Electoral bonds : राजकीय पक्षों को मिलनेवाली राशि (डोनेशन) की जानकारी जनता को देने की आवश्यकता नहीं !
केंद्र सरकार की सर्वोच्च न्यायालय में भूमिका
नई देहली – राजकीय पक्षों को चंदा (डोनेशन) प्राप्त करने के लिए बनाए गए ‘इलेक्टोरल बाँड व्यवस्था’को सर्वोच्च न्यायालय में आवाहन दिया गया । इस पर सुनवाई से पहले ३० अक्टूबर को भारत सरकार के महाधिवक्ता आर्. वेंकटरमनी ने न्यायालय में उत्तर प्रस्तुत किया । राजकीय पक्षों को मिलनेवाले चंदे (डोनेशन) की जानकारी मिलना, यह नागरिकों का मूलभूत अधिकार नहीं है । इसलिए डोनेशन की जानकारी लोगों को नहीं मिलती । ऐसा होते हुए भी ‘इलेक्टोरल बाँड’की व्यवस्था रहित भी नहीं की जा सकती, ऐसा युक्तिवाद वेंकटरमनी ने न्यायालय में किया । सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड की अध्यक्षता में ५ न्यायमूर्तियों के संविधान पीठ ३१ अक्टूबर से इस पर सुनवाई कर रहे हैं ।
‘असोसिएशन फॉर डेमोक्रॅटिक फोरम्स’ नामक संस्था द्वारा ‘इलेक्टोरल बाँड व्यवस्था’को आवाहन देनेवाली याचिका प्रविष्ट की गई और अधिवक्ता प्रशांत भूषण, उनकी ओर से अभियोग लड रहे हैं । भूषण ने युक्तिवाद में कहा कि सत्ताधारी पक्षों को भारी मात्रा में आस्थापनों द्वारा चंदा के स्वरूप में धनराशि मिलती है और आगे सरकार उन प्रतिष्ठानों का हित आंखों के सामने रख नियम बनाती है । इसका आर्थिक लाभ उन प्रतिष्ठानों को होने से यह व्यवस्था रहित करनी होगी ।
क्या है ‘इलेक्टोरल बाँड व्यवस्था’ !
राजकीय पक्ष निधि जुटाने के लिए जनता को इस व्यवस्था के माध्यम से आवाहन कर सकते हैं कि वह राजकीय पक्षों में निधि लगाए । ये ‘बाँड्स’ १ सहस्र रुपयों से लेकर १ करोड रुपए तक के हो सकते हैं । ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ की कुछ शाखाओं में भी यह निधि लगा सकते हैं । यह निधि किससे आई है, यह राजकीय पक्षों से भी गोपनीय रखा जाता है । वर्ष २०१८ में भाजपा सरकार द्वारा कानून बनाकर यह व्यवस्था की थी ।