व्यायाम से मन की भी स्थिरता बढती है ।
व्यायाम से न केवल शरीर की, अपितु मन की भी स्थिरता बढती है । ‘व्यायाम से व्यक्ति में दुःख सहने की क्षमता निर्माण होती है ।’ (सन्दर्भ : चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय ७, श्लोक ३२)
‘व्यायाम से शरीर की कान्ति सुधरती है । आलस्य दूर होता है । भूख-प्यास सहने की क्षमता बढती है । मोटापा घटाने के लिए व्यायाम जैसी दूसरी औषधि नहीं । नियमित व्यायाम करनेवाले को शत्रु का भय नहीं होता । व्यायाम करनेवाला व्यक्ति एकाएक वृद्ध नहीं होता । व्यायाम करने के उपरान्त शरीर को रगडने से रोग नहीं होते । आयु और रूप में निकृष्ट व्यक्ति भी व्यायाम से सुन्दर हो जाता है । व्यायाम करनेवाला सब प्रकार का भोजन पचा सकता है । उन्हें अन्न से बाधा नहीं होती ।’ (सन्दर्भ : सुश्रुतसंहिता, चिकित्सास्थान, अध्याय २४, सूत्र ३८ से ४५)
व्यायाम के मूलभूत प्रकार
१. हृदय और रक्तवाहिनियों को स्वस्थ रखनेवाले व्यायाम : ऐसे व्यायाम को अंग्रेजी में ‘एरोबिक एक्सरसाइज’ कहते हैं । चलना, दौडना, साइकिल चलाना, उछलना-कूदना, तैरना, मैदानी खेल खेलना आदि व्यायाम इसमें सम्मिलित हैं । ये व्यायाम करते समय शरीर में रक्तसंचार बढता है । शरीर का तापमान बढता है तथा मांसपेशियों से हृदय की ओर रक्त का प्रवाह अधिक वेग से होने लगता है । इससे हृदय की कार्यक्षमता बढती है ।
२. स्नायुओं और हड्डियों को पुष्ट करनेवाले व्यायाम : इन्हें अंग्रेजी में ‘एनेरोबिक एक्सरसाइज’ कहते हैं । ये व्यायाम मांसपेशियों को सुडौल बनाने के लिए किए जाते हैं । भार उठाना, दण्ड-बैठकें करना आदि अधिक बलप्रयोगवाले व्यायाम इस वर्ग में आते हैं । ऐसे व्यायामों से मांसपेशियों में खिंचाव अधिक होता है और उनमें रक्त की आपूर्ति बढ जाती है । इससे मांसपेशियों का आकार बढता है और वे बलवान बनती हैं ।
३. जोडों और स्नायुओं को लचीला बनानेवाले व्यायाम : योगासन, सूर्यनमस्कार आदि व्यायाम इसमें सम्मिलित हैं । इस प्रकार के व्यायाम से स्नायुओं को तानकर उनकी कार्यक्षमता बढाई जाती है ।
स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए प्रतिदिन उपर्युक्त तीनों प्रकार के व्यायाम अपनी क्षमता के अनुसार करें, उदा. कुछ समय चलना अथवा दौडना, कुछ समय भार उठाना, तो कुछ समय सूर्यनमस्कार अथवा योगासन करना ।
(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियोंके निरोगी रहें !’)
सर्दी, खांसी एवं बुखार में तुलसी का उपयोग
‘सर्दी, खांसी एवं बुखार पर तुलसी एक रामबाण औषधि है । ये बीमारियां होने पर तुलसी के २-२ पत्ते दिन में ३ बार चबाकर खाएं । तुलसी के १०-१५ पत्तों को १ गिलास पानी में उबालकर उसकी भाप लें । दिन में २ बार १-१ कप तुलसी का काढा (भाप लेने के उपरांत शेष बचा पानी) पीएं । ऐसा ३ से ५ दिन तक करें । तुलसी नियमित उपलब्ध हो; इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति अपने घर पर तुलसी के १-२ पौधे लगाए ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१०.१.२०२३)