पटाखों के कारण होनेवाला प्रदूषण : एक विनाशकारी नरकासुर !
दीपावली के समय मौज-मस्ती, विभिन्न व्यंजनों का सेवन, अल्पाहार, नए वस्त्र, धार्मिक परंपराओं का पालन आदि सब किया जाता है । इसके साथ ही आजकल अधिकतर स्थानों पर बडी मात्रा में पटाखे जलाकर करोडों रुपए उडाए जाते हैं । वास्तव में देखा जाए, तो पटाखे मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हैं । इस विषय में विवेचन करनेवाला लेख यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।
१. प्राणघाती ध्वनिप्रदूषण का अर्थ है प्राणों पर संकट !
‘दीपावली से पूर्व गणेशोत्सव एवं नवरात्रि इन उत्सवों के समय होनेवाले प्रदूषण के कारण बीमार रोगी चिकित्सा के लिए मेरे पास आए थे । एक ३५ वर्षीय युवक दिनभर गणेशजी के मंडप में बैठा था । उसकी बाईं ओर ऊंची आवाज में ध्वनिवर्धक यंत्र चल रहा था । दूसरे दिन यह ज्ञात हुआ कि उसे सुनाई नहीं दे रहा था । उसके विभिन्न परीक्षण किए गए; परंतु डॉक्टरों ने घुटने टेक दिए । देवी की विसर्जन शोभायात्रा में उसने ही १० सहस्र पटाखों की लडी जलाई थी । अगले दिन सांस फूलने के कारण उसे गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती कराना पडा । वहां से बाहर आने के उपरांत वह मेरे पास आया । तीसरी घटना गांव में हुई थी । एक लगभग २५ वर्षीय युवक कुछ ही दिन पहले बुखार से स्वस्थ हुआ था । उसे केवल थोडी कमजोरी थी । वह सार्वजनिक गणेशोत्सव में सम्मिलित हुआ । वहां डीजे चल रहा था । आधे घंटा पश्चात उसने वहां किसी को ‘अब मैं चलता हूं’, ऐसा कहकर भगवान के सामने जो अपना मस्तक रखा, वह सदा के लिए ! वहां के चिकित्सक ने उसका निदान ‘डी जे जनित हार्ट अटैक (ध्वनिवर्धक यंत्र के कारण आया हृदयाघात का झटका) किया ।
२. समाज को पटाखों एवं ध्वनिवर्धक यंत्रों के कारण होनेवाले प्रदूषण से बचना आवश्यक !
जीवन को नष्ट अथवा ठप्प कर पानेवाले घटकों का वातावरण, जल एवं भूप्रदेश में सम्मिलित होने का अर्थ है प्रदूषण ! ध्वनि की गणना करनेवाली संज्ञा को ‘डेसिबल’ कहा जाता है । सामान्यतः १० से ५० डेसिबल्स की ध्वनि हमें बिना किसी कष्ट के सुनाई देती है; परंतु इस सीमा के ऊपर की ध्वनि हमें अच्छी नहीं लगती है, उदाहरणार्थ बहुत ऊंचे स्वर में बात करना ६० डेसिबल्स, टीवी अथवा रेडियो का ऊंचा स्वर ७० से ७५ डेसिबल्स, प्रेशर कुकर की सीटी ७५ डेसिबल्स, वाहनों के हॉर्न ७५ से ८० डेसिबल्स, विमान उडान भरते समय ११० से १२० डेसिबल्स की ध्वनि उत्पन्न करते हैं । ध्वनिवर्धक यंत्रों की आवाज तो इससे कहीं अधिक होती है, यह कानों पर कितना बडा अत्याचार है !
