सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘मंदिर में देवताओं के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन कराने के अतिरिक्त अन्य कुछ करते हैं क्या ? वे दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा देते, साधना सिखाते, तो हिन्दुओं की एवं भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं होती ।’
भारत की दुर्दशा का एक कारण है, राज्यकर्ताओं द्वारा जनता को साधना न सिखाना !
‘स्वतंत्रता से लेकर आज तक के सभी राज्यकर्ताओं ने केवल बौद्धिक शिक्षा के माध्यम से वैद्य, अभियंता, वकील तैयार किए; पर उन्हें साधना सिखाकर ‘संत’ बनने की शिक्षा नहीं दी । इस कारण आज देशद्रोह से लेकर रिश्वत तक सभी प्रकार की समस्याओं का यह देश सामना कर रहा है ।’
अध्यात्म का प्रसार करते समय यह स्मरण रखें !
‘ईश्वर का अस्तित्व न माननेवाले क्या कभी ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करने का विचार कर सकते हैं ? साधक अध्यात्म प्रसार करते समय ऐसे लोगों से बात करने में समय व्यर्थ न करें !’
भक्तियोग का महत्त्व !
‘ज्ञानयोग के अनुसार साधना करने पर वह प्रमुख रूप से बुद्धि से होती है । कर्मयोग के अनुसार साधना करने पर, वह शरीर और बुद्धि से होती है; जबकि भक्तियोग के अनुसार साधना करने पर, वह मन, बुद्धि और शरीर से होती है ।’
– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले