परिवार को जोडकर रखते हैं, उस प्रकार आपने उन सबको समष्टि से जोडकर रखा है ।

३ इ. केवल गुरुकृपा के कारण ही कठिन कोरोना महामारी के समय सब साधकों द्वारा प्रतिष्ठान का काम जरी रखना तथा उनकी कोरोना से रक्षा होना

पू. खेमकाजी : कोरोना के कठिन काल में कोयले की खदान का व्यवसाय पूर्णतः चल रहा था । इसके लिए पराकाष्ठा की कृतज्ञता होनी चाहिए । कठिन कोरोना काल में कोरोना महामारी उच्चांक पर थी । उस समय प्रतिदिन ५००-६०० लोग घर से काम पर आते थे । हमारे प्रतिष्ठान का काम पूर्णतः चल रहा था । पेट्रोल पंप का भी पूरा काम चल रहा था । वहां की खदान का संपूर्ण कामकाज (मायनिंग एक्टिविटीज) चल रहा था और उन्हें लगता था कि कोरोना का संकट आया ही नहीं ।

कु. तेजल : यह कितना विशेष है ना !

पू. खेमकाजी : इतना विशेष है । हम कहते हैं ना कि साधना करने से कवच निर्माण होता है, वह मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है । जिस समय संपूर्ण संसार उस कोरोना की चपेट में था, उस समय हमारा कार्य चल रहा था । सभी लोग कार्य कर रहे थे । ‘क्लीनर, ड्राइवर, ऑपरेटर्स, स्टाफ आदि सभी लोक कार्य कर रहे थे । उन्हें भी बडा आश्चर्य लगता था कि यह कोरोना क्या है ? प.पू. गुरुदेवजी कितना करते हैं और वे नहीं करेंगे, तो कौन करेगा ? ऐसा लगता है वे ही मेरे सर्वस्व हैं ।

४. साधकों को संदेश – प्रत्येक कृत्य गुरुदेवजी का स्मरण करते हुए पूर्ण क्षमता से करें ।

कु. तेजल : पू. भैया अब आप समष्टि के लिए बताइए कि इस काल में टिके रहने के लिए उन्हें कि प्रकार साधना के प्रयत्न करने चाहिए ?

पू. खेमकाजी : सर्व साधकों की साधना के लिए मेरे मन में प्रार्थना होती ही है एवं उनकी रक्षा के लिए भी प्रार्थना होती है । जिस प्रकार यहां रामनाथी आश्रम और देवद आश्रम हैं । वहां सभी संत हैं । प.पू. गुरुदेवजी स्वयं यहां हैं । वे ईश्वर यहां हैं । वे आप लोगों को, बालसाधकों को, दैवी बालकों को अथवा बडे साधकों को देखते हैं । तब ऐसा लगता है कि कितना अच्छा प्रारब्ध और भाग्य लेकर आप सभी आए हैं । उनके द्वारा प्रत्यक्ष जो भी हो रहा है, वह आप सबको मिलता है । ऐसी आभा से हम दूर हैं । जो साधक दूर रहते हैं, उनसे हमारी प्रत्यक्ष भेंट नहीं हो पाती, तब भी उनकी रक्षा कर उन पर भी ऐसी ही कृपा बनी रहे और वे भी प्रतिक्षण गुरुदेवजी को अपने साथ रखें ।

उनके चरण पकडकर रखें । उनके लिए आप क्या कर सकते हैं ?, ऐसा विचार कर विचार के अंतिम चरण तक जाइए एवं तत्पश्चात वैसा कृत्य कीजिए । जो गृहिणियां हैं, साधक हैं, जो घर में रहते हैं, उन्हें बताइए कि प्रतिक्षण गुरुदेवजी को अपने साथ रखें । रसोई बनाते समय, पोंछा लगाते समय, कपडे धोते समय, घर की सेवाएं करते समय प्रत्येक में गुरुदेवजी का रूप देखें ।

(समाप्त) 

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक