हिन्दुओं को धर्म से दूर ले जानेवाला ‘धार्मिक जिहाद !’
१. धर्मशिक्षा और धर्माभिमान के अभाव में हिन्दू समाज धर्म की मूल विचारधारा से भटक जाना
धर्म में आस्था और आध्यात्म के प्रति झुकाव आज भी हिन्दुओं में मिलता है। आज भी हिन्दू जिन्हें पवित्र मानते हैं, उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं । इसी भावना के कारण आज भी हिन्दुओं में मानवता देखने मिल जाती है। कण-कण में ईश्वर का वास समझना और पूरी पृथ्वी को अपना कुटुम्ब समझना, यह हिन्दुओं का चिंतन है। दुर्भाग्य से आज यही विचार हिन्दुओं के विनाश का कारण बनता दिखाई पड रहा है ।कुछ वर्षों से हिन्दुओं में धर्माभिमान अल्प होने से तथा धर्म के प्रति अज्ञानता होने के कारण हिन्दू समाज की सोच बदल गई है। हिन्दुओं में अपने भगवान और देवी-देवताओं के प्रति उपेक्षा और संदेह की भावना आ गई है और यह सब एक सुनियोजित ढंग से किया गया है । ये सब वामपंथी शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता की महिमा मंडन के कारण हुआ है । जिसके कारण हिन्दू भ्रमित हो गया और वह अपने धर्म के मूल विचार से हट गया है और उसमें धर्म को लेकर सही और गलत का विवेक लगभग नगण्य हो गया है। हिन्दुओं में शत्रु बोध लगभग समाप्त ही हो गया है।
२. हिन्दुओं को श्रीराम, श्रीकृष्ण और शिव, इन देवताओं से दूर ले जाने का षड्यंत्र !
जबसे रामानंद सागर का धारावाहिक ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ तब से लोगों में बहुत उत्साह देखने मिला। पर कुछ समय बाद जब भारत में बहुत से चैनलों का प्रसारण होने लगा तब लोगों की सोच में परिवर्तन आया। बहुत से धार्मिक धारावाहिक बनने लगे जिसमें तथ्यों को तोड-मरोड कर प्रस्तुत भी किया गया। कुछ धार्मिक वाहिनियां (चैनल) भी आईं, जों हिन्दू धर्म से संबंधित थीं। इन सभी वाहिनियाों पर कथावाचक, महाराज इत्यादि आकर प्रवचन देने लगे । कुछ वर्ष पूर्व लोग रामजी को कृष्ण जी और शिव को बहुत मानते थे और श्रीरामजी के चरित्र से बहुत प्रभावित हुआ करते थे। रामलीला और कृष्णलीला में बढ-चढकर सहभाग लिया जाता था। धार्मिक क्रियाकलाप के प्रति मन में श्रद्धाभाव हुआ करता था। पर समय बदला और लोगों की श्रीराम एवं श्रीकृष्ण के प्रति झुकाव कम हो गया । बढते भौतिक वाद के कारण हिन्दुओं को भगवान तो नहीं चाहिए पर भगवान से सबकुछ चाहिए । इस कारण पूजा-पाठ और देवी-देवता के चुनाव में बदलाव देखने मिला। आज हिन्दू अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए सहजता से धर्मांतरित हो जाते हैं । हिन्दुओं की ऐसी स्थिति सहज ही नहीं हुई, अपितु इसके पीछे बहुत बडा षडयंत्र चल रहा है। इस षडयंत्र के अंतर्गत हमें अपने धर्म से दूर किया गया है । ये षडयंत्र सभी ओर से हो रहा है जैसे हमारी शिक्षा प्रणाली, राजनीतिक परिदृश्य (परिस्थिति), हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे धार्मिक संगठन एवं धर्मगुरु, हमारे संचार माध्यम एवं स्वास्थ्य व्यवस्था आदि ।
३. कुछ आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा हिन्दुओं को धर्म से दूर ले जाने का प्रयत्न
आज हिन्दुओं को धर्म के नाम पर भ्रमित करनेवाले बहुत से लोग एवं संस्थाएं चल रही हैं । ये तथाकथित संस्थाएं हिन्दुओं को एकेश्वरवाद और उस संस्था के तथाकथित गुरुओं को बढावा देकर अपने देवी- देवताओं और अपनी मूल जडों से काटने का काम कर रही हैं। गुरु के प्रति एक श्लोक है ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥’
