हिन्दुओं की एवं हिन्दू धर्म की दुर्दशा के कारण तथा उसके उपाय !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से मुझे कुछ वर्षाें पूर्व दक्षिण एवं उत्तर भारत के अनेक राज्यों में धर्मप्रचार के लिए यात्रा करने का अवसर प्राप्त हुआ । उस समय ध्यान में आया, ‘भारत में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुत्व के लिए कार्य करनेवाली अनेक संस्थाएं हैं । उनके पास बहुत धन एवं कार्यकर्ता हैं । साथ ही जिला, तहसील, नगर एवं गांव स्तर पर भी हिन्दुत्व के लिए कार्य करनेवाले अनेक छोटे-बडे संगठन हैं । इतना सब होने पर भी दिन-प्रतिदिन बहुसंख्यक हिन्दुओं एवं हिन्दू धर्म की अत्यधिक हानि हो रही है ।’ निम्नांकित लेख में उनके कारण एवं उस पर ध्यान में आए उपायों का विवेचन किया है ।

हिन्दुओं की सभी समस्याओं का मूल है, ‘धर्मशिक्षा का अभाव !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले 
(सद्गुरु) राजेंद्र शिंदेजी

१. हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को अपेक्षित सफलता प्राप्त न होने की कारणमीमांसा

१ अ. कोरोना महामारी पर उपाययोजना करने पर भी रोग का संक्रमण न रुकना : वर्ष २०२० में बडी मात्रा में कोरोना महामारी का संक्रमण हुआ । कोरोना महामारी से मृतकों की संख्या बहुत बढने लगी । उस समय सरकार ने लोगों का घर से बाहर निकलना प्रतिबंधित किया था । सभी व्यवहार ठप हो गए थे । सभी जगह यातायात प्रतिबंध था । सरकार ने बडी मात्रा में अस्थायी रूप से चिकित्सालय खोलकर लोगों पर उपचार करना आरंभ किया था । इससे लोग रोगमुक्त भी होने लगे; परंतु कोरोना-बाधित लोगों की संख्या में वृद्धि ही हो रही  थी । प्रतिदिन सहस्रों लोगों की मृत्यु हो रही थी ।

१ आ. केवल उपचार करने की अपेक्षा रोग न होने के लिए टीकाकरण करने से कोरोना महामारी नियंत्रित होना : कोरोना महामारी के रोगियों पर केवल उपचार  करने की अपेक्षा, सरकार ने इस रोग के विषय में बडी मात्रा में प्रबोधन करना आरंभ किया । साथ ही ‘यह रोग ही न हो’, इसके लिए कोरोना विरोधी टीका (वैक्सीन) बनाकर वह बडी मात्रा में लोगों को देना आरंभ किया । परिणामस्वरूप यह भयंकर रोग शीघ्र ही नियंत्रित होने में सहायता हुई ।

तात्पर्य, रोग होने के पश्चात उपाययोजना करने की अपेक्षा, ‘रोग न हो’, इसके लिए प्रतिबंधात्मक उपाययोजना जब तक नहीं करते, तब तक उस रोग पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते ।

२. शिखर पर पहुंच चुकी हिन्दुओं की समस्याएं !

अ. धर्मांतरण : मुसलमान एवं ईसाई लोग हिन्दुओं का बडी संख्या में धर्मांतरण कर रहे हैं ।

आ. लव जिहाद : धर्मांध, हिन्दू धर्म की लडकियों को प्रेम-जाल में फंसाकर उनका जीवन नष्ट कर रहे हैं ।

इ. जिहाद के अन्य प्रकार : उदाहरणार्थ लैंड (भूमि) जिहाद, हलाल जिहाद (इस्लाम के अनुसार ‘हलाल’ अर्थात जो वैध है, वह), थूक जिहाद इत्यादि द्वारा भी हिन्दुओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड रहा है ।

ई. पश्चिमी शिक्षा पद्धति एवं विकृति के प्रभाव में विस्मृत हो रही चिरंतन भारतीय संस्कृति ।

उ. अल्पसंख्यकों की चापलूसी के कारण हिन्दुओं पर हो रहे अन्याय एवं हिन्दुओं की अनदेखी कर रहे राजनीतिक दल इत्यादि ।

ऊ. हिन्दू धर्म, धर्मग्रंथ, देवी-देवता, संत, राष्ट्रपुरुषों का नाटक, सिनेमा, समाचारपत्र, पुस्तक, दूरदर्शन वाहिनी एवं सामाजिक माध्यमों से निरंतर एवं बडी मात्रा में हो रहा अनादर ।

ए. हिन्दू मंदिरों का सरकारीकरण एवं इस कारण मंदिरों का घटता चैतन्य ।

ऐ. मंदिरों पर आक्रमण कर मूर्तियों की तोड-फोड ।

ओ. सर्वधर्मसमभाव के जाल में फंसे हुए एवं हिन्दुओं के त्योहार, उत्सव, परंपरा, साधना मार्ग इत्यादि का अध्ययन किए बिना, उसका विरोध कर स्वधर्म नष्ट करने पर तुले हुए, आस्तीन के सांप बने हिन्दू ।

ऐसी अनेक गंभीर समस्याओं के कारण हिन्दुओं का अस्तित्व संकट में पड गया है ।

३. हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को अपेक्षित सफलता न मिलना तथा समस्या अधिकाधिक भीषण होना