३. ध्वनिप्रदूषण से मानसिक एवं शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित होना
ध्वनिप्रदूषण से मानसिक एवं शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित हुए हैं । ध्वनिप्रदूषण से शारीरिक एवं मानसिक तनाव बढता है, मनुष्य में चिडचिडाहट एवं आक्रामकता बढती है । उसे नींद नहीं आती । उसके कारण उसका मानसिक संतुलन बिगडता है । वह झगडालू हो जाता है, उसका रक्तचाप बढता है । कारखानों की ऊंची आवाजों के कारण वहां काम करनेवाले श्रमिक वृद्धावस्था में बहरे हो जाते हैं । ध्वनिवर्धक यंत्र की ऊंची आवाज के कारण हृदयरोग से पीडित व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना होती है । ध्वनिप्रदूषण के कारण गर्भवती स्त्री के गर्भ को भी क्षति पहुंच सकती है । पशु एवं पक्षियों की अनेक प्रजातियां मानवनिर्मित ऊंची आवाजों के कारण नष्ट हो गई हैं ।
४. वायुप्रदूषण के कारण श्वसनतंत्र सर्वाधिक प्रभावित होना
वायुप्रदूषण के सबसे अधिक संकटकारी परिणाम श्वसनतंत्र पर होते हैं । विभिन्न प्रदूषणकारी घटक सीधे श्वसनतंत्र पर आक्रमण करते हैं । ओजोन एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड फेफडों पर अत्यंत घातक परिणाम करते हैं । ओजोन फेफडों में स्थित कोशिकाओं को नष्ट कर फेफडों को दुर्बल बनाता है । उसके कारण दमा बढता है । नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के श्वसननली एवं फेफडों में जाने से उसे पिघलाने के लिए अधिकाधिक कफ की निर्मिति होती है । उसके कारण कफ की बीमारियां उत्पन्न होती हैं । जब ये बीमारियां पुरानी हो जाती हैं, तो उससे जीवाणुओं का संक्रमण होकर स्थिति गंभीर रूप धारण कर लेती है । हमारे लहू में ऑक्सीजन के वहन का कार्य करनेवाले हिमोग्लोबिन में ऑक्सीजन के स्थान पर हवा में बढा कार्बन डाइऑक्साइड मिलकर शरीर के सभी अंगों में पहुंच जाता है । यह अत्यंत विषैला होता है तथा यदि उसका कुछ मिनटों तक निरंतर संपर्क रहा, तो उससे मृत्यु भी हो सकती है । किसी भी अंग के अतिउपयोग को आयुर्वेद में भी बीमारियों का कारण बताया गया है ।
५. पटाखों के कारण उत्पन्न विषैली वायुओं को खींच लेने की क्षमता वृक्षों में न होने से, उनका उपयोग टालना ही एकमात्र उपाय !
सबसे बुरी वास्तवकिता यह है कि वृक्ष लगाकर पटाखों का प्रदूषण नहीं घटाया जा सकता । पटाखे जलाने से उत्पन्न धुआं कागद, लकडी अथवा कूडे-कचरे के धुएं जितना सामान्य नहीं होता । कागद, लकडियां तथा कूडा-कचरा जलाने से उससे केवल कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होता है, जो वृक्ष का अन्न है । इसलिए प्रचुर संख्या में वृक्ष लगाने से यह प्रदूषण घट सकता है । प्रत्येक व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक सांस लेने-छोडने की प्रक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करता ही रहता है । वृक्ष हमें इस प्रदूषण से मुक्त करते हैं; परंतु पटाखों के ज्वलन से सल्फर एवं कार्बनयुक्त अनेक विषैली वायु एवं अन्य धातु उत्पन्न होते हैं । बिना आवाजवाले पटाखे तो अधिक विषैली वायु उत्पन्न करते हैं । दुर्भाग्यवश किसी भी पटाखे से बननेवाले विषैले वायु का शोषण करने की क्षमता वृक्षों में नहीं है; इसीलिए पटाखों को ‘नहीं’ कहने के अतिरिक्त हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है ।
पटाखे एवं डीजे, नहीं हैं प्रतीक धर्म के ।
यह तो शोध बाहरी लोगों के, वह भी कल-परसों के ।।
धर्म होता है स्मरण नित्य ईश्वर का ।
रखना ध्यान सकल जनों के स्वास्थ्य का ।।
– वैद्या सुचित्रा कुलकर्णी, एम.डी. (आयुर्वेद), बी.ए. (योगशास्त्र (स्वर्णपदक प्राप्त))
(साभार : ‘आरोग्यदूत’ वॉट्सएप समूह’ एवं ‘मराठीसृष्टि’ जालस्थल)