इस श्लोक का अर्थ और व्याख्या को बदल कर रख दिया है और इसका दुरूपयोग हिन्दुओं को भ्रमित करने में हो रहा है। ये अपने ख़ुदा और गुरु को मानने पर विवश करते हैं ।
इनमें अधिकांश संस्थाएं हिन्दुओं के देवी-देवताओं की पूजा और रीति – रिवाज करने से मना करते हैं । ये अपने तथाकथित गुरुओं के बताए ईश्वर को और उस गुरु को मानने पर बाध्य करती हैं । ऐसी अधिकतर संस्थानों के संस्थापक अहिन्दू होते हैं । कुछ संस्थाओं में जो क्रियाकलाप और गतिविधियां होती है वो ईसाई व मुसलमानों जैसे अब्राहमिक पंथ की होती हैं । इनमें जो प्रवचन इत्यादि होते हैं उनमें पीर फकीर और ईसा मसीह की प्रशंसा अधिक होती है। इस्लाम और ईसाइयत से जुडे हुए लोगों और घटनाओं के बारे में अधिक बोला जाता है । हमारे राम-कृष्ण, शंकराचार्य और संतों के बारे में कम बोला जाता है और उन्हें हीन दिखाने का प्रयास भी होता है । ये संगठन अलग-अलग नाम से चल रहे हैं पर इनका उद्देश्य एक ही है । इन संगठनों के पास धन की कोई कमी नहीं हैं । इन्हें विदेशों से भरपूर पैसा मिलता है। इसलिए ये पूरे भारत में फैले हुए हैं ।
४. हिन्दुओं का मानसिक धर्मांतर
जिसप्रकार चर्च में नन और पादरी होते हैं, उसी तरह इनके स्वयंसेवक और कार्यकर्ता होते हैं । अधिकांश ये सफेद वस्त्र पहनते हैं। इन स्वयंसेवकों का अपने परिवार से संबंध भी कम हो जाता है । आर्थिक रूप से ये अपने संगठन पर निर्भर हो जाते हैं, क्योंकि पूर्णकालिक सदस्य होने कारण किसी तरह का उद्यम नहीं कर पाते हैं। फिर न चाहते हुए भी ये अपने संगठन के मिशन में लगे रहते हैं । ये अधिकांशतः निर्धन हिन्दू परिवार के होते हैं । जो मजबूर और भ्रमित होने के कारण इनके जाल में फंस जाते हैं । ये संगठन अपने प्रवचनों में हिन्दुओं को बताते हैं कि मुसलमानों का अल्लाह और ईसाइयों का मसीहा और हिन्दुओं के भगवान एक हैं, इसलिए हमें उनके भगवान को भी मानना चाहिए । इनमें से अधिकांश संस्थाएं पीर फकीरों की परंपराओं का पालन करती हैं । पीर फ़कीर के जीवन के प्रसंगों को बताती है और उन्हें हिन्दू संतों से अधिक परिपूर्ण बताने का प्रयास करती हैं । जिससे हिन्दुओं का मानसिक धर्मांतरण होने लगता है । कुछ कथावाचक अपनी कथाओं में पीर फकीरों को भी जोड लेते हैं ।
५. तथाकथित कथाकारों द्वारा हिन्दू धर्म का दिशाभ्रम !
ऐसे अनेक संगठन चल रहे हैं। एक बात पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इसमें पढे-लिखे धनी वर्ग के हिन्दू भी इसके शिकार हैं । दो-तीन पीढियोें से हिन्दुओं को धर्म का ज्ञान न होने के कारण हिन्दू समाज भ्रमित हो गया है । हमारी धार्मिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न होने के कारण उसका लाभ ये संगठन उठा रहे हैं । हिन्दुओं का एक वर्ग जो धन कमाने को ही सब कुछ समझता है वह मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए भी इन सब में फंस जाता है । इन सबमें फंसने का एक कारण झूठे कथावाचक भी हैं जो धर्म की गलत व्याख्या करते हैं । संचार माध्यम पर भी इनकी अच्छी पकड है । जिसके कारण इनसे जुडना बहुत आसान हो गया है ।
६. तथाकथित बाबाओं के प्रवचनों से ‘लव जिहाद’को प्रोत्साहन !