हिन्दुओं पर हो रहे आघातों का विरोध करने के लिए भारत के अक्षरश: सैकडों हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के लाखों कार्यकर्ता गत अनेक दशकों से प्रयास कर रहे हैं । इसमें इन संगठनों का बहुत-सा धन एवं मानव संसाधन व्यय हो रहा है; परंतु अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो रही । इसके विपरीत दिन-प्रतिदिन उपरोक्त सभी समस्याएं अधिकाधिक भीषण हो रही हैं एवं नए-नए संकटों उत्पन्न हो रहे हैं, यही कडवा सच है ।

४. हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के सभी प्रयास ऊपरी स्तर के होने के कारण उनको सफलता न मिलना

हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने सभी प्रयास समस्या की जड पहचाने बिना एवं उसका स्थायी उपाय सोचे बिना, ऊपरी स्तर पर किए । इस कारण उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली । ये उपाय, क्षयरोगी को क्षयरोग के जीवाणु मारने की दवाई देने की अपेक्षा केवल खांसी की दवाई देने समान है । ‘ये समस्या ही निर्माण न हों’, यदि इसके लिए प्रयास करते,  तो कोरोना के विषाणुओं की भांति इस समस्या का भी समाधान हो चुका होता ।

५. ‘धर्मशिक्षा का अभाव’: सभी समस्याओं की जड

५ अ. धर्मशिक्षा से हिन्दुओं को होनेवाले लाभ

१. धर्मशिक्षा लेने से हिन्दुओं को हिन्दू धर्म का महत्त्व ध्यान में आएगा ।

२. धर्मशिक्षा से साधना होगी, साधना से अनुभूति होगी एवं अनुभूतियों से श्रद्धा वृद्धिंगत होगी, श्रद्धा के कारण धर्माभिमान वृद्धिंगत होगा एवं धर्माभिमान के कारण संगठन बढेगा ।

३. संगठन से हिन्दुओं की एवं हिन्दू धर्म की रक्षा होगी एवं उससे ही हिन्दू राष्ट्र की निर्मिति एवं उसका पालन होगा ।

४. धर्मशिक्षा लेने से जागृत एवं क्रियाशील हिन्दू, हिन्दू धर्म पर हुए आघातों के विरुद्ध धर्मरक्षा के लिए तैयार होंगे एवं उपरोक्त सभी समस्याओं का शीघ्र ही समाधान होगा ।

५ आ. धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दुओं द्वारा अधर्माचरण करना : आज हिन्दुओं को ‘धर्म का अर्थ क्या है ? हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता क्या है ? हिन्दू किसे कहें ? हिन्दू धर्म में इतने भगवान क्यों हैं ? देवताओं का अनादर क्या है ?’, ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर ज्ञात नहीं है । हिन्दू व्यक्ति अन्य पंथियों की भांति अपने धर्म के विषय में अभिमान से कुछ भी नहीं कह सकता । धर्मशिक्षा के अभाव में आज हिन्दू लाचार, बलहीन एवं अधर्माचरणी बन गया है ।

५ इ. हिन्दू धर्म को पुन: वैभव संपन्न करने के लिए हिन्दुओं का धर्मशिक्षा लेना आवश्यक ! : सर्वत्र के हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को आघात होने के पश्चात उसका विरोध करने के लिए अपनी शक्ति व्यय करनी पडती है । इसी के साथ ही हिन्दुओं की सभी समस्याओं की जड है, ‘धर्मशिक्षा का
अभाव’ । उसे दूर करने के लिए अधिक शक्ति व्यय करने पर थोडे ही समय में हिन्दू जागृत होकर धर्मरक्षा के लिए तैयार हो जाएंगे और स्वयं ही हिन्दू धर्म का पतन रोकेंगे, इस विषय में निश्चिंत रहें । ऐसा करने से हिन्दू धर्म को पुनः वैभव प्राप्त होगा एवं उस कारण ही हिन्दू राष्ट्र की निर्मिति एवं उसका संवर्धन होगा ।

५ ई. हिन्दुओं को अध्यात्म की शिक्षा प्रदान कर उनमें धर्माभिमान जागृत करने के लिए सनातन संस्था प्रयासरत है । इस कारण साधकसंख्या अल्प होते हुए भी संस्था द्वारा बडी मात्रा में धर्मजागृति का कार्य हो रहा है ।

६. कृतज्ञता

सभी हिन्दू एवं हिन्दुत्वनिष्ठों को धर्मशिक्षा का महत्त्व ध्यान में आए, उन्हें कृति करने की बुद्धि हों, ऐसी भगवान श्रीकृष्ण एवं सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के श्रीचरणों में प्रार्थना है ।
सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी द्वारा सुझाए शब्दसुमन कृतज्ञभाव से उनके श्रीचरणों में समर्पित !   (२५.८.२०२३)

इदं न मम ।’

– (सद्गुरु) राजेंद्र शिंदे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

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हिन्दुओं को अध्यात्मशास्त्र ज्ञात हो एवं धर्माचरण के कृत्यों का आधारभूत शास्त्र ज्ञात हो, इसलिए सनातन संस्था द्वारा नि:शुल्क साप्ताहिक सत्संग लिए जा रहे हैं । ये सत्संग प्रत्यक्ष अथवा संगणकीय प्रणाली द्वारा ‘ऑनलाइन’ भी लिए जाते हैं । इन सत्संगों में उपस्थित रहने के लिए अथवा अपने क्षेत्र में सत्संग आरंभ करने के लिए आगे दिए गए क्रमांक पर संपर्क करें ।

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