छठ पूजा (१९ नवंबर)

कब होती है छठ पूजा ?

छठ पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाई जाती है । यह चार दिवसीय त्योहार होता है, जो चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है । इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता है । इसके अतिरिक्त चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता है, जिसे चैती छठ कहते हैं । इस पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है । छठी माता बच्चों की रक्षा करती हैं । यह पूजा संतान प्राप्ति की इच्छा से भी की जाती है । इसे विशेषतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड एवं नेपाल में मनाया जाता है ।

छठ पूजा व्रत की विधि

पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे सबसे बडा त्योहार मानते हैं । इसमें गंगा स्नान का महत्त्व सबसे अधिक है । यह व्रत स्त्री एवं पुरुष दोनों करते हैं । यह चार दिवसीय त्योहार है जो इस प्रकार मनाया जाता है –

पहला दिन : नहाय खाय

यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होता है । इस दिन सूर्योदय के पूर्व पवित्र नदियों में स्नान करने के पश्चात ही भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू (लौकी) खाने का विशेष महत्त्व पुराणों में है । इस दिन कद्दू (लौकी) के साथ चने की दाल और अरवा चावल खाने का विशेष महत्त्व पुराणों में है ।

दूसरा दिन : खरणा

दूसरे दिन सवेरे से निर्जला उपवास कर सायंकाल को रोटी एवं गुड की खीर बनाकर घर के अन्य लोगों को प्रसाद वितरित कर व्रत करनेवाले स्वयं भी उसे ग्रहण करते हैं ।

तीसरा दिन : डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण

इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पण करते हैं, प्रात:काल स्नान कर प्रसाद (‘ठेकुआ’) बनाते हैं । इस प्रसाद को बनानेवाले सभी निर्जला रहकर ही बनाते हैं । तदुपरांत बांस या पीतल के सूप में, मौसम में उपलब्ध सभी फलों के साथ ठेकुआ रखकर बांस की बडी सी टोकरी में रख नदी अथवा तालाब पर जाते हैं । वहां व्रती नदी में भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर लौट आते हैं ।

चौथा दिन : सूर्य को अर्घ्य देना

इस दिन प्रात: चार बजे पुन: नदी पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर लौट आते हैं । (संदर्भ : वेबसाइट)

छठ व्रत के नियम

इसमें स्वच्छ, नए एवं बिना सिले वस्त्र पहने जाते हैं, जैसे महिलाएं साडी एवं पुरुष धोती पहनते हैं । इन चार दिनों में प्याज, लहसुन एवं मांस-मछली का प्रयोग निषिद्ध है ।