इन संस्थाओं में एवं इन तथाकथित बाबाओं के पंडाल में अधिक संख्या हमारी हिन्दू महिलाओं और लडकियों की होती है । जिसके कारण हमारे परिवारों में इनका प्रभाव अधिक पडता है । कम आयु की लडकियां इसप्रकार की बातें सुनकर भ्रमित हो जाती हैं । जब एक हिन्दू लडकी यह सुनती है कि सभी पंथ एक हैं ! राम और रहीम एक हैं, तो उसे कोई अब्दुल बडी सहजता से अपनी चिकनी-चुपडी बातों में फांस लेता है और वह लव जिहाद की बलि चढ जाती है । उसके परिजन भी उसे नहीं समझा पाते, इसलिए कि वे स्वयं भी भ्रमित रहते हैं । इन प्रवचनों से ही लव जिहाद की पृष्ठभूमि तैयार होती है । ये संगठन हममें धर्माभिमान कम करके, शत्रुबोध समाप्त कर देते हैं और इससे प्रतिरोध करने की क्षमता में कमी आती है । इनके प्रवचन हिन्दू समाज को स्वकेंद्रित और स्वार्थी बनाते हैं । आज हिन्दुओं में परदुखकातरता (संवेदनशीलता) की कमी देखी गई है । लोग संकट में फंसे व्यक्ति की सहायता करने के स्थान पर मोबाइल पर वीडियो बनाने में लगे रहते हैं । यही दृष्टिकोन ‘जिहाद’ को आसान बनाता है।
७. तथाकथित बाबा एवं गुरु की राजनीति और परकीय शक्ति से संबंध
इन सभी बाबाओं और तथाकथित गुरुओं के संबंध राजनेता और विदेशी शक्तियों से रहते हैं । ये हिन्दू समाज को मानसिक रूप से नियंत्रित करके षड्यंत्रकारी शक्तियों की सहायता करते हैं । ये अपने अनुयायियों को कट्टर और स्वार्थी बनाते हैं तथा सनातनी हिन्दुओं से अलग करने का प्रयत्न करते हैं । ये हमारी महिलाओं और लडकियों को लक्ष्य बनाकर, उनका ब्रेनवाश करते हैं । इनके प्रवचनों में हिन्दुओं के धर्मग्रंथ का तथा हिन्दू साधु-संतों की शिक्षाप्रद बातों का अभाव होता है और यदि ये उसकी चर्चा करते भी हैं तो उसको अलग रूप में प्रस्तुत करते हैं । ये हिन्दू धर्म की मूलभूत शिक्षा से दूर ले जाते हैं और अपने पथं का अंधानुकरण करने पर बल देते हैं । ये अपने गुरु को मानने पर और उनके तथाकथित खुदा, जिसे ो ईश्वर या परमात्मा बोलते हैं उसे मानने पर बल देते हैं ।
८. धर्म एवं ज्ञान के अभाववश हिन्दू समाज में विकृतियों की निर्मिति
धर्म और ज्ञान के अभाव में हिन्दू समाज में अनेक विकृतियां आ गई हैं । हिन्दू समाज में आपसी सहयोग कम होने से बिखराव (विसंवाद) की स्थिति उत्पन्न हो गई है । श्रम और सामाजिक दायित्वों (जिम्मेदारियों)के प्रति उपेक्षा आ गई है । हिन्दू समाज में बढती आर्थिक असुरक्षा, सामाजिक असुरक्षा, परिवार में बिखराव (विघटन), युवाओं का दूसरे मजहब में विवाह करके चले जाना,बडे-बूढों की सेवा के प्रति उपेक्षा, विवाह न करना, नि:संतान रहना, रिश्तों और व्यवहार में सत्यनिष्ठा का अभाव, नशा, भोग विलास, उचित और अनुचित का ध्यान नहीं रखना और मौज-मस्ती करना, पूरा समाज स्वस्थ और सुखी रहे, इस दृष्टिकोन का अभाव रहना, शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहना, दूसरे के दुःख-कष्ट पर मौन साधे रहना, भोग विलास की सामग्री जुटाना, सृजनशीलता का अभाव इत्यादि अवगुण आ जाने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ता व भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है ।
९. हिन्दुओं को सतर्क रहकर योग्य कदम उठाना आवश्यक !
हिन्दू अब कर्म सिद्धांत की अनदेखी कर ऐसे बाबाओं को खोज रहा है जो उसका प्रारब्ध अपने सिर पर लेकर बिना कुछ किए समस्त दुखों से मुक्ति दिला दें और सुख के भंडार उसके लिए खोल दें । आज हिन्दू मानसिक तनाव से बचने के लिए हिंदू इन बाबाओं के शिविर में जाने लगे और वहां पर ध्यान व योग करवाने और मोक्ष दिलाने के बहाने वे इनके जाल में फंसने लगे । अब इसे व्यवसाय बनाकर पैसा भी कमाया जा रहा है । इस कमाई से ये अपना विस्तार करते हैं । इनकी पकड महानगरों से लेकर गांव तक है । जिम्मेदारियों से भागने के कारण पलायनवादी सोच को मोक्ष दिलाने का लोभ भी इन संस्थाओं के षडयंत्र को बल देता है । आज हिन्दू समाज बहुत बडे संकट से गुजर रहा है । इस समय अनेक कालनेमी हमारे आसपास हैं जो घात लगाकर बैठे हुए हैं । इसलिए हमें सतर्क रहने की और उचित कदम उठाने की नितांत आवश्यकता है ।’
– श्री. सचिन सिझारिया, पुणे. (८.८.२०२३)