सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी

‘पश्चिमी संस्कृति एवं दर्शन केवल भौतिक एवं सामाजिक विषयों का अध्ययन करते हैं । इसके विपरीत हिन्दू संस्कृति और दर्शन भौतिक एवं सामाजिक विषयों के साथ ही आध्यात्मिक विषयों का अध्ययन करते हैं तथा ईश्वरप्राप्ति के ध्येय के विषय में मार्गदर्शन करते हैं ।’


माया संबंधी प्रेम करने के लाभ और हानि

१. लाभ : प्रेम माया संबंधी हो तब भी, प्रेम करने पर अन्यों से प्रेम कैसे करना है, यह सीखने को मिलता है । जिसे यह ज्ञात नहीं होता, उसके लिए प्रीति के स्तर पर जाना कठिन होता है । साथ ही उसकी प्रीति में व्यापकता नहीं आती ।

२. हानि : अधिकांश लोग प्रेम में फंस जाते हैं, अर्थात माया में उलझते जाते हैं ।


हिन्दू धर्म के कर्मकांड विज्ञान की तुलना में अनेक गुना परिपूर्ण हैं !

‘हिन्दू धर्म की जिन कृतियों की तथाकथित बुद्धिप्रमाणवादी कर्मकांड के रूप में आलोचना करते हैं, उन कृतियों का अध्ययन करने पर, जब यह ध्यान में आएगा कि वे विज्ञान की तुलना में अनेक गुना परिपूर्ण हैं, तब अध्ययनकर्ता नतमस्तक हो जाएंगे ।’


परीक्षा में मिले अंकों की तुलना में साधना के कारण निर्माण हुए सद्गुण महत्त्वपूर्ण !

‘परीक्षा में मिले अंकों से एक परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं । इसके विपरीत साधना से निर्माण हुए सद्गुणों से जीवन की परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले